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तुझ को जल्वा-गह-ए-नाज़ में रोका थामाहौसला देख लिया अपने तमाशाई का
बाक़ी है आधी रात मगर इस का क्या जवाबघबरा के वो ये कहते हैं वक़्त-ए-अज़ाँ है अब
यूँ न हो बर्क़-ए-तजल्ली बेताबमिल गया रँग तमाशाई का
शब-ए-वा'दा अपना यही मश्ग़ला थाउठा कर नज़र सू-ए-दर देख लेना
ज़माने में हैं यादगार-ए-ज़मानावफ़ाएँ हमारी जफ़ाएँ तुम्हारी
ये मिली दाद रंज-ए-फ़ुर्क़त कीऔर दिल का कहा करे कोई
रोज़-ए-महशर क्या ये बुत बे-कार ही रह जाएँगेइक न इक फ़ित्ना है लाज़िम इक आने के लिए
आरज़ू ही न रही सुब्ह-ए-वतन की मुझ कोशाम-ए-ग़ुर्बत है अजब वक़्त सुहाना तेरा
लग चली बाद-ए-सबा क्या किस मस्ताने सेझूमती आज चली आती है मय-ख़ाने से
बा’द मेरे क्यूँ नवेद-ए-वस्ल-ए-यार आने को थीवो चमन ही मिट गया जिस में बहार आने को थी
कूचा-ए-यार में भी दिल नहीं लगता ऐ 'दाग़'देखिए जाएगी किस रोज़ ये वहशत तेरी
सूरत-ए-अश्क नज़र से जो गिराए कोईख़ाक से उठ न सकूँ लाख उठाए कोई
ताब नज़्ज़ारा-ए-अनवार-ए-तजल्ली न सहीमेरी हिम्मत है कि मैं तालिब-ए-दीदार तो हूँ
ग़म-ए-इ'श्क़ में मज़ा था जो उसे समझ के खातेये वो ज़हर है कि आख़िर मय-ए-ख़ुश-गवार होता
हैं रुख़-ए-नाज़ुक पे गिनती के निशानकिस ने बोसे तेरे गिन-गिन के लिए
कोई क्या चल सकेगा उस ख़िराम-ए-नाज़ से बढ़ करक़यामत का तुम्हारी ठोकरों में दम निकलता है
'अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होताकभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता
धूम है ज़ेर-ए-ज़मीं कुश्ता-ए-नाज़ आया हैहो गई ई'द शहीदों को ज़ियारत मेरी
दग़ा शोख़ी शरारत बे-हयाई फ़ित्ना-पर्दाज़ीतुझे कुछ और भी ऐ नर्गिस-ए-मस्ताना आता है
क़तरा-ए-ख़ून-ए-जिगर से की तवाज़ो' 'इश्क़ कीसामने मेहमाँ के जो था मयस्सर रख दिया
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