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कलाम
ख़ुदा महफ़ूज़ रखे 'इश्क़ के जज़्बात-ए-कामिल सेज़मीं गर्दूं से टकराई जहाँ दिल मिल गया दिल से
अज़ीज़ मेरठी
कलाम
ख़ानक़ाह-ए-चिश्त में जिस ने क़दम पहला रखादूसरा उस का क़दम फिर अर्श-ए-बाला पर हुआ
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
ख़िज़्र-सुल्ताँ को रखे ख़ालिक़-ए-अकबर सरसब्ज़शाह के बाग़ में ये ताज़ा निहाल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
कलाम
ख़ुदा रखे सलामत तुम को रहना है अभी 'तुरफ़ा'किसी का राहबर बन कर किसी का रहनुमा होकर
तुरफ़ा क़ुरैशी
कलाम
है नहीं जन्नत में 'आबिद जिस की ख़्वाहिश है तुझेता अबद क़ाएम रखे वो जाम-ए-कौसर और है
तसद्दुक़ अ’ली असद
कलाम
दिल नहीं अ'र्श मगर रह-गुज़र-ए-अ'र्श तो हैदिल पे रखे नज़र इंसाँ तो फ़रिश्ता हो जाए
सीमाब अकबराबादी
कलाम
नहीं एहसास ऐ 'सीमाब' मुझ को अ'हद-ए-पीरी काख़ुदा रखे अभी तो जज़्बा-ए-दिल है जवाँ मेरा
सीमाब अकबराबादी
कलाम
मुँह से जो इंसाँ कहे उस का तो कुछ रखे लिहाज़क़ौल का तो पास हो इंसान को ऐसा दिल तो हो