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कलाम
शकील बदायूँनी
कलाम
आरज़ू-ए-वस्ल-ए-जानाँ में सहर होने लगीज़िंदगी मानिंद-ए-शम्अ' मुख़्तसर होने लगी
ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
तरब आश्ना-ए-ख़रोश हो तू नवा है महरम-ए-गोश होवो सरोद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में
अल्लामा इक़बाल
कलाम
दिल-ए-दीवाना अपने पाँव फैलाए तो क्या 'सय्यद'बहुत ही मुख़्तसर है दोस्तो दामन बयाबाँ का
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
अख़्तर शीरानी
कलाम
आईना-ए-’अली को देख हुस्न-ए-मोहम्मदी को देखकर के निसार जान-ए-वतन 'आशिक़-ए-सरफ़राज़ बन
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
शब-ए-फ़ुर्क़त का जब कुछ तूल कम होना नहीं मुमकिनतो मेरी ज़िंदगी का मुख़्तसर अफ़्साना हो जाए
बेदम शाह वारसी
कलाम
ऐ जान-ए-जहाँ कब तक ये गोशा-ए-तन्हाईसब दीद के तालिब हैं जितने हैं तमाशाई