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कलाम
यार ख़ुद जल्वा-नुमा था मुझे मा'लूम न थाग़ुंचा-ओ-गुल में बसा था मुझे मा'लूम न था
शाह फ़िदा हुसैन फ़य्याज़ी
कलाम
शक्ल आँखों में मिरी जल्वा-नुमा किस की हैपर्दा-ए-दिल से जो निकली ये सदा किस की है
मिर्ज़ा अश्क लखनवी
कलाम
ग़ौस क़ुतुब न उरे उरेरे आशिक़ जाण अगेरे हूजेहड़े मंज़िल आशिक़ पहुंचण ग़ौस न पावण फेरे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
गुल में तू तुझ में नुमू था मुझे मा'लूम न थाहर तरफ़ बाग़ में तू था मुझे मा'लूम न था
अकबर वारसी मेरठी
कलाम
पिया तुझ आश्ना हूँ मैं तू बे-गाना न कर मुझ कोटले न इक घड़ी तुझ याद बिन तू ना-बिसर मुझ को
कुली कुतुब शाह
कलाम
पी के मय तेरी दु'आ करता है ये मस्ताना अबहश्र तक क़ाइम रहे साक़ी तिरा मय-ख़ाना अब
महमूद अहमद रब्बानी
कलाम
प्रेम-नगर की राह कठिन है सँभल-सँभल के चला करोराम राम को मन में जपो तुम ध्यान उसी में धरा करो
सय्यद महमूद शाह
कलाम
'इश्क़ की बर्बादियों की फिर नई तम्हीद हैज़ख़्म-ए-दिल ताज़ा हुए हैं मेरे घर में 'ईद है
कामिल शत्तारी
कलाम
नई शान से हुआ जल्वा-गर वो जहाँ पे जल्वा-कुनाँ हुआकहीं बे-गुमान-ओ-गुमाँ बना कहीं बे-निशान-ओ-निशाँ हुआ
बेदम शाह वारसी
कलाम
नज़रों से पी रहा हूँ मैं मय-ख़ाना जा के क्या करूँमस्ती है वो रू-ब-रू होश में आ के क्या करूँ
ख़ालिद वुजूदी
कलाम
न मैं आलिम न मैं फ़ाज़िल न मुफ़्ती न क़ाज़ी हूना दिल मेरा दोज़ख़ ते ना शौक़ बहिश्ती राज़ी हू
सुल्तान बाहू
कलाम
न हिकायत-ए-ग़म-ए-'इश्क़ है न हदीस-ए-साग़र-ओ-जाम हैतिरा मय-कदा है वो मय-कदा जहाँ लफ़्ज़-ए-होश हराम है