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कलाम
ये कैसे बाल बिखरे हैं बनी सूरत है क्यूँ ग़म कीख़बर पाई है बतलाओ तो किस दुश्मन के मातम की
एम. एस. जौहर
कलाम
आशिक़ पढ़न नमाज़ पिरम दी जैं विच हरफ़ न कोई हूजेहा केहा नीत न सक्के उथ दर्दमंद दिल ढोई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
मुलाक़ातें भी होती हैं मुलाक़ातों के बा'द अक्सरवो मुझ को भूल जाते हैं मैं उन को याद करता हूँ
हरी चाँद अख़्तर
कलाम
घिर-घिर के बादल आते हैं और बे-बरसे खुल जाते हैंउम्मीदों की झूटी दुनिया में सूखी बरसातें होती हैं
आरज़ू लखनवी
कलाम
हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँदअपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद