मारू सोलहे महला 1- कुदरति करनैहार अपारा
कुदरति करनैहार अपारा ।। कीते का नाही किहु चारा ।।
जीअ उपाइ रिजकु दे आपे सिरि सिरि हुकमु चलाइआ ।।
हुकमु चलाइ रहिआ भरपूरे ।। किसु नेड़ै किसु आखां दूरे ।।
गुपत प्रगट हरि घटि घटि देखहु वरतै ताकु सबाइआ ।।
जिउ कउ मेले सुरति समाए ।। गुर सबदी हरि नामु धिआए ।।
आनद रूप अनूप अगोचर गुर मिलिऐ भरमु जाइआ ।।
मन तन धन ते नामु पिआरा ।। अंति सखाई चलणवारा ।।
मोह पसार नही संगि बेली बिनु हरि गुर किनि सुखु पाइआ ।।
जिस कउ नदरि करे गुरू पूरा ।। सबदि मिलाए गुरमति सूरा ।।
नानक गुर के चरन सरेवहु जिनि भूला मारगि पाइआ ।।
संत जनां हरि धनु जसु पिआरा ।। गुरमति पाइआ नामु तुमारा ।।
जाचिकु सेव करे दरि हरि कै हरि दरगह जसु गाइआ ।।
सतिगुरू मिलै त महलि बुलाए ।। साची दरगह गति पति पाए ।।
साकत ठउर नाही हरि मंदर जनम मरै दुखु पाइआ ।।
सेवहु सतिगुर समुंदु अथाहा ।। पावहु नामु रतनु धनु लाहा ।।
बिखिआ मलु जाइ अंम्रित सरि नावहु गुर सर संतोखु पाइआ ।।
सतिगुर सेवहु संक न कीजै ।। आसा माहि निरासु रहीजै ।।
संसा दूख बिनासनु सेवहु फिरि बाहुड़ि रोगु न लाइआ ।।
साचे भावै तिसु वडीआए ।। कउनु सु दूजा तिसु समझाए ।।
हरि गुर मूरति एका वरतै नानक हरि गुर भाइआ ।।
वाचहि पुसतक वेद पुरानां ।। इक बहि सुनहि सुनावहि कानां ।
अजगर कपटु कहहु किउ खुल्है बिनु सतिगुर ततु न पाइआ ।।
करहि बिभूति लगावहि भसमै । अंतरि क्रोधु चंडालु सु हउमै ।।
पाखंड कीने जोगु न पाईऐ बिनु सतिगुर भरमु न जाइआ ।।
कीरथ वरत नेम करहि उदिआना ।। जतु सतु संजमु कथहि गिआना ।।
राम नाम बिनु काउ सुखु पाईऐ बिनु सतिगुर भरमु न जाइआ ।।
निउली करम भुइअंगम भाठी ।। रेचक कुंभक पूरक मन हाठी ।।
पाखंड धरमु प्रीति नही हरि सउ गुर सबद महा रसु पाइआ ।।
कुदरति देखि रहे मनु मानिआ ।। गुर सबदी सभु ब्रहमु पछानिआ ।।
नानक आतम रामु सबाइआ गुर सतिगुर अलखउ लखाइआ ।।
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