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कलाम
वही आ'रिफ़ है वही मर्द-ए-ख़ुदा है 'मोहसिन'जिस ने क़तरे में ही दरिया का तमाशा देखा
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
रुख़-ए-पुर-नूर तसव्वुर में है 'मोहसिन' उन काइसी सूरत से मिरे दिल की जिला होती है
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
गंज क़ारूँ को जो अल्लाह ने बख़्शा ‘मोहसिन’फिर न उस वक़्त के बंदे को ख़ुदा याद आया
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
ग़ज़ब की चाल गुलशन में चला है बाग़बाँ 'मोहसिन'इसी का ये नतीजा है कि पामाल-ए-स’ऊबत हूँ
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
'मोहसिन'-ए-दिल-गिरफ़्ता तू कर न ख़ुदी की गुफ़्तुगूबंदा-ए-बे-नियाज़ हो अकबर-ए-पाक-बाज़ बन
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
मोहम्मद बादशाह क़ादरी
कलाम
क़ुर्बान-ए-फ़ना एक तजल्ली-ए-तेरी होएज़ुल्मत-कदा-ए-हस्तती-ए-मौहूम से निकले
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
कलाम
तुम्हें मैं जानता हूँ तुम बदलते हो हज़ारों रंगनहीं मैं ग़ैर उठा कर पर्दा-ए-रू-ए-बशर आओ
आग़ा मुहम्मद दाऊद
कलाम
ढूँढ उस जगह किशवर-ए-’अली बाब-ए-’इल्म है’उक़्दा वहीं से होवे है हल मुश्किलात का