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प्यास मस्तों की बुझाना साक़ियाआज पैमाने पे पैमाना रहे
मैं सराबों में भटकता रहूँ सहरा-सहरातुम मेरी प्यास को आईना दिखाने आओ
देखने वाले तिरे देखते हैं यूँ तुझ कोजैसे दरिया की तरफ़ प्यास का मारा देखे
कुछ नहीं सूझता जब प्यास की शिद्दत से मुझेछलक उठता है मिरी रूह में मीना तेरा
हर एक क़तरे में दरिया-ए-मा'रिफ़त है रवाँमगर नसीब हो क्यूँ कर प्यास ही कम है
रात फिर जश्न-ए-चराग़ाँ के लिए माँगा थामौज-ए-एहसास ने इक प्यास का शो'लः मुझ से
उस से मिलने की दु'आ हिज्र में यूँ माँगते हैंजिस तरह प्यास में पानी को प्यासा माँगे
नबी के लख़्त-ए-दिल प्यारे हैं बेकल प्यास के मारेबस अब तरसाओ मत उन को ये क्यूँ पानी की बंदी है
तू नज़र नज़र से पिलाए जा मेरी मस्तियों को बढ़ाए जातेरे दम-क़दम की ही ख़ैर हो अभी प्यास दिल की बुझी नहीं
प्यास दिल की बुझाने चले मगर अपनी मंज़िल से आगे गए हम निकलये जुनूँ देख कर दिल ने आवाज़ दी और आगे कहाँ उन का पनघट गया
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