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कलाम
शुक्र है अल्लाह का कि बज़्म-ए-मय-ख़्वारों में आजहज़रत-ए-'असग़र' से भी अपनी शनासाई हुई
असग़र निज़ामी
कलाम
जो ख़ुदी को अपने मिटाएगा तो ख़ुदा की ज़ात को पाएगातुझे उस का नूर है देखना तो मिसाल-ए-चाँद-गहन में जा
असग़र निज़ामी
कलाम
क्या दिल कहूँ दिलबर कहूँ या जाँ कहूँ या क्या कहूँया मन कहूँ मोहन कहूँ जानाँ कहूँ या क्या कहूँ
सादिक़ु अली शाह
कलाम
मैं कोझी मेरा दिलबर सोहणा, क्यूँकर उस नूँ भावा हूविहड़े साडे वड़दा नाहीँ लक्ख वसीलें पावाँ हू
सुल्तान बाहू
कलाम
दिल-ए-शैदा को जिस ने तुर्रा-ए-दस्तार से बाँधागोया मंसूर को बे-रेस्मान-ए-दार से बाँधा
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
बहार आए दिल-ए-सूफ़ी पे ज़ेर-ए-साया-ए-कामिलचमन पर रंग आ जाता है अक्सर अब्र-ओ-बाराँ में
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
शबीह-ए-’आशिक़-ए-मुज़्तर को देख ऐ कोह-ए-रा’नाईअगर मंज़ूर है तुझ को तमाशा संग-ए-लर्ज़ां का
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
अ'दम से जानिब-ए-हस्ती 'निज़ामी'-ए-ख़स्तातलाश-ए-यार में वक़्फ़-ए-तलाश-ए-यार रहा