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ख़ाक से ता-ब-कहकशाँ हम ने तो जब किया सफ़र'इश्क़ मिला क़दम-क़दम हुस्न मिला नज़र-नज़र
जब आदमी मुद्द'आ-ए-हक़ है तो क्या कहें मुद्द’आ कहाँ हैख़ुदा है ख़ुद जिस के दिल में पिन्हाँ वो ढूँढता है ख़ुदा कहाँ है
काश मिरी जबीन-ए-शौक़ सज्दों से सरफ़राज़ होयार की ख़ाक-ए-आस्ताँ ताज-ए-सर-ए-नियाज़ हो
मन लागो मेरो यार फकीरी मेंमन लागो मेरो यार फकीरी में
हो काश हासिल दर की गदाईगहे दीदा-फ़र्शे गहे जब्हा-साई
ऐसी नज़र-फरोज़ थी बज़्म-गह-ए-निगार-ए-फ़नमेरी नज़र को भा गई अहल-ए-नज़र की अंजुमन
जिस जा नसीम शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार हैनाफ़ा दिमाग़-ए-आहु-ए-दश्त-ए-ततार है
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआमैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ
तिरे दर्शन से अब भी गोपियाँ सरशार रहती हैंतसव्वुर-कोश रहती हैं तबस्सुम-कार रहती हैं
नौमीद न हो इन से ऐ रहबर-ए-फ़रज़ानाकम-कोश तो हैं लेकिन बे-ज़ौक़ नहीं राही
ख़ार-ए-हसरत क़ब्र तक दिल में खटकता जाएगामुर्ग़-ए-बिस्मिल की तरह लाशा फरकता जाएगा
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