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कलाम
आख़िर-ए-शब के हम-सफ़र 'फ़ैज़' न जाने क्या हुएरह गई किस जगह सबा सुब्ह किधर निकल गई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
दिल ओ जाँ फ़िदा-ए-राहे कभी आ के देख हमदमसर-ए-कू-ए-दिल-फ़िगाराँ शब-ए-आरज़ू का आलम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
कब महकेगी फ़स्ल-ए-गुल कब बहकेगा मय-ख़ानाकब सुब्ह-ए-सुख़न होगी कब शाम-ए-नज़र होगी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
न सवाल-ए-वस्ल न अर्ज़-ए-ग़म न हिकायतें न शिकायतेंतिरे अहद में दिल-ए-ज़ार के सभी इख़्तियार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
हुआ ऐ 'फ़ैज़' मा'लूम एक मुद्दत में हमीं थे वोजपा करते थे जिस के नाम की दिन-रात सुमिरन हम
मीर शमसुद्दीन फ़ैज़
कलाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
हू दा जामा पहन कराहाँ इस्म कमावण ज़ाती हूकुफ़र इस्लाम मक़ाम न मंज़ल न उत्थ मौत हयाती हू