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कलाम
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
कलाम
जिस्म दमकता ज़ुल्फ़ घनेरी रंगीं लब आँखें जादूसंग-ए-मरमर ऊदा बादल सुर्ख़ शफ़क़ हैराँ आहू
जावेद अख़तर
कलाम
ग़ौस क़ुतुब न उरे उरेरे आशिक़ जाण अगेरे हूजेहड़े मंज़िल आशिक़ पहुंचण ग़ौस न पावण फेरे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
तिरे ग़म को जाँ की तलाश थी तिरे जाँ-निसार चले गएतिरी रह में करते थे सर तलब सर-ए-रहगुज़ार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
दिल पे ज़ख़्म खाते हैं जान से गुज़रते हैंजुर्म सिर्फ़ इतना है उन को प्यार करते हैं
इक़बाल सफ़ीपुरी
कलाम
जो बंदा-ए-जान-ए-जानाँ है तो जान जाने से क्या मतलबजो महव-ए-रू-ए-जाना है तो होश आने से क्या मतलब
अज्ञात
कलाम
ज़रा और मुस्कुरा लूँ दिल-ओ-जाँ शिकार-ए-ग़म हैंकि मसर्रतों के लम्हे मेरी ज़िंदगी में कम हैं
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
उन्हीं ख़ुश-गुमानियों में कहीं जाँ से भी न जाओवो जो चारा-गर नहीं है उसे ज़ख़्म क्यूँ दिखाओ