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तुझ को जल्वा-गह-ए-नाज़ में रोका थामाहौसला देख लिया अपने तमाशाई का
बाक़ी है आधी रात मगर इस का क्या जवाबघबरा के वो ये कहते हैं वक़्त-ए-अज़ाँ है अब
यूँ न हो बर्क़-ए-तजल्ली बेताबमिल गया रँग तमाशाई का
ज़माने में हैं यादगार-ए-ज़मानावफ़ाएँ हमारी जफ़ाएँ तुम्हारी
आरज़ू ही न रही सुब्ह-ए-वतन की मुझ कोशाम-ए-ग़ुर्बत है अजब वक़्त सुहाना तेरा
लग चली बाद-ए-सबा क्या किस मस्ताने सेझूमती आज चली आती है मय-ख़ाने से
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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