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कलाम
सुने कौन क़िस्सा-ए-दर्द-ए-दिल मेरा ग़म-गुसार चला गयाजिसे आश्नाओं का पास था वो वफ़ा-शि’आर चला गया
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
कूक दिला मत रब्ब सुणे चा दर्द-मंदाँ दियाँ आहींं हूसीना मेरा दर्दी भर्या अंदर भड़कण भाहीं हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अज़ल में जो सदा मैं ने सुनी थी कैफ़-ए-मस्ती मेंवही आवाज़ अब तक सुन रहा हूँ साज़-ए-हस्ती में
ख़ादिम हसन अजमेरी
कलाम
सुण फ़रियाद पीराँ दिआ पीरा अरज़ सुणी कन धर के हूबेड़ा अड़या विच कपराँ दे जिथ मच्छ न बैहन्दे डर के हू
सुल्तान बाहू
कलाम
उन को वो क़िस्से सुनाए हैं कि जी जानता हैलब पे नाले भी वो लाए हैं कि जी जानता है
नवाब मोइनुद्दौला बहादुर
कलाम
ये है अल्लाह का फ़रमान हर इक को सुना देनाजो अपने आप को बंदा समझता है सज़ा देना
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
रहने दो चुप मुझे न सुनो माजरा-ए-दिलमैं हाल-ए-दिल कहूँ तो अभी मुँह को आए दिल
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
ज़ाहर वेखां जानी ताईं नाले अंदर सीने हूबिरहों मारी नित फ़िरां मैं हस्सण लोक नाबीने हू