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कलाम
इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो होऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
नज़र आया 'अजब मुझ को तमाशा चश्म-ए-हक़-बीं सेज़माना ढूँढता है हक़ को और हक़ ही ज़माना है
वतन हैदराबादी
कलाम
निगाहों में समाएँ क्या करिश्मे हुस्न-ए-फ़ितरत केतिरा जल्वा है वाफ़िर तंग-दामान-ए-नज़र अपना
बर्क़ देहलवी
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
ये 'राज़'-गर की करामत नहीं तो क्या है राज़ग़ुलाम-ए-सिलसिला-ए-नाम-ए-बू-तुराब किया
शाह तक़ी राज़ बरेलवी
कलाम
तेरा फ़ैज़ फ़ैज़-ए-रहमत तेरा दर गुनाह-पोशीवो छुटेगा क़ैद-ए-ग़म से तेरे दर पे जो मिटेगा
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
दिल-ए-शैदा को जिस ने तुर्रा-ए-दस्तार से बाँधागोया मंसूर को बे-रेस्मान-ए-दार से बाँधा