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कलाम
प्रेम-नगर की राह कठिन है सँभल-सँभल के चला करोराम राम को मन में जपो तुम ध्यान उसी में धरा करो
सय्यद महमूद शाह
कलाम
दिल-ए-शैदा को जिस ने तुर्रा-ए-दस्तार से बाँधागोया मंसूर को बे-रेस्मान-ए-दार से बाँधा
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
फँसा जब से दिल-ए-शैदा सनम की ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ मेंबसर होती है हर शब एक ही ख़्वाब-ए-परेशाँ में
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
ख़याल आया जो उस मह-रू को गुल-गश्त-ए-ख़ियाबाँ कानज़र कुछ और ही आने लगा 'आलम-ए-गुलिस्ताँ का
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
अगर मंज़ूर है पीना मय-ए-वहदत के साग़र कालिया कर नाम हर दम हज़रत साक़ी-ए-कौसर का