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कलाम
मुझे टाल तू न साक़ी तिरे दर का मैं गदा हूँमिरे जानाँ आज तुझ से मैं तुझी को माँगता हूँ
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
क्या सलात-ओ-सोम-ओ-सज्दा और क्या ईमाँ का तोलइक निगाह-ए-नाज़-ए-जानाना है कुल आ'लम का मोल
अब्दुल हादी काविश
कलाम
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गईदिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो होऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो