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कलाम
कुन-फ़-यकून जदों फ़रमाया असाँ भी कोले हासे हूहिक्के ज़ात सिफ़ात रब्बे दी हिक्के जग ढूँडयासे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
शुक्र है अल्लाह का कि बज़्म-ए-मय-ख़्वारों में आजहज़रत-ए-'असग़र' से भी अपनी शनासाई हुई
असग़र निज़ामी
कलाम
बहार-ए-जाँ-फ़ज़ा तुम हो नसीम-ए-दास्ताँ तुम होबहार-ए-बाग़-ए-रिज़वाँ तुम से है जे़ब-ए-जिनाँ तुम हो
मुस्तफ़ा रज़ा ख़ान
कलाम
बसान-ए-नक़्श-ए-पा-ए-रह-रवाँ कू-ए-तमन्ना मेंनहीं उठने की ताक़त क्या करें लाचार बैठे हैं
इन्शा अल्ला ख़ान
कलाम
क़मर जलालवी
कलाम
दिल काले तों मुँह काला चंगा जे कोई उस नूँ जाणे हूमुँह काला दिल अच्छा होवे ताँ दिल यार पछाणे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
आब-ए-तेग़-ए-’इश्क़ पी कर ज़िंदा-ए-जावेद होग़म न कर जो चश्मा-ए-आब-ए-बक़ा मिलता नहीं
मुस्तफ़ा रज़ा ख़ान
कलाम
हैं असली जल्वा-ए-दुनिया-ए-बातिल देखने वालेमिल कर रंग-ए-वीरानी-ओ-महफ़िल देखने वाले
सीमाब अकबराबादी
कलाम
कहीं घाइल किए तीर-ए-निगाह-ए-नाज़नीं बन करकहीं वो ख़ून करते हैं अदा-ए-जाँ-सिताँ हो कर