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कलाम
शब-ए-फ़ुर्क़त की तारीकी में शामिल है ग़ुबार अपनाउसी सहरा में खोया 'इश्क़ ने 'अह्द-ए-बहार अपना
मयकश अकबराबादी
कलाम
जो तेरी याद फ़ुर्क़त में मिरी दम-साज़ बन जाएतो मेरे दिल की हर धड़कन तिरी आवाज़ बन जाए
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
फ़ुर्क़त की हज़ारों रातों से इक रात सुहानी माँगी थीजो फूल के बोझ से दब जाए इक ऐसी जवानी माँगी थी
अज्ञात
कलाम
हम वस्ल में ऐसे खोए गए फ़ुर्क़त का ज़माना भूल गएसाहिल की ख़ुशी में मौजों का तूफ़ान उठाना भूल गए
कामिल शत्तारी
कलाम
ज़ाहर वेखां जानी ताईं नाले अंदर सीने हूबिरहों मारी नित फ़िरां मैं हस्सण लोक नाबीने हू
सुल्तान बाहू
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी हैतर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है
शकील बदायूँनी
कलाम
ऐ जान ग़म-ए-दुश्मन में शोरीदा-सरी क्यूँ हैहम तो अभी ज़िंदा हैं ये जामा-दरी क्यूँ है