बिरह और प्रेम का अंग - पिय को देहु मिलाय सखी मैं पइयाँ लागौं
बिरह और प्रेम का अंग - पिय को देहु मिलाय सखी मैं पइयाँ लागौं
जगजीवन साहेब
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रोचक तथ्य
पिय को देहु मिलाय, सखी मैं पइयाँ लागौं
पिय को देहु मिलाय सखी मैं पइयाँ लागौं
पिय को देहु मिलाय सखी मैं पइयाँ लागौं
रैनि दिना मोहिं नींद न आवै घर आँगन न सोहाय
मैं बौरी बपुरी ब्याकुल हौं उन्हैं दरद ना आय
कौन गुनाह भयो धौं महिं तें डारिन्ह सुधि बिसराय
बहुत दिनन तें बिछुरे महिं तें कहँ धौं रहे छिपाय
तलफत मीन बिना जल के ज्यों अस मोर जिया अकुलाय
भसम लगाय मैं भइउँ जोगिनियाँ अंत न उनका पाय
सूरति कानि छाँड़ि दइ इत उत देहौं भेंट कराय
निरति निरखि जौन छबि आइहु रूप सो देहुँ बताय
कौनी भाँति अहै केहिं मँदिल भेंट करन तहँ जाय
सत सेजासन बैठि चौमहले रवि ससि छबि छपि जाय
ब्रह्मा बिस्नु सिव का मन तहवाँ दिप्ति सो कहा न जाय
'जगजीवन' सखि हिलिमिलि हम तुम रहि चरनन लिपटाय
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