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कलाम
मंज़ूर आरफ़ी
कलाम
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
कलाम
दिमाग़-ओ-रूह यकसाँ चाहिएँ इंसान-ए-कामिल मेंये क्या तक़्सीम-ए-नाक़िस है ख़ुदी सर में ख़ुदा दिल में
सीमाब अकबराबादी
कलाम
मज़हबाँ दे दरवाज़े उच्चे राह रब्बाना मोरी हूपंडत ते मुलवाणे कोलों छुप छुप लंघिये चोरी हू
सुल्तान बाहू
कलाम
रूह-ए-रवाँ नग़्मा तुम नग़्मों का सोज़ साज़ मेंजान-ए-ख़याल-ओ-ख़्वाब तुम जान-ए-जहान-ए-नाज़ में
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
प्रेम-नगर की राह कठिन है सँभल-सँभल के चला करोराम राम को मन में जपो तुम ध्यान उसी में धरा करो
सय्यद महमूद शाह
कलाम
गूढ़ ज़ुल्मात अंधेर ग़ुबाराँ राह ने ख़ौफ़ ख़तर दे हूआब हयात मुनव्वर चश्मे साए ज़ुलफ़ अंबर दे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
राह फ़क़र दा परे परेरे, ओड़क कोई न दिस्से हून उथ पढ़न पढ़ावण कोई न उथ मसले क़िस्से हू
सुल्तान बाहू
कलाम
राह फ़क़र दा तद लधोसे जद हथ फड़योसे कासा हूतरक दुनिया तौ तद थ्योसे जद फ़क़ीर मिलयोसे ख़ासा हू