मैं पठई तौ लैन सुधि परि मैं रति मानी जाय
इससे उस समूह पर कोप की ओर संकेत होता है जिन्हें मारेफ़त (ज्ञान) तथा प्रेम के पूर्ण होने के उपरांत मुहम्मद साहब के नायेब होने का वस्त्र पहना कर दोषियों को पूर्ण बनाने के आशय से लौटा दिया जाता है। अब उनका हृदय किसी वस्तु की ओर कुछ भी आकर्षित हो जाय तो उन्हें महान् ब्रह्म की लज्जा इस प्रकार की चेतावनियों एवं पदवियों से संबोधित करती है। परमेश्वर के यह शब्द याद करो, “ताकि वह सच्चों से उनकी सत्यता के विषय में प्रश्न करे।” और “सच्चों को इस बात का भय दिलाओं कि मुझे लज्जा आती है।” लज्जा का संघर्ष बड़ा ही उत्कृष्ट संघर्ष है और प्रेम की लज्जा बड़ी ही उत्तम लज्जा है अतः उसके गीत परदे में गाओ, “झगड़ों की ल्यों सरिजन” (झगरो कीनौ साजन?) अर्थात् माशूके हक़ीक़ी (परम प्रियतम) ने अपने आशिक़ के साथ एक मस्ती का युद्ध छेड़ रखा है जिससे आशिक़ को सन्मार्ग दर्शाये। यह समाचार तो बुरा है किंतु एक विचित्र रहस्य है।
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