दरूँ
(भीतर) ׃ आलम-ए-मलकूत—सूफ़ी मार्ग की चार अवस्थाएँ मानी जाती हैं. पहली नासूत है. ‘नासूत’, मनुष्य की पहली अवस्था है. इसमें साधक को ‘शरीअत’ के अनुसार चलना पड़ता है और नियमों का पालन करना पड़ता है. दूसरी अवस्था ‘मलकूत’ है. इसमें साधक को ‘तरीक़ा’ अर्थात् पवित्रता का सहारा लेना पड़ता है. ‘मलकूत’ में साधक का चित्त भौतिक जगत् की तुच्छताओं और आवर्जनाओं से ऊपर उठ जाता है और वह पवित्र हो जाता है. तीसरी अवस्था जबरूत की है. इस में साधक आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करता है. ‘जबरूत’ में साधक राग-विराग से छूट जाता है और उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है. चौथी अवस्था ‘लाहूत’ है, जो अंतिम आवस्था है और इसे सूफ़ी ‘हक़ीक़त’ कहते हैं. ‘हक़ीक़त’ से उनका आशय परम सत्य से है.)
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