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ख़ाक से ता-ब-कहकशाँ हम ने तो जब किया सफ़र

दर्शन सिंह

ख़ाक से ता-ब-कहकशाँ हम ने तो जब किया सफ़र

दर्शन सिंह

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    ख़ाक से ता-ब-कहकशाँ हम ने तो जब किया सफ़र

    'इश्क़ मिला क़दम-क़दम हुस्न मिला नज़र-नज़र

    दिल-ए-बे-क़रार रो लें तड़प लें जाग लें

    नींद की फ़िक्र क्या अभी रात मिली है बे-सहर

    दिल से निकल के हर सदा क्यूँ दिलों में डूब जाए

    साज़ मिरा लतीफ़ है नग़्मा तिरा लतीफ़-तर

    कूचा-ए-दोस्त देख कर अशक-ए-वफ़ा टपक पड़े

    चुन ले कोई जो चुन सके फूल पड़े हैं ख़ाक पर

    सुब्ह-ए-अज़ल से मैं चला शाम-ए-अबद तक गया

    ’उम्र-ए-दराज़-ए-शौक़ है मेरी हयात-ए-मुख़्तसर

    वुस'अत-ए-काइनात की सैर का मा-हसल तो है

    तेरे ही दर पे आएगा कल ये थका हुआ बशर

    अपने ही दोस्त की तो हैं जितनी हैं ये निशानियाँ

    दैर मिले तो सर झुका का'बा मिले सलाम कर

    वा’दा-ए-दोस्त कुछ नहीं एक मुसलसल आरज़ू

    रात गुज़र गई तो फिर रात का इंतिज़ार कर

    हुस्न भी सिवा मिली 'इश्क़ से दिल को रौशनी

    तुम हो चराग़-ए-अंजुमन मैं हूँ चराग़-ए-रह-गुज़र

    चश्म-ए-करम गिराँ सही चश्म-ए-करम कीजिए

    एक निगाह तो कभी ‘दर्शन’-ए-ख़स्ता-हाल पर

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