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कलाम
दीद-ए-जमाल-ए-हक़ हुई हुस्न-ए-निगार देख करबन गए बुत-परस्त हम सूरत-ए-यार देख कर
शब्बीर साजिद मेहरवी
कलाम
हर नक़्शा किस से हक़ के सिवा मुम्किनात काहर फ़र्द है जहाँ में आईना ज़ात का
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
कलाम
दर्शन सिंह
कलाम
वो हक़ के साथ राबिता-ए-दिल नहीं रहामज्ज़ूब उस लक़ब ही के क़ाबिल नहीं रहा
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
ख़ुदी से बे-ख़ुदी में आ जो शौक़-ए-हक़-परसती हैजिसे तू नीस्ती समझा है ऐ ग़ाफ़िल वो हस्ती है
अमीर मीनाई
कलाम
ज़फ़र वो ज़ाहिद-ए-बेदर्द की हू-हक़ से बेहतर हैकरे गर रिंद दर्द-ए-दिल से हाय हू-ए-मस्ताना
बहादुर शाह ज़फ़र
कलाम
बहार-ए-जाँ-फ़ज़ा तुम हो नसीम-ए-दास्ताँ तुम होबहार-ए-बाग़-ए-रिज़वाँ तुम से है जे़ब-ए-जिनाँ तुम हो
मुस्तफ़ा रज़ा ख़ान
कलाम
तेरा आस्ताना-ए-नाज़ हो ये मेरी जबीन-ए-नियाज़ होमज़ा जब है पेश-ए-नज़र हो तू मेरी हस्ती महव-ए-नमाज़ हो
अमीर बख़्श साबरी
कलाम
तुम कौन हो मियाँ कहाँ के हो जो ऐसी नगरी झाँके होहिन्दू हो या मुसलमाँ हो कौन रूप में रहते हो
शाह माज़ुद्दीन मौज
कलाम
आशिक़ हो ते इश्क़ कमा दिल रक्खीं वांग पहाड़ाँ हूसै सै बदियाँ लक्ख उलाहमें, जाणीं बाग़-बहाराँ हू