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'अमीर'-ए-साबरी जाना सँभल कर कू-ए-जानाँ मेंमोहब्बत इक अमानत है अलम-नश्रह न हो जाए
सन से झोंका कोई आया जो तिरा बाद-ए-बहारचौंक उट्ठे मुर्ग़-ए-चमन नावक-ए-सय्याद आया
क्या इधर हो के बहा है कोई दरिया-ए-शराबझूमती क़िब्ले से क्या मस्त घटाएँ आई
ख़ाक पर नक़्श कफ़-ए-पा तिरे होवे क्यूँ करफ़र्श है दीदा-ए-हैरान तिरे कूचा में
मौत आए ‘रियाज़’-ए-ख़स्ता-जिगर ऐ काश मोहब्बत में उन कीसुनते हैं कि ऐसे मरने में पोशीदा हयातें होतीं हैं
हसरत-ए-दीद लिए मैं तो तड़पता हूँ मगरइम्तिहाँ लेते हैं वो मेरी शकेबाई का
बाँध ख़ामोश कमर जल्द से कर अ'ज़्म-ए-सफ़र मौज-ए-दरिया से न डरनाख़ुदा कश्ती का कुछ तेरा निगहबान नहीं तेरा हाफ़िज़ है ख़ुदा
महफ़िल यार में 'ख़ामोश' है लाज़िम तुझ कोमिस्ल-ए-परवाना पर-ओ-बाल जलाना जाना
गुल हँसा तो हँसा दिया किस नेरोया बुलबुल रोला दिया किस ने
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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