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कलाम
सच है शह-रग से क़रीं अल्लाह मियाँ है रे मियाँतुझ में ये माद्दा समझने का कहाँ है रे मयाँ
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
अब्र है जाम है मीना है मय-ए-गुल-गूँ हैहै सब अस्बाब-ए-तरब साक़ी-ए-गुलफ़ाम नहीं
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
ख़ानक़ाह-ए-चिश्त में जिस ने क़दम पहला रखादूसरा उस का क़दम फिर अर्श-ए-बाला पर हुआ
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
ग़ुबार-ए-आस्ताँ हर रोज़ झाड़े मेहर-ए-मिज़्गाँ सेबिछाए माह हर शब चादर-ए-शफ़्फ़ाफ़ का'बा में
हाजी वारिस अली शाह
कलाम
मुश्किल जो 'नियाज़' आई तुम्हें फ़क़्र में दरपेशजा शाह-ए-नजफ़ हैदर-ए-कर्रार से कह दो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो होऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
कहाँ ये 'इश्क़ का मरना कहाँ वो मौत सर पड़नायहाँ अब रूह-ए-क़ुदसी हों वहाँ ज़ेर-ए-ज़मीं सड़ना
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
हज़रत-ए-इश्क़ आप होवें गर मुदर्रिस चंद रोज़फिर तो इल्म-ए-फ़क़्र की तहसील ख़ातिर-ख़्वाह हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
न मक़ाम-ए-गुफ़्तुगू है न महल्ल-ए-जुस्तुजू हैन वहाँ हवास पहुँचें न ख़िरद को है रसाई
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
आईना-ए-’अली को देख हुस्न-ए-मोहम्मदी को देखकर के निसार जान-ए-वतन 'आशिक़-ए-सरफ़राज़ बन