सुकवि उजियारे - पंडित मयाशंकर याक्षिक
रोचक तथ्य
Sukavi Ujiyare, Anka- 4, 1933
रत्नपूर्ण वसुंधरा में विविध रत्न छिपे पड़े हैं। खोज करने से ही उन का पता चलता है। सब के सामने आने पर, रत्न-पारखी उन की परीक्षा कर के उन का मूल्य निर्धारित करते हैं। हिंदी के अनेक ग्रंथ-रत्न क़स्बों और गाँवों में पड़े नष्ट हो रहे हैं। अनुसंधान करने पर कितने ही उत्तम प्राचीन कवियों का पता चलता है। ऐसे ही एक कविरत्न का परिचय हम पाठकों के समक्ष उपस्थित करते हैं।
हिंदी साहित्य के इतिहास-लेखकों को शायद अभी तक सुकवि उजयारे का पता नहीं था। शिवसिंहसरोज वा कविता-कौमुदी में इन का नाम नहीं आया है, और न मिश्र-बंधु-विनोद में ही इन का उल्लेख है। सुकवि उजयारे-लिखित दो ग्रंथ हमारे देखने में आए हैं- एक जुगल-विलास और दूसरा रस-चंद्रिका। जुगल-विलास में कवि ने अपना वंश-वर्णन किया है----
महा गुनाढय सनाढय कुल, जहाँ धनाढय अपार।
मही माहि मूढयोतिया, भागीरथी उदार।।
नंदलाल तिन के तनय, नवल साह सुअ तासु।
तिन सुत उजियारे कियो, यह रस जुगुलप्रकास।।
व्यास बंस अवतंस हुअ, घासीराम प्रकास।
तिन सुत सुत संबंध कवि, किअ ब्रंदाबन वास।।
इस से विदित होता है कि कवि का निवास स्थान वृन्दाबन था। परंतु प्राचीन कविया की चाल के अनुसार राज दरबारा का आश्रय ढूँढन के लिए उजयारे जी ने देश में भ्रमण भी काफ़ी किया था। इन की कविता में जयपुर, भरतपुर, हाथरस इत्यादि स्थानों का वर्णन है और वहाँ के राजाओं की प्रशंसा के छंद मौजूद हैं। जुगुल-विलास और रसचंद्रिका में जयपुर के महाराज प्रतापसिंह, भरतपुर राज्य-संस्थापक महाराज सूरजमल के पुत्र नवलसिंह, हाथरस के ठाकुर दयाराम इत्यादि के यश वर्णित है। मालूम होता है इन्हीं राजाओं के दरबारों में सुकवि उजयारे को आश्रय मिला था। इस से अधिक बातें सुकवि महोदय के बारे में नहीं मालूम हो सकी है।
जुगुल-विलास संवत् 1837 में चैत्र बदी 7 रविवार को समाप्त हुआ था। हाथरस के रहने वाले चैनसुख के पुत्र जुगल दीवान के लिए यह ग्रंथ लिखा गया था। इस में भावभेद, रसभेद इत्यादि का वर्णन है। रस और उन के विभाव, अनुभाव आदि लक्षण तथा उदाहरण सहित विस्तार-पूर्वक लिखे गए है। बीच बीच में प्रश्न और उत्तर के रूप में विषय को समझाने का प्रयत्न किया गया है। जुगल-विलास में रसों का वर्णन अत्यंत उत्तम ढंग से किया गया है।
दूसरा ग्रंथ रस-चंद्रिका जयपुर निवासी छाजूराम के पुत्र दौलतराम वैश्य के लिए लिखा गया था। इस में बहुत छोड़े छंद नवीन है। ग्रंथ का अधिक भाग जुगुल-विलास में बिलकुल मिलता है। रस-चंद्रिका में केवल जयपुर वर्णन, दौलत राम की प्रशंसा आदि के छंद अधिक है।
अब हम सुकवि उजियारे की कविता के कुछ नमूने उद्धृत करते है----
गंगा-स्नान से शिव स्वरूप की प्राप्ति का वर्णन अनेक संस्कृत और हिंदी कवियों ने किया है। किंतु, उजयारे जी का इस विषय का छंद अपने ढंग का अनोखा है----
गंगान्हान जात है न मानत है मेरी सीख,
जानत न जाने कहा बाकी टेक टरेगी।
पाप को समूह सबै जात खेम जर जात,
एक हूँ न हाथ रहै तीनों साँप हरेगी।।
उजयारे देह लैके देय वा न देय फेर,
जौ पै कहूँ दैहै तो भुजंग अंग भरेगी।
भस्म लगाय आग आँख पजराय,
कालकूट कंठ लाय तेरे मूड़ पाँय धरेगी।.
गंगा जी की महिमा कितने सुंदर ढंग से दिखाई गई है। गंगा स्नान से मोक्ष होने की पूरी संभावना है। यदि शरीर फिर मिला भी तो वह शिव का रूप होगा और गंगा सिर पर चढ़ कर बहेगी। व्याज-निंदा का कैसा सुंदर उदाहरण है।
सरस्वती जी की स्तुति भी ऐसी ही भाव-पूर्ण है-----
सारदा बुद्धि विसारद सुद्धि,
समृद्ध हियै उपजावनवारी।
आपुहि तै प्रगटै घट सैंभट,
ब्रह्म स्वरूप जनावन वारी।।
व्यापक है जड़ चेतन में,
उजियारे विवेक बतावन वारी।।
बीन के युक्ति प्रवीन धरै यों,
कृपा करौ बीन बजावन वारी।।
एक श्रृंगार और दूसरा करुण रस का उदाहरण दे कर लेख को समाप्त करते हैं।
संयोग श्रृंगार----
नंदलाल ब्रषभानलली मिलि,
केलि भली विधि सौं अनुसारे।
भाँतिनि भाँतिनि के परिरंभ,
अनंग अप्तंगनि अंग बिहारे।।
मोती गिरे कुच पै कच खूटत,
यौं उपमा उमही उजियारे।
राहु ने चंद गहौ अपराध में
मानों महस पै आछित डारे।।
परनिष्ट करुणा रस------
जा दिन ते रघुनाथ गये बन,
साथ सुलच्छिन सीय गई है।
चेतन की गति कौन कहे,
जब्हूनि विछोह की छोह छई है।।
आतप ताप तपै दिन यौं,
सब रातिहूँ ररीवति राति गई है।
तारनि के मिसु ठानि मनौ,
असुआँनि की बूंदनि मूंद भई है।।
दोनों पुस्तकों में कवि का नाम कहीं उजियारे लाल और कहीं उजिआरे लाल लिखा मिला है।
हिंदी के अनेक ग्रंथ राजपूताने के गाँवों में पड़े हुए है। राजपूताने के नरेशों से प्रार्थना कर के प्रत्येक राज्य में खोज का काम किया जाय तो निसंदेह सहस्रों ग्रंथ सहज में ही प्राप्त हो सकते हैं।
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