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मत सता इतना बुत-ए-काफ़िर मुझे बहर-ए-खु़दाशाद कर पहलू में अब आकर मुझे बहर-ए-खु़दा
सताओ हम को न तुम पर निसार हम भी हैंनिगाह-ए-लुत्फ़ के उमीद-वार हम भी हैं
नैरंगियाँ तुम्हारी हम को सता रही हैंप्यारी तेरी अदाएँ दिल को लुभा रही हैं
गर्दिशों के हैं मारे हुए न दुश्मनों के सताए हुए हैंजितने भी ज़ख़्म हैं मेरे दिल पर दोस्तों के लगाए हुए हैं
हर पल तुम्हारी याद सताए तो क्या करूँकोई ब-जुज़ तुम्हारे न भाए तो क्या करूँ
न सता दर पे पड़ा रहने दे क्या लेते हैंआह शह-ए-हुस्न फ़क़ीरों की दु'आ लेते हैं
दफ़्न कर के क़ब्र में बोली क़ज़ाअब यहाँ तुम सोते रहना चंद रोज़
जागे मिरे नसीब शब-ए-वस्ल इस तरहसोते में वो उठाते हैं मुझ को हिला के हाथ
गोर-ए-किसरा-ओ-फ़रीदूँ पे जो पहुँचूँ पूछूँतुम यहाँ सोते हो क्या हाल है ऐवानों का
बग़ल में ग़ैर की आज आप सोते हैं कहीं वर्नासबब क्या ख़्वाब में आ कर तबस्सुम-हा-ए-पिन्हाँ का
हाए वो सोते हैं और वस्ल की शब जाती हैदम ज़रा ले दिल-ए-बे-ताब जगा लूँ तो कहूँ
ले तो लूँ सोते में उस के पाँव का बोसा मगरऐसी बातों से वो काफ़िर बद-गुमाँ हो जाएगा
सभी काल का सनसा चूक गया मोहे रैन पड़ी हरि के दुवारेकभी सोते रहे कभी जाग पड़े नारायण हरे नारायण हरे
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