हिंदुस्तानी पत्रिका के सूफ़ी लेख
उमर ख़ैयाम श्रीयुत इक़बाल वर्मा, सेहर
उमर ख़ैयाम के जीवन के संबंध में हमारी जानकारी बहुत थोड़ी है। वह अपनी जगत्प्रसिद्ध रूबाइयों का रचयिता था- इस के या अन्य कुछ बातों के अतिरिक्त उस महाकवि के जीवन-काल की अन्य घटनाओं का कुछ भी ठीक और सिलसिलेवार पता नहीं चलता। उस का पूरा नाम ग़यासुद्दीन अबुलफतेह
मीराबाई और वल्लभाचार्य
कृष्णदास अधिकारी की वार्ता से पता चलता है कि आचार्य महाप्रभु के कुछ निज सेवक मीराबाई को नीचा दिखाने का भी प्रयत्न किया करते थे। उस से इस विरोध के कारण का भी कुछ पता चलता है। कृष्णदास अधिकारी एक बार द्वारिका गया। वहां से रणछोड़ जी के दर्शन करके वह मीराबाई
सन्तरण कृत गुरु नानक विजय - जयभगवान गोयल
गुरु नानक विजय 24382 छंदों का एक धर्मप्रधान वृहदाकर प्रबन्ध काव्य है। जिसका प्रणयन उदासी सम्प्रदाय के प्रमुख कवि संतरेण ने 19वीं शती के उत्तरार्ध में किया था। उत्तर भारत का मध्ययुगीन भक्ति-आंदोलन अनेक मतों-सम्प्रदायों एवं पंथों के माध्यम से विकसित
पदमावत में अर्थ की दृष्टि से विचारणीय कुछ स्थल - डॉ. माता प्रसाद गुप्त
जायसी का पदमावत हिन्दी के मध्ययुगीन साहित्य में अनेक कारणों से एक अत्यन्त विशिष्ट स्थान रखता है, किन्तु उसी प्रकार अनेक कारणों से इसका अध्ययन उस ढंग से नहीं दिया जा सका था जैसा इस महान् कलाकृति के लिए अपेक्षित था। इन में से एक बड़ा कारण इसके पाठ की अव्यवस्था
सुकवि उजियारे - पंडित मयाशंकर याक्षिक
रत्नपूर्ण वसुंधरा में विविध रत्न छिपे पड़े हैं। खोज करने से ही उन का पता चलता है। सब के सामने आने पर, रत्न-पारखी उन की परीक्षा कर के उन का मूल्य निर्धारित करते हैं। हिंदी के अनेक ग्रंथ-रत्न क़स्बों और गाँवों में पड़े नष्ट हो रहे हैं। अनुसंधान करने पर
कबीर जी का समय डाक्टर रामप्रसाद त्रिपाठी, एम. ए., डी. एस्-सी.
कबीर जी के समय के विषय में विद्वानों में बड़ा मतभेद हैं। उन को रामानंद का शिष्य मान कर कुछ विद्वानों ने उन का जन्म सन् 1399 के लगभग माना है। किंतु डाक्टर फार्कुहर ने उन का जन्म सन् 1440 में स्थिर करने का प्रयत्न किया है। इस लेख में उपर्युक्त दोनों मतों
मधुमालती नामक दो अन्य रचनाएँ - श्रीयुत अगरचंद्र नाहटा
हिंदुस्तानी के गत अप्रैल के अंक में श्रीयुत ब्रजरत्नदास जी का मंझन-कृत मधुमालती शीर्षक लेख प्रकाशित हुआ था। उस में सुकवि मंझन कृत मधुमालती का रचनाकाल वि. सं. 165 के लगभग बतलाया गया है (जो कि विचारणीय है)। अतः सहज ही मे यह शंका उठती है कि जायसी के सुप्रसिद्ध
जायसी और प्रेमतत्व पंडित परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल्.-एल्. बी.
जायसी की रचना पद्मावत की प्रेम-गाथा द्वारा अथवा उन के ग्रंथ अखरावट में वर्णन किए गए सिद्धांतों द्वारा जिस प्रेमतत्व का परिचय मिलता है वह वास्तव में बहुत ही उच्च व गंभीर है और उस के महत्व का पता हमे पहले-पहल उस समय चलता है जब कि, हीरामन तोता द्वारा पद्मावती
उदासी संत रैदास जी- श्रीयुत परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल-एल. बी.
संत रविदास अथवा रैदास जी कबीर साहब के समकालीन समझे जाते है और कहा जाता है कि इन दोनों महात्माओं का जन्म काशीपुरी में हुआ था तथा, स्वामी रामानंद से उपदेश ग्रहण करने के कारण, ये दोनों आपस में गुरुभाई भी होते थे। परंतु इन वा अन्य ऐसी बातों के सबंध में कोई
कबीर के कुछ अप्रकाशित पद ओमप्रकाश सक्सेना
गुजराती हस्तलिखित पद-संग्रहों में हिन्दी पद विषय पर शोध-कार्य करने के सिलसिले में जब मैं गुजरात गया तो मुझे कुछ समय तक अहमदाबाद में रह कर वहाँ की गुजरात विद्या-सभा तथा आचार्य निवास और बड़ौदा के मगन भाई के हस्तलिखित संग्रहों को देखने का अवसर मिला। इन
महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय - श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
भारतवर्ष में संत-महात्माओं की संख्या जिस प्रकार अत्यंत अधिक रही है, उसी प्रकार उन के द्वारा स्थापित सम्प्रदायों की भी संख्या बहुत ही अधिक है। समग्र भारत के संप्रदायों के संक्षिप्त वर्णन के लिए कितने ही बड़े बड़े ग्रंथों की जरूरत पड़ेगी। वह भी किसी एक
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
कुछ दिनों पूर्व तक संतों का साहित्य प्रायः नीरस बानियों एवं पदों का एक अनुपयोगी संग्रह मात्र समझा जाता था और सर्व साधारण की दृष्टि में इसे हिंदी-साहित्य में कोई विशिष्ट पद पाने का अधिकार नहीं था। किंतु संत साहित्य को विचार-पूर्वक अध्ययन एवं अनुशीलन करने
देव और बिहारी विषयक विवादः उपलब्धियाँ- किशोरी लाल
रीतियुग की काव्य-रचना ऐहिक जीवन के मादक एवं सरस प्रभावों से पूर्ण तथा अनुप्राणित रही है, यही कारण है कि उस युग की समस्त श्रृंगारिक रचनाएँ आधुनिक जीवन की चिन्ता से सर्वथा मुक्त है। इनमें ऐन्द्रिय संवेदना के इतने बिखरे हुए चित्र मिलेंगे, जिन्हें दूसरे
अल्बेरूनी -प्रोफ़ेसर मुहम्मद हबीब
अल्बेरूनी का पूरा नाम था अबू रैहान मुहम्मद इब्न-ए-अहमद अल्बेरूनी। उस का जन्म ख़्वारज़्म में 973 सदी ईस्वी में हुआ था। अपने जन्म स्थान में रहते हुए ही उस ने राजनीति में तथा विज्ञान और साहित्य में अच्छी ख़्याति प्राप्त कर ली थी। परंतु अन्य मध्य एशियाई
लोकगाथा और सूफ़ी प्रेमाख्यान - परशुराम चतुर्वेदी
हिन्दी के सूफ़ी-प्रेमाख्यानों का विषय प्रारम्भ से ही लोक-कथाओं जैसा रहता आया था। अतः इन्हें साहित्यिक लोकगाथा मान लेने की प्रवृत्ति स्वाभाविक ही है। तदनुसार इसके लिए अनेक उपयुक्त लक्षण भी निर्दिष्ट किये जा सकते हैं। उदाहरणार्थ, कहा जा सकता है कि मुल्ला
रसखान के वृत्त पर पुनर्विचार - कृष्णचन्द्र वर्मा
रसखान के जीवनवृत्त पर सर्वप्रथम प्रकाश डालने का श्रेय श्री किशोरीलाल गोस्वामी को है। वे रसखान की रचनाओं के अनन्य भक्त थे तथा बड़े श्रम से उन्होंने रसखान के काव्य और जीवनवृत्त से हिन्दी के साहित्यानुरागियों को सन् 1891 में ‘सुजान रसखान’ नामक ग्रंथ द्वारा
फ़ारसी लिपि में हिंदी पुस्तकें- श्रीयुत भगवतदयाल वर्मा, एम. ए.
दक्षिण भारत के पुस्तकालयों में मुझे कुछ पुस्तकें ऐसी मिली हैं जो फारसी लिपि में लिखी हुई है, परंतु उन की भाषा हिंदी है। उन हस्त-लिखित पुस्तकों पर जो उन के नाम, लेखक के नाम इत्यादि लिखे थे वह बहुदा पूर्ण-सूचक न थे, क्योंकि उर्दू, फारसी जानने वाली सूची-कर्ता
कबीर द्वारा प्रयुक्त कुछ गूढ़ तथा अप्रचलित शब्द पारसनाथ तिवारी
मध्यकाल के प्रायः सभी प्रमुख हिन्दी-कवियों ने ऐसे अनेक सभ्द अपनी रचनाओं में प्रयुक्त किये हैं जो उस समय तो जनता में प्रचलित रहे होंगे, किन्तु आज उनका प्रचलन कम होने के कारण और कोशों में भी अधिकांश का उल्लेख न होने के कारण उनके टीकाकारों को प्राय भ्रम
आचार्य चन्द्रबली पांडे एवं उनका तसव्वुफ अथवा सूफ़ीमत डॉ. इन्द्र पाल सिंह
आचार्य चन्द्रबली पांडे की कुल साहित्यिक कृतियों का अध्ययन प्रस्तुत कर उनकी प्रतिभा और मनीषा का मूल्यांकन करना, यद्यपि असाध्य नहीं, तो भी परिश्रमसाध्य तो अवश्य है। आचार्य जी की प्रतिभा बहुमुखी है। भाषा, विचार, सम्पदान, साहित्यिक, समीक्षण, गवेषणादि, विविध
महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय- श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
भारतवर्ष में संत-महात्माओं की संख्या जिस प्रकार अत्यंत अधिक रही है, उसी प्रकार उन के द्वारा स्थापित सम्प्रदायों की भी संख्या बहुत ही अधिक है। समग्र भारत के संप्रदायों के संक्षिप्त वर्णन के लिए कितने ही बड़े बड़े ग्रंथों की जरूरत पड़ेगी। वह भी किसी एक
कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
सम्पूर्ण सृष्टि-व्यापार का अवलोकन करने पर यह जिज्ञासा होती है कि इसका विकास किन तत्व से सम्भव हुआ। सृष्टि के जिन रूपों का प्रत्यक्षीकरण हम करते हैं, उनके गुणों को हम जिस रूप में देखते हैं, मूल रूप में उन्हें वैसे ही होना चाहिए। सांख्य मतानुसार जिस सत्कार्यवाद
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere