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कलाम
जो तेरी याद फ़ुर्क़त में मिरी दम-साज़ बन जाएतो मेरे दिल की हर धड़कन तिरी आवाज़ बन जाए
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
तुझे ढूँढती हैं नज़रें मुझे इक झलक दिखा जामिरी ज़िंदगी के मालिक मिरी ज़िंदगी में आ जा
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
ख़ुदी से बे-ख़ुदी में आ जो शौक़-ए-हक़-परसती हैजिसे तू नीस्ती समझा है ऐ ग़ाफ़िल वो हस्ती है
अमीर मीनाई
कलाम
छलक जाए जो मेरी बे-ख़ुदी-ए-दिल का पैमानाअभी हो जाए मय-ख़ाने से बाहर राज़-ए-मय-ख़ाना
तुरफ़ा क़ुरैशी
कलाम
कहाँ जाए नज़र और जाए तो जाए किधर हो करवो ख़ुद बैठे हुए हैं हाइल-ए-हद्द-ए-नज़र हो कर
सीमाब अकबराबादी
कलाम
रिंद जो मुझ को समझते हैं उन्हें होश नहींमैं मय-कदा साज़ हूँ मैं मय-कदा बर्दोश नहीं