आतिफ़ काज़मी के सूफ़ी लेख
आस्ताना-ए-ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ में ख़ुद्दाम साहिब-ज़ादगान, सय्यिद-ज़ादगान औलाद-ए-हज़रत ख़्वाजा सय्यिद फ़ख़्रुद्दीन गर्देज़ी
ये नसब-नामा-ए-मौरुसी ख़ुद्दाम-ए-हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ रहमतुल्लाहि अ’लैह का है।ख़ुद्दाम-ए-ख़्वाजा का लक़ब इस ख़ानदान के हर फ़र्द की पहचान है।अपने मुरिस-ए-आ’ला हज़रत ख़्वाजा सय्यिद फ़ख़रुद्दीन गर्देज़ी रहमतुल्लाहि अ’लैह से इस लक़ब को मंसूब कर के इसे
"हाज़ा हबीबुल्लाहि मा-त-फ़ी हुब्बिल्लाह" का तहक़ीक़ी जाएज़ा
ख़्वाजा-ए-आ’ज़म सय्यद मुई’नुद्दीन चिश्ती अजमेरी हिंद में सिल्सिला-ए-आ’लिया चिश्तिया के सरख़ैल हैं|और आ’लम में मा’रूफ़ सिल्सिला-ए-नूर-बख़्शिया के बानी सय्यद मोहम्मद नूर बख़्श ने सिल्सिलतुल-औलिया में आपके बारे में तहरीर किया हैः “कान मिनल-औलियाइ-अज़्ज़ाहिदीन-वल-आ’बिदी-न
ख़्वाजा बुज़ुर्ग के पीर भाई
शैख़ुश्शुयूख़ सुल्तानुल-हिंद ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती 562 हिज्री में तक्मील-ए-दर्स के बा’द बग़दाद पहुँच कर हज़रत मख़दूम-ए-आ’लम-ओ-आ’लमयान ख़्वाजा रज़ियल्लाहु अ’न्हु से बैअ’त हुए। बीस साल सफ़र-ओ-हज़र में पीर-ओ-मुर्शिद के मुलाज़िम-ए-ख़िद्मत रहे। सन 582
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere