पीर-ए-दस्त-गीर हज़रत अब्दुल क़ादिर की करामतों का बयान
हुज़ूर का इस्म-ए-मुबारक सय्यद ’अब्दुल क़ादिर था। ख़िताबात आप के दस्त-गीर-ओ-ग़ौस-उल-आ’ज़म वग़ैरा हैं। करामातें जनाब-ए-वाला से इस क़दर ज़ुहूर में आई हैं कि क़लम ताब-ए-रक़म नहीं ला सकता मगर जनाब-ए-अक़्दस के कमालात-ए-मशहूर बयान किए जाते हैं।
रिसालत-उल-औलिया में है कि एक ’औरत को मुतवातिर बीस लड़कियाँ पैदा हुईं। शौहर उसका लड़कियों की कसरत से निहायत हैरान और ग़म-ए-फ़रज़ंद में निहायत परेशान था। एक रोज़ अपनी ज़ौजा से कहा कि तेरे बत्न से एक लड़का भी नहीं हुआ। बदीं वजह मैं तुझको तलाक़ दे दुंगा। वो ’औरत ये ख़बर सुन कर हुज़ूर की ख़िदमत में हाज़िर हुई और ’अर्ज़ किया कि या पीर-ए-दस्त-गीर ख़ुदावंद करीम ने अपनी रहमत से मुझ कनीज़ के बीस लड़किया दीं लेकिन मेरा ख़ाविंद मुझसे ना-ख़ुश है और मुझको तलाक़ देना चाहता है। अब हुज़ूर के सिवा मेरा कोई अनीस नहीं है।ख़ुदा के लिए आप मेरे हाल-ए-ज़ार पर रहम कीजिए। ग़ौस-ए-पाक ने अपनी ज़बान से इर्शाद फ़रमाया परेशान न हो ख़ुदा तुझको फ़रज़ंद-ए-अर्जमंद ’अता करेगा और तेरा शौहर तुझको तलाक़ न देगा। उस ’औरत ने ख़याल किय कि हज़रत ने ये कलिमा शायद मेरी तशफ़्फ़ी के लिए फ़रमा दिया है। हुज़ूर ने ये हाल कश्फ़-ए-बातिन से मा’लूम कर के उसको अपने पास बुला कर इर्शाद किया कि ऐ ग़म-ज़दा ’औरत जा कि ख़ुदा ने अपने करम से सब लड़कियों को लड़का बना दिया। वो ’औरत ये सुन कर घर पर दौड़ी हुई आई। तो क्या देखती है कि सब लड़कियाँ लड़के हो गए हैं। इस ने’मत-ए-ख़ुदा-दाद का ’औरत ने निहायत शुक्र किया। और हुज़ूर के सिलसिला में मुरीद हो गई।
नक़्ल है कि एक ’औरत ग़ौस-उल-आ’ज़म से मोहब्बत रखती थी और हर वक़्त ख़िदमत-ए-अक़्दस में हाज़िर रहती। एक शख़्स शैतान-सीरत उस हूर-सूरत परी-तिमसाल के जमाल पर निहायत शेफ़्ता था और हमेशा उसके पीछे लगा रहता। इत्तिफ़ाक़न एक दिन वो ख़ातून-ए-बा’इस्मत किसी ज़रूरी काम के लिए शहर के बाहर निकली ।वो नाबकार भी शैतान के इग़्वा से उसके साथ हो लिया। जब उसने चाहा कि बीबी से बुरा काम करे उसी वक़्त ना’लैन-ए-मुबारक ग़ौस-ए-पाक की मिस्ल-ए-बर्क़ के हवा पर उड़ीं और उस मल’ऊन के नापाक सर पर पड़ने लगीं हत्ता कि आन-ए-वाहिद में वो बद-बख़्त मर गया। उस बीबी ने ये सब क़िस्सा पीर-ए-दस्त-गीर की ख़िदमत में ’अर्ज़ किया। अल्लाह अल्लाह क्या शान-ए-ग़ौस-उल-आ’ज़म है।
मंक़ूल है कि एक रात ग़ौस-ए-पाक ने ख़ुदा-वंदा-ए-’आलम को देखा। फ़रमान हुआ कि ऐ ’अब्दुल क़ादिर हम से कोई हाजत तलब कर ।’अर्ज़ की कि ऐ ख़ुदावंद-ए-करीम जिस क़दर मरातिब थे वो पहले से तूने सब को तक़सीम कर दिए अब और कौनसा दर्जा बाक़ी है जिस की मैं ख़्वाहिश करूं। दर्जा-ए-नबूवत हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा अहमद-ए-मुज्तबा सलल्ललाहु ’अलैहि वसल्लम को मरहमत फ़रमाया, मर्तबा-ए-विलायत हज़रत ’अली शेर-ए-ख़ुदा को, दर्जा-ए-शहादत हज़रत इमाम हुसैन को ’अता फ़रमाया। फ़रमान-ए-एज़दी हुआ कि ऐ महबूब मेरे ग़मग़ीन मत हो कि हम ने तुझ को रुत्बा-ए-क़ादिरयत बख़्शा और तमाम औलिया का रहबर बनाया।
ज़िक्र-ए-मुबारक हज़रत क़ुतुब-उल-’आरिफ़ीन ग़ौस-उल-मशाइख़ हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ चिश्ती संजरी अजमेरी
नाम-ए-नामी-ओ-इस्म-ए-गिरामी आपका मु’ईनुद्दीन और ख़िताबात हुज़ूर के हबीब,ग़ौस-उल-मशाइख़ और ग़रीब नवाज़ वग़ैरा हैं। वालिद-ए-बुज़ुर्ग-वार आप सय्यद ग़यासुद्दीन रज़ि-अल्लाहु ’अन्हु सादात-ए-संजरी से हुसैनी सय्यद हैं।
आपकी करामतें-ओ-कमालात इस क़दर हैं कि हीता-ए-बयान में आना दुश्वार है। मगर तबर्रुकन कुछ करामतें बयान की जाती हैं ताकि नाज़िरीन –ए-वाला तम्कीन-ए- हम ख़ुर्मा-ओ-हम-सवाब के मिस्दाक़ ठहरें।
मंक़ूल है कि हज़रत ख़्वाजा बुज़ुर्ग को ’अजीब रियाज़त-ओ-मुजाहिदा पेश आया। सत्तर बरस आपका वुज़ू न टूटा। मुदाम साइमुद्दहर-ओ-क़ियामुल-लैल रहे। आप वुज़ू-ए-’इशा से नमाज़-ए-फ़ज्र अदा करते थे। और शाम को छुहारे से रोज़ा इफ़्तार करते। क़ुरआन शरीफ़ दिन में दो बार ख़त्म करे थे और हर ख़त्म पर निदा-ए-ग़ैबी आती थी कि ऐ मु’ईनुद्दीन हम ने तेरा ख़त्म क़ुबूल किया।
नक़्ल है जब ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ अपने पीर-ओ- मुर्शिद के हमराह मक्का मुकर्रमा में पहुँचे आपके पीर –ओ- मुर्शिद हज़रत ’उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह ’अलैह ने आपका हाथ पकड़ कर कुछ दु’आ माँगी। ग़ैब से निदा आई कि मु’ईनुद्दीन मेरा दोस्त है मैं ने इसको क़ुबूल किया। चुनाँचे बा’द-ए-रेहलत भी ये मज़्मून पेशानी-ए-अनवर पर ब-ख़त-ए-’अरबी मर्क़ूम पाया गया। “हाज़ा हबीबुल्लाहि मात-फ़ी हुब्बिल्लाहि”।
सियरुल-अक़्ताब से नक़्ल है कि एक बार हज़रत ख़्वाजा मु’ईनुद्दीन चिश्ती रज़ि-अल्लाहु ’अन्हु वुज़ू कर रहे थे कि यकायक एक ’औरत रोती हुई ख़िदमत-ए-बा-बरकत में हाज़िर हो कर दाद-ख़्वाह हुई कि या हज़रत मुझ पर ख़ुदा के वास्ते रहम कीजिए और मेरी इम्दाद फ़रमाइए। शहर के हाकिम ने लोगों के बहकाने से मेरे लड़के को बे-क़ुसूर फाँसी पर चढ़ा दिया। आपने उस ग़म-ज़दा ’औरत की तस्सली फ़रमा कर मुकर्रर उस से हाल दरयाफ़्त फ़रमाया। जब उसकी बात का यक़ीन हो गया। फ़ौरन ’असा-ए-मोमुबारक दस्त-ए-हक़ में ले कर म’अ मुरीदों के उस मज़लूम के क़रीब पहुँचे और दस्त-ए-मुबारक से उसके सर को सूली से उतार कर धड़ में जोड़ा और ’असा-ए-शरीफ़ से उसकी जानिब इशारा कर के फ़रमाया ऐ मज़लूम तू अगर ना-हक़ मारा गया है तो हुक्म-ए-ख़ुदा से ज़िंदा हो जा। और सूली से उतर आ। ब-मुजर्रद इस कलाम के वो मक़्तूल ज़िंदा हो गया और हुज़ूर के पाँव पर गिर पड़ा और हुज़ूर के हाथ पर बै’अत की।
मंक़ूल है कि अद्ना तसर्रुफ़ ख़्वाजा बुज़ुर्ग का ये था कि जिस पर आपकी नज़र पड़ जाती थी तमाम ‘उयूब से आन-ए- वाहिद में पाक हो जाता और फ़िल-फ़ौर अपने गुनाहों से इ होकर दाइरा-ए-इस्लाम में दाख़िल हो जाता था।
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