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होली

होली पर सूफ़ी संतों के प्रचलित कलाम सूफ़ीनामा में पढ़िए

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अब की होरी का रंग न पूछो

शाह तुराब अली क़लंदर

कैसे न मोरा जिव घबराय

शाह तुराब अली क़लंदर

यह वृजबाला नन्द का लाला

शाह तुराब अली क़लंदर

कौन करे अब तीरथ बान

शाह तुराब अली क़लंदर

हमरी सभा में वह आवत नाहीं

शाह तुराब अली क़लंदर

औ नंदलाल कुँवर बृजराव

शाह तुराब अली क़लंदर

को खेले वा सो होरी रे लोगो

शाह तुराब अली क़लंदर

जाको नहीं कोई देख सकत है

शाह तुराब अली क़लंदर

हम से पिया से लगी है आँख

मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी

देख सखी कहूँ रंग न डाले

शाह तुराब अली क़लंदर

फागुन मा पिया मोसे रिसाय

शाह तुराब अली क़लंदर

कारे कनहैया मैं गारी देत हूँ

शाह तुराब अली क़लंदर

जासो चहैं पिया खेलैं होरी

शाह तुराब अली क़लंदर

हमका तुम क्यूँ भुलावत

मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी

आज आए बलम मो से अटके

मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी

देखो आए महबूब-ए-सुबहानी

मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी

फाग रचय्यहौं अकेली पिया संग

शाह तुराब अली क़लंदर

होरी आएँ सजन कुछ बोलो

मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी

फाग सुहाग मोरे घर नित है

शाह तुराब अली क़लंदर

इतना कहा मोरा मान ले मोहन

मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी

ऐसी सूरत दिखाई

मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी

मोरे वाले सय्याँ आज रहो रे

मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी

होरी मां बृजोरी

मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी

कैसे तो होगी खिलाड़ी बुरी

मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी

बहियाँ पकड़ झिजकोरी लाल

मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी

आओ तो खेलूँगी होरी लाल जी

मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी

कन्हैया मो से जन बोलो

मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी

मो का जान के अपना कीन्हा रे

मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

बोलिए