Font by Mehr Nastaliq Web
Sufinama

ज़िक्र-ए-मुबारक ख़्वाजा फ़रीद-उल-हक़ वद्दीन

हसरत अजमेरी

ज़िक्र-ए-मुबारक ख़्वाजा फ़रीद-उल-हक़ वद्दीन

हसरत अजमेरी

इस्म-ए-मुबारक आपका मस’ऊद और लक़ब फ़रीदुद्दीन गंज बख़्श है हुज़ूर के वालिद-ए-बुज़ुर्ग-वार का नाम जमालुद्दीन और वालिदा साहिबा का इस्म-ए-शरीफ़ बीबी क़ुरैशम ख़ातून था। आप हज़रत –ए-’उम्र की औलाद से हैं।

मंक़ूल है कि आपकी वालिदा साहिबा निहायत पारसा थीं। हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया फ़रमाते हैं कि एक शब को एक चोर आपकी वालिदा साहिबा के घर में आया। ख़ुदा की क़ुद्रत से ना-बीना हो गया। चोर ने जाना कि ये मकान ज़रूर किसी वली-ए-कामिल का है। ख़ुदा से ’अहद किया कि अगर मेरी आँखें रौशन हो जाएंगी तो फिर तमाम ’उम्र चोरी का नाम लूँगा और मुसलमान हो जाऊँगा। जब उस राबिआ’-ए-वक़्त को उस चोर का दिली राज़ मा’लूम हो गया, ख़ुदा से उसकी आँखें रौशन होने के की दु’आ माँगी। चुनाँचे वो चोर बीना हो गया और बाहर चला गया। दूसरो रोज़ अपने अहल-ओ-’अयाल के चोर आपकी वालिदा साहिबा के हाथ पर मुसलमान हो गया।

नक़्ल है जब आप अपनी वालिदा साहिबा के शिकम में आए, वालिदा साहिबा हुज़ूर की दिन रात याद-ए-इलाही में मसरूफ़ रहती थीं। बा’द मुन्क़ज़ी होने अय्याम-ए-हमल के रमज़ान शरीफ़ सन 569 हिज्री को वो क़ुतुब-ए-’आलम पैदा हुए। उस रोज़ ब-सबब-ए-अब्र चाँद नज़र आया और रोज़े में इख़्तिलाफ़ पड़ा। उस वक़्त के एक वली-ए-कामिल ने फ़रमाया कि आज की शब हज़रत जमालुद्दीन के हाँ एक फ़रज़ंद पैदा हुआ है और वो क़ुतुबुल-अक़्ताब होगा। अगर उस बच्चा ने अपनी माँ का दूध पी लिया है तो रोज़ा नहीं है और जो दूध नहीं पिया तो रोज़ा है। जब हज़रत की वालिदा साहिबा से दरयाफ़्त किया गया तो मा’लूम हुआ कि फ़ज्र से दूध नहीं पिया है। उन वलीउल्लाह के कहने के मुताबिक़ सब शहर ने रोज़ा रखा।

मंक़ूल है कि जब आप दो बरस के हो गए तो वालिदा साहिबा ने आपकी जो निहायत कामिला और राबिआ’-ए-वक़्त थीं, आपको नमाज़ तलक़ीन की। बाबा साहब ने ’अर्ज़ की कि नमाज़ पढ़ने से क्या फ़ाइदा होता है। बीबी साहिबा ने इर्शाद फ़रमाया नमाज़ी को शकर मिला करती है (क्यूँ कि अकसर शकर से लड़कों को रग़बत हुआ करती है) जब बाबा साहब नमाज़ के लिए मुसल्ला पर खड़े होते तो बीबी साहिबा मुसल्ले के नीचे शकर रख दिया करतीं। एक रोज़ बीबी साहिबा अपनी बिरादरी के किसी के मकान पर गईं कि नमाज़ का वक़्त गया। बाबा साहिब मा’मूल-ए-नमाज़ में मशग़ूल हो कर जब नमाज़ अदा कर चुके तो बाद दु’आ हस्ब-ए-’आदत मुसल्ले को उठाया। गंज-ए-शकर देखा कि आपने भी खाई और दूसरे बच्चों को भी दी। जब वालिदा साहिबा आज की तशरीफ़ लाईं ’अर्ज़ किया कि जब तुम्हारे पास नमाज़ पढ़ता था तो थोड़ी सी शकर मिलती थी। आज अल्लाह ने मुझको बहुत सी शकर दी। बीबी साहिबा ने मा’लूम किया कि ये फ़रज़न्द ख़ुदा के दोस्तों में होगा।

अख़बारुल-अख़्यारमें लिखा है कि जब 5 मुहर्रम हुई आप पर रहमत-ए-इलाही ग़ालिब हुई। नमाज़-ए-’इशा जमा’अत में अदा की और बे-होश हो गए। एक घड़ी के बा’द जब होश आया, पूछा क्या हम ने नमाज़ अदा कर ली।ख़ादिमों ने इस्बात में जवाब दिया। फ़रमाया एक बार फ़िर अदा कर रूँ ख़ुदा जाने फिर क्या हो। दूसरी बार फिर नमाज़ अदा की इसी तरह आपने तीन बार नमाज़ पढ़ी और फ़रमाया या-हय्यु या-क़य्यूम और जान ब-हक़ तसलीम हुए। आपका मज़ार-ए-फ़ैज़-अनवार अजोधन (जिसे पाक पट्टन शरीफ़ कहते हैं) में है।

स्रोत :

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY
बोलिए