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"हाज़ा हबीबुल्लाहि मा-त-फ़ी हुब्बिल्लाह" का तहक़ीक़ी जाएज़ा

आतिफ़ काज़मी

"हाज़ा हबीबुल्लाहि मा-त-फ़ी हुब्बिल्लाह" का तहक़ीक़ी जाएज़ा

आतिफ़ काज़मी

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    ख़्वाजा-ए-आ’ज़म सय्यद मुई’नुद्दीन चिश्ती अजमेरी हिंद में सिल्सिला-ए-आ’लिया चिश्तिया के सरख़ैल हैं|और आ’लम में मा’रूफ़ सिल्सिला-ए-नूर-बख़्शिया के बानी सय्यद मोहम्मद नूर बख़्श ने सिल्सिलतुल-औलिया में आपके बारे में तहरीर किया हैः

    “कान मिनल-औलियाइ-अज़्ज़ाहिदीन-वल-आ’बिदी-न अल-मुर्ताज़ीन-अल-मुजाहिदी-न फ़िल-अर्बई’नात वल-ख़लवात, व-लहु मिनल-काशिफ़ाति-वल-अह्वालि-वल-मक़ामाति हज़ूज़ुन क़सीरा व-का-न-आ’रिफ़न बिल-उ’लूमिद्दीनिया -वल-मआ’रिफ़िल-यक़ीनिया”।

    ख़्वाजा-ए-आ’ज़म ने जब आ’लम-ए-ख़ाक-ओ-बार को ख़ैरबाद कहा, उस वक़्त आपकी पेशानी परः हाज़ा हबीबुल्लाहि मा-त फ़ी-हुब्बिल्लाह।(ये अल्लाह का दोस्त है जिसने अल्लाह की मुहबब्त में जान दे दी) के कलिमात ज़ाहिर हुए। अक्सर मुक़र्रिरीन और जदीद तज़्किरा-निगार ख़्वाजा-ए-आ’ज़म पर गुफ़्तुगू करते हुए उनके दीगर अहवाल-ओ-ता’लीमात का ज़िक्र तो करते हैं लेकिन इस वाक़िए’ के बारे में कम ही कलाम करते हैं। अगर्चे कुछ लोग मो’तरिज़ भी है कि शायद ऐसा मुम्किन नहीं या ये रिवायत भी तारीख़ी सुबूत से आ’री और महज़ सीना-ए-गज़ट का नतीजा है। हालाँकि इस रिवायत को अक्सर तज़्किरा-निगारों ने तवातुर के साथ अपने तज़्किरों में नक़ल किया है। बिल्कुल इसी तरह का वाक़िआ’ तवातुर के साथ शैख़ ज़ुन्नून मिस्री के अहवाल में भी मिलता है कि वफ़ात के बा’द उनकी पेशानी पे भी इसी तौर की तरहरीर ज़ाहिर हुई थी। मख़्दूम सय्यद अ’ली हुज्वैरी ने अपनी मा’रूफ़ तस्नीफ़ कश्फ़ुल-महजूब में ये रिवायत नक़ल की है। वो रक़म-तराज़ हैं :

    “जब हज़रत ज़ुन्नून मिस्री का इंतिक़ाल हुआ तो उस वक़्त उनकी पेशानी पे ये जुम्ला लिखा हुआ था हाज़ा हबीबुल्लाहि मा-त-फ़ी हुब्बिल्लाह क़तीलुल्लाह”

    शैख़ फ़रीदुद्दीन अ’त्तार निशापुरी ने भी तज़्किरतुल-औलिया में शैख़ ज़ुन्नून के अहवाल में इस रिवायत को नक़ल किया है अलबत्ता उन्होंन ने पेशानी पे ज़ाहिर होने वाली तहरीर मा-त-मिन सैफ़ के इज़ाफ़े के साथ नक़ल की हैः

    “हाज़ा हबीबुल्लाहि मात- फ़ी-हुब्बिल्लाहि व-हाज़ा क़तीलुल्लाहि मा-त- मिन सैफ़िल्लाह” (3)

    जैल में ख़्वाजा-ए-आ’ज़म के हवाले से अब तक दस्तियाब चंद हवाला-जात पेश-ए-ख़िदमत हैं जिनमें मज़्कूरा बाला रिवायत का ज़िक्र मिलता हैः

    हिन्द में चिश्तिया सिल्सिले का क़दीम-तरीन और अव्वलीन तज़्किरा सियरुल-औलिया है। इसके मुअल्लिफ़ सय्यद मुहम्मद बिन मुबारक किर्मानी मा’रूफ़ ब-मीर ख़ुर्द हैं। मीर ख़ुर्द ने ख़ावाजा-ए-आ’ज़म के अहवाल में इस रिवायत को तहरीर किया है| वो लिखते हैं :-

    “पेशानी-ए-मुबारक-ए-ख़्वाजी नबिश्त: पैदा आमद कि हबीबुल्लाहि मा-त फ़ी हुब्बिल्लाह” (4)

    अख़्बारुल-अख़्यार फ़ी-असरारिल-अबरार, शैख़ अ’ब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी की मा’रुफ़ तालीफ़ है। ये तज़्किरा 999 हिज्री में तालीफ़ हुआ। शैख़ मुहद्दिस देहलवी रक़म-रताज़ हैं :

    दर पेशानी-ए-हज़रत ख़्वाजा ईं नक़्श रा बा’द अज़ मौत नविश्तः पैदा आमद कि हबीबुल्लाहि मा-त- फ़ी-हुब्बिल्लाह.” (5)

    अख़्बारुल-अस्फ़िया दर अहवालुल-औलिया अ’ब्दुस्समद अंसारी की तालीफ़ है। वो 1014 हिज्री में इसकी तालीफ़ से फ़ारिग़ हुए। अख़्बारुल-अस्फ़िया में मज़्कूरा बाला रिवायत नक़ल हुई है। मुल्ला अ’ब्दुस्समद रक़म-तराज़ हैं:

    “बा’द अज़ फ़ौत ईं नक़्श अज़ नासिया-ए-ख़्वाजा पैदा बूद हबीबुल्लाहि मा-त-फ़ी हुब्बिल्लाहि.” (6)

    शहज़ादा मुहम्मद दारा शिकोह क़ादरी कई कुतुब के मुसन्निफ़ हैं। सफ़ीनतुल-औलिया उनकी मा’रूफ़ तालीफ़ है। ये तज़्किरा उन्हों ने 27 रमज़ान 1049 हिज्री को मुकम्मल किया।उन्हों ने भी रिवायत को अपने तज़्किरा में जगह दी है। वो तहरीर करते हैः

    “अज़ रिहलत बर पेशानी-ए-हज़रत ख़्वाजा नौशा याफ़्तंद कि हबीबुल्लाहि मा-त फ़ी हुब्बिलाह”. (7)

    मूनिसुल-अर्वाह शहज़ादी जहाँ आरा की तालीफ़ है। 27 रमज़ान 1049 हिज्री को ये तज़्किरा मुकम्मल हुआ। तज़्किरा ख़्वाजा-ए-आ’ज़म और उनके ख़ुलफ़ा-ए-किराम के अहवाल पर मुश्तमिल है जो शहज़ादी की ख़्वाजा-ए-आ’ज़म से अ’क़ीदत-ओ-मुहब्बत का आइना-दार है। मौसूफ़ा शहज़ादा दारा शिकोह की हमशीरा थीं और उन्हों ने भी मूनिसुल-अर्वाह में इस रिवायत को दर्ज किया हैः

    “बा’द अज़ रिहलत बर पेशानी –ए-नूरानी-ए-हज़रत पीर-ए-दस्तगीर नविश्तः आमद बूद कि हबीबुल्लाहि मा-त- फ़ी हुब्बिल्लाहि.” (8)

    सियरुल-अक़्ताब सिल्लसिला-ए-चिश्तिया साबरिया के मशाइख़ का तज़्किरा है और शैख़ अल्लाह दिया चिश्ती साबरी उ’स्मानी की तालीफ़ है। ये तज़्किरा 1036 हिज्री ता 1056 के दौरान तालीफ़ हुआ और सत्ताइस मशाइख़ के तज़्किरे पर मुश्तमिल है। शैख़ अल्लाह दिया ने इस रिवायत को सियरुल-अक़्ताब में नक़ल किया हैः

    “चूँ आँ हज़रत ब-रिहलत-ए-हक़ पैवस्त दर पेशानी-ए-मुबारक अज़ ग़ैब नविश्तः दीदंद हबीबुल्लाहि मा-त फ़ी-हुब्बिल्लाह.” (9)

    सियरुल-अक़्ताब के उर्दू तर्जुमे में मज़्कूरा बाला रिवायत कुछ इज़ाफ़ात के साथ आई है। मा’लूम होता है कि इज़ाफ़ा मुतर्जिम ने किया है क्योंकि मत्बूआ’ फ़ारसी मत्न और दीगर उर्दू तराजिम में ये इज़ाफ़ा मफ़्क़ूद हैः

    “तारीख़-ए-वफ़ात हज़रत साहिब की ख़्वाजा जी है और हुरूफ़-ए- मल्फ़ूज़ी से वो ही फ़क़्री तारीख़ है कि जो ग़ैब से पेशानी-ए-मुबारक पर तहरीर थाः हबीबुल्लाहि मा-त-फ़ि-हुब्बिल्लाह। इसमें दो अलिफ़ ज़ाएद हैं और दो लाम अल्लाह के निकालने से बे-कम-ओ-कास्त तारीख़ है। ऐसा मा’लूम होता है कि ख़ुदावंद करीम ने मल्फ़ूज़ी तारीख़ ली है और ये क़ाएदा के क़रीन है”. (10)

    शैख़ अ’ब्दुर्रहमान चिश्ती ने अपनी मा’रूफ़ तालीफ़ मिर्अतुल-असरार में ख़्वाजा-ए-आ’ज़म के अहवाल में इस रिवायत को नक़ल किया है। ये तज़्किरा 1045 हिज्री के दौरानिए में शुरुअ’ हो कर मुकम्मल हुआ। शैख़ अ’ब्दुर्रहमान रक़म-तराज़ हैं :

    “दर पेशानी-ए-मुबारक ब-ख़त-ए-सब्ज़ नविश्त: बूद पैदा आमद कि हबीबुल्लाहि मा-त-फ़ी-हुब्बिल्लाहि.” (11)

    मिफ़्ताहुल-आ’रिफ़ीन अ’ब्दुल फ़त्ताह बिन मुहम्मद नो’मान बदख़्शी की तीलीफ़ है।अ’ब्दुल फ़त्ताह के वालिद-ए-गिरामी मीर मुहम्मद नो’मान, शैख़ अहमद हिंदी मा’रुफ़ ब-मुजद्दिद अल्फ़-ए-सानी के मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा थे। मिफ़्ताहुल आ’रिफ़ीन में आख़िरी इंद्राज 1096 हिज्री का है |पस यही उसकी तक्मील का साल ख़याल किया गया है। मिफ़्ताहुल-आ’रिफ़ीन में भी मज़्कूरा रिवायत नक़ल की गई है-

    “बा’द अज़ रिहलत बर पेशानी-ए-ईशां नविश्तः याफ़्तंद कि हाज़ा हबीबुल्लाहि मा-त- फ़ी-हुब्बिल्लाह”. (12)

    शैख़ मुहम्मद अकरम चिश्ती साबरी बरासवी ने भी अपनी तालीफ़ इक़्तिबासुल-अनवार में इस रिवायत को शामिल किया है। ये तज़्किरा 1142 में पाया-ए-तकमील को पहुँचा। शैख़ अकरम लिखतें हैः

    “दर-ए-पेशानी-ए-मुबारक–ए-वय ब-ख़त्त-ए-सब्ज़ नविश्त: पैदा आमद हबीबुल्लाहि मा-त- फ़ी- हुब्बिल्लाह”. (13)

    अख़्बारुल-जमाल मुलक़्क़ब ब-अश्जारुल-जमाल राजी मुहम्मद बिन यार मुहम्मद की तीलीफ़ है जिसे उन्हों ने ग़ुर्रा–ए-मुहर्रम 1153 हिज्री में मुकम्मल किया |इस में भी मज़्कूरा रिवायत मौजूद है। वो लिख़ते हैः

    “बा’द अज़ रिहलत हम-चूँ ज़ुन्नून मिस्री बर पेशानी-ए-हज़रत ख़्वाजा बुज़ुर्ग नविश्तः याफ़्तंद कि हबीबुल्लाहि मा-त- फ़ी-हुब्बिल्लाह”. (14)

    वजीहुद्दीन अशरफ़ का मुअल्लिफ़ा बह्र-ए-ज़ख़्ख़ार सूफ़िया का एक मुफ़स्सल तज़्किरा है। इसका साल-ए-तक्मील तो तज़्किरे में कहीं मर्क़ूम नहीं अलबत्ता इसमें 1202 हिज्री के अहवाल नक़ल हुए हैं और तेरहवीं सदी हिज्री के पहले अ’श्रे में ही इसकी तक्मील हुई होगी। इसमें भी मज़्कूरा रिवायत मौज़ूद हैः

    “बा’द-ए-वफ़ात बर पेशानी-ए-मुबारक ब-ख़त्त-ए-सब्ज़ इ’लानिया नविश्तः याफ़्तंद हबीबुल्लाहि मा-त- फ़ी -हुब्बिल्लाहि व-शैख़ अ’ब्दुल हक़ ईं हिकायत रा तस्हीह नमूद:” (15)

    मे’यार-ए-सालिकान-ए-तरीक़त मीर अ’ली शेर क़ानिअ’ ततवी (वफ़ात1203 हिज्री) का मा’रूफ़ तज़्किरा है। जिसे मुअल्लिफ़ ने 1202 हिज्री में मुकम्मल किया। इसमें भी मज़्कूरा बाला रिवायत नक़ल हुई हैः

    “बा’द बर पेशानानी-ए-वय मर्क़ूम बूद हबीबुल्लाहि-मा-त फ़ी- हुब्बिल्लाह.” (16)

    मनाक़िबुल-मुहब्बीन में शैख़ नज्मुद्दीन सुलैमानी ने भी इस रिवायत को नक़ल किया है। वो लिखते हैं:

    “वक़्ते कि ख़्वाजा बुज़ुर्ग फ़ौत शुदंद बर जबीन-ए-अतहर-ए-ईशान हुरूफ़ सब्ज़ ब-ईं इ’बारत ज़ाहिर शुदः-बूद कि हबीबुल्लाहि मा-त- फ़ी हुब्बिल्लाह”. (18)

    उन्नीसवीं और बीसवीं सदी के तज़्किरों में भी इस रिवायत की बाज़-गश्त मिल जाती है। ज़ैल में चंद मज़ीद हवाला-जात गुज़िश्तः दो सदियों में तर्तीब पाने वाले तज़्किरों से ज़ैल में नक़ल किए जाते हैं :

    ख़ज़ीनतुल-अस्फ़िया मुफ़्ती ग़ुलाम सरवर लाहौरी की तालीफ़ है और उन्नीवीं सदी का निहायत मा’रूफ़-ओ-मक़्बूल तज़्किरा है। इस तज़्किरे में भी मज़्कूरा रिवायत मौजूद है। मुफ़्ती सरवर मरहूम रक़म-तराज़ हैं :

    “चूँ आँ सरवर-ए-औलिया ब-रहमत-ए-किब्रिया पैवस्त, बर पेशानी-ए- मुबारक-ए-आँ-जनाब अज़ ग़ैब ब-ख़त्त्-ए-रौशन कलिमा, हबीबुल्लाहि मा-त- फ़ी हुब्बिल्लाह.” (18)

    मौलवी मुश्ताक़ अहमद अंबेठवी चिश्ती साबरी ने अपने तज़्किरे अनवारुल-आ’रिफ़ीन में इस रिवायत को नक़ल किया है|वो लिखते हैः

    “हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ का कमाल इस से समझ लेना चाहिए कि वफ़ात के वक़्त आपकी पेशानी-ए-मुबारक पे ग़ैब से ये कलिमा ज़ाहिर हो गया हबीबुल्लाहि मा-त-फ़ी हुब्बिल्लाह.” (19)

    नवाब मिर्ज़ा आफ़्ताब बेग उ’र्फ़ मुहम्मद नवाब मिर्ज़ा बेग चिश्ती निज़ामी देहलवी ने भी अपनी मा’रूफ़ तालीफ़ तुहफ़तुल-अबरार में मज़्कूरा बाला रिवायत को नक़ल किया है। वो लिखते हैं।

    “पेशानी-ए-मुबारक पर ख़त्त-ए-सब्ज़ ये कलिमा हाज़ा हबीबुल्लाहि- मा-त- फ़ी-हुब्बिल्लाह लिखा पाया”। (20)

    ऐसे ही अ’ल्लामा शम्सुल-हसन शम्स बरेलवी जो बीसवीं सदी के मा’रूफ़ मुतर्जिम-ओ-मुसन्निफ़ हुए हैं उन्हों ने भी अपनी तालीफ़ लम्आ’त-ए-ख़्वाजा में इस रिवायत को नक़ल किया है और ख़्वाजा-ए-आ’ज़म के अहवाल पे नवाब ख़ादिम हसन ख़ादिम अजमेरी की तालीफ़ मुई’नुल-अर्वाह में भी ये रिवायत मौजूद है। अब आख़िर में इस रिवायत के बारे में जामे’-ए-शरीअ’त-ओ-तरीक़त शाह वलीउल्लाह मुहद्दिस देहलवी का हवाला नक़ल किया जाता है। शाह वलीउल्लाह ने अपनी मा’रूफ़ तस्नीफ़ अल-क़ौलुल-जमील में तहरीर किया हैः

    “ख़्वाजा का विसाल होते ही आपकी पेशानी-ए-मुबारक पर ये नक़्श ज़ाहिर हुआ। हाज़ा हबीबुल्लाहि मा-त-फ़ी हुब्बिल्लाहि.” (21)

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