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कलाम
आशिक़ पढ़न नमाज़ पिरम दी जैं विच हरफ़ न कोई हूजेहा केहा नीत न सक्के उथ दर्दमंद दिल ढोई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
आरज़ू लखनवी
कलाम
बर्गश्ता-ओ-बद-ज़न सा पाते हैं ख़ुदा हाफ़िज़अब हम तिरी महफ़िल से जाते हैं ख़ुदा हाफ़िज़
ताबिश कानपुरी
कलाम
ग़ौस क़ुतुब न उरे उरेरे आशिक़ जाण अगेरे हूजेहड़े मंज़िल आशिक़ पहुंचण ग़ौस न पावण फेरे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
ऐ जान-ए-जहाँ कब तक ये गोशा-ए-तन्हाईसब दीद के तालिब हैं जितने हैं तमाशाई
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
कलाम
तिरे ग़म को जाँ की तलाश थी तिरे जाँ-निसार चले गएतिरी रह में करते थे सर तलब सर-ए-रहगुज़ार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
खयाल-ए-मा-सिवा पी की नगरिया कैसे ले जाऊँवो यक्ता है मैं दूजे की गगरिया कैसे ले जाऊँ