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कलाम
मैं अपने साक़ी का बंदा हूँ और क्या जानूँउसी के जाम का मारा हूँ और क्या जानूँ
शाह तक़ी राज़ बरेलवी
कलाम
यूँ तो बंदे का ज़माने में है बंदा 'आशिक़पर ख़ुदा भी कहीं होता है किसी का 'आशिक़
शाह फ़ाइक़ शहबाज़ी
कलाम
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और हैसर-ए-आईना मिरा 'अक्स है पस-ए-आईना कोई और है
सलीम कौसर
कलाम
करें हम किस की पूजा और चढ़ाएँ किस को चंदन हमसनम हम दैर हम बुत-ख़ाना हम बुत हम बरहमन हम
मीर शम्सुद्दीन फ़ैज़
कलाम
मैं तुझ को ग़ैर समझता था और ख़ुद को और समझता थापर चश्म-ए-ग़ौर से जब देखा तू और नहीं मैं और नहीं