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कलाम
अपने पीर-ओ-मुर्शिद की ये करिश्मा-साज़ी हैजब से उन के हो बैठे ख़ूब सरफ़राज़ी है
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
अलिफ़-अल्ला चम्बे दी बूटी मुर्शिद मन विच लाई हूनफ़ी इसबात दा पाणी मिलाया हर रगे हर जाई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
मुर्शिद ओह सहेड़िये जेहड़ा दो जग ख़ुशी दिखावे हूपहले ग़म टुकड़े दा मेटे वत रब्ब दा राह सुझावे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
जो दम ग़ाफ़िल सो दम काफ़िर मुर्शिद एह पढ़ाया हूसुणया सुख़न गइयाँ खुल अक्खीं चित्त मौला वल लाया हू
सुल्तान बाहू
कलाम
मुर्शिद हादी सबक़ पढ़ाया पढ़यों बिना पढीवे हूउँगलियाँ विच कंनां दित्तियां, सुणयों बिना सुणीवे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
मुर्शिद है शाहबाज़ इलाही रलया संग हबीबाँ हूतक़दीर इलाही छिक्कियां डोराँ मिलसी नाल नसीबाँ हू
सुल्तान बाहू
कलाम
मुर्शिद मैनूँ हज्ज मक्के दा रहमत दा दरवाज़ा हूकराँ तवाफ़ दुआले क़िबले हज्ज होवे नित्त ताज़ा हू
सुल्तान बाहू
कलाम
जद दा मुर्शिद कासा दितड़ा तद दी बेपरवाही हूकी होया जे रातीं जागें मुर्शिद जाग न लाई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
तो-को बताऊँ कैसे सखी रे मुर्शिद की अनोखी बतियाँडाले डाका लूटे तन-मन घायल करे नैन से छतियाँ
अब्दुल हादी काविश
कलाम
अलिफ़ अल्लाह चम्बे दी बूटी मुर्शिद मन विच लाई हूनफ़ी इसबात दा पानी मल्या हर रगे हर जाई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
कामिल मुर्शिद ऐसा होवे जो धोबी वाँगूँ छट्टे हूनाल निगाह दे पाक करे न सज्जी साबण घत्ते हू
सुल्तान बाहू
कलाम
कलमे दी कल तदाँ पई, जद मुर्शिद कलमा दिस्या हूसारी उमर कुफ़र विच जाली बिन मुर्शिद दे दस्याँ हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अलिफ़ इल्ला चम्बे दी बूटी मुर्शिद मन विच लान्दा हूजिस गत इते सोहणा राज़ी ओहो गत सिखांदा हू