Sufinama

ख़्वाजा बुज़ुर्ग के पीर भाई

आतिफ़ काज़मी

ख़्वाजा बुज़ुर्ग के पीर भाई

आतिफ़ काज़मी

MORE BYआतिफ़ काज़मी

    शैख़ुश्शुयूख़ सुल्तानुल-हिंद ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती 562 हिज्री में तक्मील-ए-दर्स के बा’द बग़दाद पहुँच कर हज़रत मख़दूम-ए-आ’लम-ओ-आ’लमयान ख़्वाजा रज़ियल्लाहु अ’न्हु से बैअ’त हुए। बीस साल सफ़र-ओ-हज़र में पीर-ओ-मुर्शिद के मुलाज़िम-ए-ख़िद्मत रहे। सन 582 हिज्री में ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त-ओ-सनद-ए-इजाज़त हासिल फ़रमा कर हिन्द का रुख़ फ़रमाया जबकि यहाँ रागजगान-ए-चौहान की हुक्मुरानी थी। मुख़्तलिफ़ मक़ामात पर मुतअ’द्दिद बुज़ुर्गान-ए-सलफ़ से मुलाक़ात करते हुए सन 589 हिज्री में राजा पिथौरा के ख़ास अजमेर शरीफ़ में क़ियाम फ़रमाया।उसी साल शहाबुद्दीन ने हिंदुस्तान पर फिर ताख़्त की और ख़्वाजा की दुआ’ से सुल्तान-ए-मौसूफ़ कामयाब हुए। अ’हद-ए-अल्तमश में देहली सफ़र फ़रमाया।ब-तारीख़ 6 रजबुल-मुरज्जब सन 632 हिज्री में आफ़्ताब-ए-हिंद तेंतालीस साल तक ख़ित्ता-ए-हिंदुस्तान को अपने नूर से रौशन फ़रमा कर हमेशा के लिए ग़ुरुब हो यगा लेकिन फ़ैज़ान अभी तक जारी है और क़ियामत तक ये रौशनी रहेगी।

    इलाही ता बुवद ख़ुर्शीद-ओ-माही

    चराग़-ए-चिश्तियाँ रा रौशनाई

    हज़रत ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती (रहि·) के पीर भाइयों में हज़रत शैख़ुल-इस्लाम नज्मुद्दीन सोग़रा (रहि·), हज़रत ख़्वाजा फ़ख़्रुद्दीन गर्देज़ी (रहि·), हज़रत लंगोची (रहि·), हज़रत शैख़ मोहम्मद तुर्क (रहि·) लाएक़-ए-ज़िक्र हैं।

    शैख़ुल-इस्लाम नज्मुद्दीन सोग़्रा क़ुद्दिसा-सिर्रहु

    तारीख़-ओ-सीरत की किताबें इस वक़्त हमारे मुतालआ’ में हैं ।किसी किताब में आपके हालात मर्क़ूम नहीं हैं ।ऐसी सूरत में हम भी लब-कुशाई नहीं कर सकते अलबत्ता किताब सियरुल-औलिया की मुंदर्जा ज़ैल इ’बारत से ये मा’लूम होता है कि अ’ह्द-ए-अल्तमश में आप शैख़ुल-इस्लामी के ओ’हदा पर मामूर थे।

    सियरुल-औलिया- सफ़हा 54

    अज़ सुल्तानुल-मशाइख़ रिवायत मी-कुनंद चूँ शैख़ मुई’नुद्दीन अज़ अजमेर दर देहली आमद,शैख़ नज्मुद्दीन सोग़रा शैख़ुल-इस्लाम हज़रत देहलवी बूद, मियान-ए-शैख़ मुई’नुद्दीन-ओ-शैख़ नज्मुद्दीन मोहब्बत बूद। शैख़ मुई’नुद्दीन ब-दीदन-ए-शैख़ नज्मुद्दीन रफ़्त। (इला-आख़िरिहि)

    हुज़ूर महबूब-ए-इलाही से मर्वी है कि जब हज़रत ख़्वाजा बुज़ुर्ग अजमेर शरीफ़ से देहली तशरीफ़ लाए उस वक़्त शैख़ नज्मुद्दीन सोग़रा देहली के शैख़ुल-इस्लाम थे।

    ख़्वाजा बुज़ुर्ग और शैख़ुल-इस्लाम मौसूफ़ में बाहम मोहब्बत थी।चुनाँचे हज़रत ख़्वाजा बुज़र्ग आपको देखने के लिए आपके पास तशरीफ़ ले गए।

    हज़रत ख़्वाजा फ़ख़्रुद्दीन गर्देज़ी रज़ियल्लाहु अ’न्हु

    ख़्वाजा फ़ख़्रुद्दीन गर्देज़ी अस्त बे-शक बिल-यक़ीन हक़-परस्त-ओ-हक़-शनास-ओ-हक़-रसा-ओ-हक़-नुमा,शहरयार-ए-मुल्क-ए-फ़क़्र-ओ-शाह-ए-शाहान-ए-जहाँ ,रहबर-ए-राह-ए-हुदा-ओ-मुर्शिद-ए-अह्ल-ए-सफ़ा।

    (अर्शदी हैदराबाद)

    सन 549 में ब-मक़ाम-ए-गर्देज़ विलादत-ए-बा-सआ’दत अ’मल में आई। वालिद-ए-माजिद का इस्म-ए-गिरामी ख़्वाजा अहमद है। सिल्सिला-ए-नसब अमीरुल-मूमिनीन हज़रत अ’ली अ’लैहिस्सलाम पर तमाम होता है। सन 569 ई’स्वी में मख़दूम-ए-आ’लम-ओ- आ’लमयान हज़रत ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी रज़ीयल्लाहु अ’न्हु के दस्त-ए-हक़-परस्त पर बैअ’त हुए और इस तरह पीर-ओ-मुर्शिद के मुलाज़िम-ए-ख़िद्मत रहे कि ख़ादिमान-ए-ख़ास और मुरीदान-ए-बा-इख़्लास की सफ़ में आपको जगह मिली। जब हज़रत ख़्वाजा बुज़ुर्ग ने हिंदुस्तान की जानिब रुख़ फ़रमाया तो उस वक़्त पीर-ओ-मुर्शिद के हुक्म से हज़रत ख़्वाजा बुज़ुर्ग की ख़िदमत इख़्तियार फ़रमाई। चुनाँचे हज़रत ख़्वाजा बुज़ुर्ग के हमराह अजमेर शरीफ़ तशरीफ़ लाए। आप हज़रत ख़्वाजा बुज़ुर्ग के फूफी-ज़ाद भाई और बिरादर-ए-तरीक़त-ओ-ख़लीफ़ा हैं।हज़रत ख़्वाजा बुज़ुर्ग की सरकार में आपको रुसूख़-ए-कामिल और बारयाबी-ए-ख़ास का शरफ़ हासिल था।किताब गुल्ज़ार-ए-अबरार का बयान है।

    पीर-ओ-मुर्शिद अक्सर ब-ज़बान-ए-मुबारक-ए-ख़ुद ईं कलिमा मी- रानदंद कि फ़ख़्रुद्दीन फ़ख़्र-ए-मास्त।

    ख़्वाजा बुज़ुर्ग अक्सर ये फ़रमाते थे कि फ़ख़्रुद्दीन पर हमें फ़ख़्र है।

    फ़लाह-ए-दारैन, फ़ज़ाएल-ए-ख़्वाजा,तज़्किरातुल-मुई’न वग़ैरा में 26 रजब आपकी तारीख़-ए-विसाल बताई गई है।तारीख़ुस्सलफ़ में सन-ए-विसाल सन 243 हिज्री मर्क़ूम है।मज़ार-ए-मुबारक इस वक़्त गुंबद शरीफ़ (रौज़ा-ए-ख़्वाजा अजमेरी) के एक हुज्रा में है।दूसरे हुज्रा में आपकी अहलिया मोहतरमा का मर्क़द है।हज़रत साहिबज़ादगान-ए-मुजाविरान-ए-आस्ताना (रौज़ा-ए-ख़्वाजा बुज़ुर्ग) आप ही की औलाद में हैं।

    शैख़ सा’दी लंगोची(रहि·)-ओ-शैख़ मोहम्मद तुर्क (रहि·)

    इन दोनों बुज़ुर्गों के हालात बयान कने से फ़िलहाल हम क़ासिर हैं ।इसलिए कि इस वक़्त जिस क़द्र किताबें हमारे ज़ेर-ए-मुतालआ’ हैं वो तमाम इसके मुतअ’ल्लिक़ बिल्कुल ख़ामोश हैं।

    ख़िताब-ए-साहिब-ज़ादा

    आ’म तौर से बयान किया जाता है कि जिस वक़्त ताजदार-ए-दूदा-ए-चिश्त ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगान-ए-मुहिब्बुनबी मौलाना फ़ख़्रुल-मिल्लत वद्दीन देहलवी रज़ियल्लाहु अ’न्हु रौनक़ फ़ज़ा-ए-अजमेर हुए और ज़ियारत-ए-मर्क़द पर तहारत की सआ’दत हासिल फ़रमाई तो उस वक़्त ख़ादिमान-ए-नाएबुन्नबी को साहिबज़ादा कह कर याद फ़रमाया। चुनाँचे आज भी मौजूदा मशाइख़-ए-तरीक़त का यही दस्तूर-ए-मजाला क़ाएम है।

    (तारीख़ुस्सलफ़)

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

    GET YOUR PASS
    बोलिए