Font by Mehr Nastaliq Web
Sufinama

काँटा पर अशआर

काँटा या ख़ारः काँटा

और ख़ार दोनों मुतरादिफ़ अल्फ़ाज़ हैं। जो चीज़ें राह-ए-सुलूक में रुकावट बनती हैं उन्हें ख़ार या काँटा कहा जाता है। सालिक के लिए उसकी ख़ुदी सबसे बड़ी रुकावट है जो राह-ए-सुलूक में रुकावट पैदा करती रहती है।ख़ार या काँटा का इस्ति’माल गुल के मुक़ाबला में किया जाता है।या’नी हुस्न-ओ-बद-सूरती,अच्छाई-ओ-बुराई, आसानी-ओ-दुशवारी, ख़ुशी-ओ-ग़म महबूब-ओ-रक़ीब, उम्मीद और ना-उम्मीदी गुल-ओ-ख़ार के इस्तिआ’रे हैं।

वस्ल में झगड़ा बखेड़ा रात-भर उन से रहा

साही का काँटा अदू ने ज़ेर-ए-बिस्तर रख दिया

कौसर ख़ैराबादी

बाग़ से दौर-ए-ख़िज़ाँ सर जो टपकता निकला

क़ल्ब-ए-बुलबुल ने ये जाना मेरा काँटा निकला

मुज़्तर ख़ैराबादी

तअ'ल्लुक़ तो उस गुल से छोड़ा मगर

कलेजे में काँटा चुभा रह गया

मुज़्तर ख़ैराबादी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

संबंधित विषय

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए