काँटा पर अशआर
काँटा या ख़ारः काँटा
और ख़ार दोनों मुतरादिफ़ अल्फ़ाज़ हैं। जो चीज़ें राह-ए-सुलूक में रुकावट बनती हैं उन्हें ख़ार या काँटा कहा जाता है। सालिक के लिए उसकी ख़ुदी सबसे बड़ी रुकावट है जो राह-ए-सुलूक में रुकावट पैदा करती रहती है।ख़ार या काँटा का इस्ति’माल गुल के मुक़ाबला में किया जाता है।या’नी हुस्न-ओ-बद-सूरती,अच्छाई-ओ-बुराई, आसानी-ओ-दुशवारी, ख़ुशी-ओ-ग़म महबूब-ओ-रक़ीब, उम्मीद और ना-उम्मीदी गुल-ओ-ख़ार के इस्तिआ’रे हैं।
वस्ल में झगड़ा बखेड़ा रात-भर उन से रहा
साही का काँटा अदू ने ज़ेर-ए-बिस्तर रख दिया
बाग़ से दौर-ए-ख़िज़ाँ सर जो टपकता निकला
क़ल्ब-ए-बुलबुल ने ये जाना मेरा काँटा निकला
तअ'ल्लुक़ तो उस गुल से छोड़ा मगर
कलेजे में काँटा चुभा रह गया
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere