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कलाम
शैख़-जी तशरीफ़ यूँ बहर-ए-ज़ियारत ले चलेलब पे तौब: उन बुतों की दिल में उल्फ़त ले चले
औघट शाह वारसी
कलाम
ब्रिज नारायण चकबस्त
कलाम
छीन लो मुझ से दोस्तो ताक़त-ए-’अर्ज़-ए-मुद्दआ'उस ने मिज़ाज-ए-यार को दा’वत-ए-बरहमी भी दी
माहिरुल क़ादरी
कलाम
सई’द शहीदी
कलाम
हर दाइरा आवाज़ का लफ़्ज़-ए-मोहम्मद बन गयामेरे लिए तो क़िब्ला-ए-सौत-ओ-सदा भी आप हैं
अहमद नदीम क़ासमी
कलाम
ब-रोज़-ए-हश्र हाकिम क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा होगाफ़रिश्तों के लिखे और शैख़ की बातों से क्या होगा
हरी चंद अख़्तर
कलाम
तरब आश्ना-ए-ख़रोश हो तो नवा है महरम-ए-गोश होवो सुरूद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में
अल्लामा इक़बाल
कलाम
अ'जब आ'लम है बेदारान-ए-राह-ए-अ'ज़्म-ओ-हिम्मत कासबील-ए-ख़्वाब भी मंज़िल-ब-मंज़िल होती जाती है
सीमाब अकबराबादी
कलाम
सुल्ह-ए-कुल अब हम से ऐ शैख़-ओ-बरहमन सीख लोहरगिज़ आपस में न रक्खो तुम लड़ाई का घमंड
आशिक़ हैदराबादी
कलाम
न मक़ाम-ए-गुफ़्तुगू है न महल्ल-ए-जुस्तुजू हैन वहाँ हवास पहुँचें न ख़िरद को है रसाई
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
कहीं ज़ाइद कहीं कम बादा-ए-इ'रफ़ाँ की मस्ती हैब-क़द्र-ए-वुस्अ'त-ए-मश्रब मक़ाम-ए-मय-परस्ती है
अमीर मीनाई
कलाम
हज़रत-ए-ख़्वाजा-ए-चिश्ती-ए-मु’ईनुद्दीन ख़ुददिल में 'आशिक़' के बसा था मुझे मा'लूम न था
आशिक़ हैदराबादी
कलाम
ख़ुदा महफ़ूज़ रखे 'इश्क़ के जज़्बात-ए-कामिल सेज़मीं गर्दूं से टकराई जहाँ दिल मिल गया दिल से
अज़ीज़ मेरठी
कलाम
ये राज़ खुला हम पर असरार-ए-ख़िलाफ़त मेंबंदा है शरी'अत में मौला है हक़ीक़त में