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कलाम
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
कलाम
लाखों दर लाखों हुए हैं ग़र्क़ हो के बे-निशाँ
बहर-ए-वहदत से जो निकला वो शनावर और है
तसद्दुक़ अ’ली असद
कलाम
इश्क़ असानूँ लिस्याँ जाता कर के आवे धाई हू
जित वल वेखां इश्क़ दिसीवे ख़ाली जा न काई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
यार की मर्ज़ी के ताबे' यार का दम-भर के देख
'अर्ज़-ए-मतलब करके देखा तर्क-ए-मतलब करके देख
कामिल शत्तारी
कलाम
मा पर न करें हम सोतियाँ फ़रियाद अज़ाँ बेदाद-गरी
दिखला के झलक चमका के पलक दिलबर-ओ-जादू-नज़री
अज्ञात
कलाम
ख़ुदी के साज़ में है उ'म्र-ए-जावेदाँ का सुराग़
ख़ुदी के सोज़ से रौशन हैं उम्मतों के चराग़