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कलाम
सै रोज़े सै नफ्ल नमाज़ाँ सै सज्दे कर थक्के हूमक्के हज्ज गए सै वारी दिल दी दौड़ न मक्के हू
सुल्तान बाहू
कलाम
तिरे सज्दे में हम ने अपनी पेशानी जहाँ रख दीतजल्ली ने तिरी वाँ वुसअत-ए-कौन-ओ-मकाँ रख दी
माहिरुल क़ादरी
कलाम
क्या सलात-ओ-सोम-ओ-सज्दा और क्या ईमाँ का तोलइक निगाह-ए-नाज़-ए-जानाना है कुल आ'लम का मोल
अब्दुल हादी काविश
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी हैतर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है