ख़िर्क़ा
(गुदड़ी) ׃ त्याग और तपस्या का प्रतीक.
सूफ़ियों में ऐसी प्रथा है कि दीक्षा देते समय गुरु अपने शिष्य को गुदड़ी प्रदान करता है, इसे ‘ख़िरक़ा-उत-तसव्वुफ़’ भी कहते हैं. इसके कई लाभ हैं— प्रथम, शिष्य अपने गुरु की पोशाक़ धारण करता है, इससे बाहरी वेश-भूषा में भी गुरु की समानता प्राप्त हो जाती है. द्वितीय, गुरु द्वारा प्रदान किए हुए ख़िर्क़ा से शिष्य को अपने गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता है. तृतीय, कंधा देते समय गुरु की एक विशेष हालत होती है और ईश्वर की विशेष कृपा होती है, इसलिए गुरु अपने ज्ञान-वक्ष से शिष्य की अवस्था से परिचित हो जाता है और उसमे जो अभाव पाता है, उसकी पूर्ति कर देता है. चतुर्थ, ख़िर्क़ा की प्राप्ति के उपरांत शिष्य की गुरु के प्रति अधिक श्रद्धा, निष्ठा और आस्था हो जाती है.
कालोपरांत सूफ़ी-संप्रदायों में गुदड़ी धारण करने वाले सच्चे साधक प्रायः कम हो गए और कपटी अधिक हो गए, अतः यह छल-छंद का प्रतीक बन कर रह गई.
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