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मधुमालती नामक दो अन्य रचनाएँ - श्रीयुत अगरचंद्र नाहटा

हिंदुस्तानी पत्रिका

मधुमालती नामक दो अन्य रचनाएँ - श्रीयुत अगरचंद्र नाहटा

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    रोचक तथ्य

    Madhumalati namak do anay rachnaye, Anka-1, 1939

    हिंदुस्तानी के गत अप्रैल के अंक में श्रीयुत ब्रजरत्नदास जी का मंझन-कृत मधुमालती शीर्षक लेख प्रकाशित हुआ था। उस में सुकवि मंझन कृत मधुमालती का रचनाकाल वि. सं. 165 के लगभग बतलाया गया है (जो कि विचारणीय है)। अतः सहज ही मे यह शंका उठती है कि जायसी के सुप्रसिद्ध पद्मावत में उल्लिखित मधुमालती यह होकर अन्य किसी की रचना होनी चाहिए। फलतः इस विषय में विशेष अन्वेषण करने पर हमें इसी नाम के दो अन्य ग्रंथों का पता लगा है, उन्हीं का संक्षिप्त परिचय इस लेख में दिया जाता है।

    इन दो ग्रंथों में से पहला है चतुर्भुजदास कृत। इस का प्रथम परिचय मुझ बंबई निवासी श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई से प्राप्त हुआ। पीछे उन के प्रशस्ति-संग्रह में मुझे उस की आदि तथा अंत की प्रशस्ति भी मिल गई।

    दूसरे ग्रंथ का कवि अज्ञात है। इस का प्रथम परिचय मुझे गुजरात वर्नाक्यूलर सोसाइटी द्वारा प्रकाशित कवीश्वर दलपतराय हस्तलिखित पुस्तक संग्रहनी सूची में मिला।

    मुझे है कि वर्नाक्यूलर सोसाइटी वाली प्रति प्रयत्न करने पर भी प्राप्त हो सकी। किंतु अन्य स्थानों से मुझे प्रतियां देखने को मिल गई। फलतः उन्हीं के आधार पर इन दो ग्रंथों का परिचय दिया जा रहा है।

    (1) चतुरभुजदास कृत मधुमालती चौपाई

    ये कवि कायस्थ जाति के निगम कुल में उत्पन्न हुए थे। नाथा के पुत्र भैयाराम इन के पिता थे, ऐसा इन्होंने स्वयं अपने ग्रंथ की प्रशस्ति में लिखा है। इस कृति में श्रृंगार मानता है। इस की अब तक जितनी प्रतियां हमारे जानने में आई है वे इस प्रकार है-

    श्रीजिन कृपाचंद्र सूरि ज्ञानभंडार (बीकानेर) की प्रति। आदि और अंत का उपयोगी अंश यहां उद्धृत किया जाता हैः-

    आदि।

    श्री गणेशायनमः।।

    अथ मधुमालती री चौपाई लिख्यते।।

    दोहा।। अलख निरंजन चित धरूं, समरी शारद माय।

    कथा कहुं मधुमालती, निज गुरु तणै पसाय।।

    चौपाई।। विधि विरचि ताके वर पाउं। शंकर सुत गणेश मनाउं।

    चातुर सहचरि सहित रीझाउं। मधुमालती मनोहर गाउं।।

    लीलावती ललित इक देशा। चन्द्रसेन तिहां सुभट नरेशा।

    सुभग धाम धज गगन प्रवेशा। गढ मढ मन्दिर रचे महेशा।।

    मंत्री बुद्धि पराक्रम तांम। तारणसाह तास को नाम।

    निश दिन सांमि धरम सुं काम। नृप तजै घड़ी पल जाम।।

    नृप के गृह अंतेउरि नारी। संतति इक मालती कुमारी।

    वरणुं कहा रूप अपछरा। मानु उर्व्वशी लियो अवतरा।।

    तारण साह सुघड़ गुण सारा। इक त्रीया तसु इक कुमारा।

    ताकौ नाम मनोहर धर्यौ। मानु काम दूजौ अवर्यौ।।

    मधु मधु कहै खिलावै तात। बढै कला मानु दिन रात।

    अंत-

    दूहा।। कायथ नैगम कुल इहैं, नाथा सुत भइयांराम।

    तनय चतुर्भुज दास के, कथा प्रकाशी ताम।।

    अलप बुद्धि धैठो दई, काम प्रबंध प्रकाश।

    कवियन सुं कर जोड़ि कै, कहै चतुरभुज दास।।

    वनसपति में अंब फल, रस में उतपति संत।

    कथा मांहि मधुमालती, षट रितु मांहि वसंत।।

    लता मांहि पनगलता, सूंघा कै घणसार।

    कथा मांहि मधुमालती, आभूषण में हार।।

    पाई।। राजनीति का यामें साखी बुधि भाखी।

    चाणाइक चातुरी बताई। थोरी थोरी सबही आई।।

    पुनि वसंत राज रस गावै। जामें ईश्वर काम दझावे।

    ताकी यह लीला विस्तारी। रसिकन श्रवणन कुं सुखकारी।।

    रसिक होय सु नवरस चाहै। अध्यातम आतम औगाहै।

    चातुर पुरुष होइ है कोई। इहै रस कला समझि है कोई।।

    कृष्णदेव कौ पुत्र कहावै। प्रदुम्न काम अंश मधु गावै।

    पुत्र कलत्र सबै सुख पावै। दुख दारिद्र नैरौ आवै।।

    लोक।। कामार्थी लभ्यते काम, निर्धनी लभते धनम्।

    अपुत्री लभते पुत्रं, व्याधि तस्य पीड़िते।।

    राजा पढै ताहिं राजगति, मंत्री पढै तिहि बुद्धि।

    कामी काम विलास रस, ज्ञानी ज्ञान सुसिद्धि।।

    इति श्री मधुमालती री बात संपूर्णम्।। लि. श्रीबाकरौदमध्ये

    पं. दुर्गदास गणि शिष्य जगरूप थानसिंघ सहिताः।।सं. 1791

    वैशाख बदि 9।। श्री।।श्री।।श्री।।श्री।।

    दानसागर भंडार की प्रति। यह प्रति 23 पत्र की है। पुष्पिका इस प्रकार हैः-

    इति मधुमालती री चोपाई संपूर्णः।। संवत् 1785 वर्षे मिति आसोज

    बदि 13 शुके लिखितं ऋषि विरधमान वृद्धे कुंडयां ग्रामे लिखितं।

    अनंतनाथ जी के भंडार (बंबई) की प्रति है.। देसाई महोदय ने हमें इसी की प्रशस्ति भेजी है।

    दोनों प्रतियों में प्रशस्ति के बाद यह दोहा हैः-

    संपूरण मधुमालती, कलश चढे संपूर।

    श्रोता वक्ता सबन कुं, सुखदायक दुख दूरि।।889।910।।

    श्री राजेंद्र जैन वृहद् ज्ञानभंडार (आहोर) में बं. नं. 66 पत्र 2-73 की ..............13

    एक प्रति है इस में 1497 गाथाएं हैं। सं. 1819 मा. सु. 12 के दिन मनरूप द्वारा लिखी हुई है।

    5- आहोर के इसी भंडार में बं. नं. 166 में 46 पत्र की एक प्रति है। इस में 963 गाथाएं है। सं. 1837 वै. ब. 2 को राघवसागर लिखित है।

    6- विजयधर्म लक्ष्मी ज्ञानमंदिर (आगरा) में नं. 1669 में पत्र 55 की एक प्रति है। नं. 4 प्रति की भाँति इस में भी 1497 गाथाएं है। यह प्रति सं. 1896 की लिखी हुई है।

    7- खरतर गच्छ की भावहर्षीय शाखा के ज्ञानभंडार (बालोतरा) में 19 वीं शताब्दी की लिखी हुई एक प्रति है। यह प्रति कुछ अपूर्ण है किंतु संबंध देखते हुए 900 से ऊपर गाथाएं नहीं होंगी।

    8- गुजरात वर्नाक्यूलर सोसाइटी की नं. 762 में एक खंडित प्रति है।

    9- मधुमालती नी वार्ता नाम से गुजराती में सं. 1934 (ई. स. 1878) में यह ग्रंथ छप चुका है। इस में 980 गाथाएं है। “मुंबई, बारकोट मारकेट- सखाराम मलिक सेठ खातुं, एओए पोताना छापाखाना मां छापी प्रसिद्ध करी छे।“

    हिंदी साहित्य के इस ग्रंथ का पूर्वकाल में पर्याप्त प्रचार था। गुजराती में आज से 61 वर्ष पूर्व ही यह ग्रंथ प्रकाशित हो गया था, किंतु हिंदी में मिश्रबंधुविनोद जैसे सुप्रसिद्ध ग्रंथ में भी इस के कर्ता का परिचय भ्रांतिपूर्ण है। ग्रंथ का प्रकाशित होना तो दूर रहा। पाठकों के जानने के लिए मिश्रबंधुविनोद भाग 1, पृ. 279 से कुछ अंश उद्धृत किया जाता हैः----

    “चतुर्भुजदास (अष्टछाप)- ये महाशय स्वामी विट्ठलनाथ जी के शिष्य और कुभनदास के पुत्र थे। इन का वर्णन 152 वैष्णवों की वार्ता में है। आपकी कविता में श्रृंगार रस का प्राधान्य है- इन्होंने मधुमालती री कथा एवं भक्तिप्रताप नामक ग्रंथ भी बनाए है। आप का समय 1625 के लगभग था।“

    यह परिचय भ्रमपूर्ण है। वस्तुतः अष्टछाप वाले चतुर्भुजदास भिन्न है। “हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण” सं. 1902 की रिपोर्ट के पृ. 43 में कवि का परिचय इस प्रकार दिया हैः-----

    “चतुरभुजदास- ये जाति के कायस्थ थे, और ग्रंथ से राजपूताना-निवासी जान पड़ते है।“

    पृ. 115 में कृति का परिचय दिया हैः----

    “मधुमालती री कथा- चतुर्भुजदास कृत, लि. का. सं. 1837 वि. मधुमालती की प्रेमरस की कथा का वर्णन।”

    सुकवि मंझन और चतुरभुजदास कृत मधुमालती में केवल मनोहर और मालती के नाम मिलते हैं, बाक़ी सारी कथावस्तु एवं पात्रों के नाम आदि सर्वथा भिन्न-भिन्न है। पृथक-पृथक कथाओं का वैषम्य यहां नहीं दिखलाया जा सकता। हम यहां केवल चतुरभुजदास कृत मधुमालती का कथावस्तु संक्षेप में पाठकों की जानकारी के लिए लिखते है। मालूम होता है कि यह मनोरंजक कथा पौराणिक होकर कल्पित उपाख्यान है।

    कथासार

    लीलावती देश के राजा चंद्रसेन की कनकमाला नामक रानी मालती नामक पुत्री थी। राजा के प्रधानमंत्री तारणसाह के एक पुत्र था, जिस का नाम मनोहर था और मधु नाम से उसे पुकारते थे। लावण्यवान मधु कामदेव का अवतार ही था, उस के रूप से मुग्ध हो कर नगर-नारियां बेसुध होकर पीछे पीछे डोलती थी। मधु प्रायः रामसरोवर जाता, वहां उस के सौंदर्य से मोहित पनिहारिने माथा धुनते हुए अकस्मात् घड़ा फोड़ डालती। जब यह हाल मालती ने सुना तो वह भी उसे देखने के लिए सप्रेम उत्कंठित हो गई।

    मधु के पिता ने शुभ मुहूर्त में उसे नंद नामक पुरोहित के पास पठनार्थ भेजा। राजा ने भी रानी और मंत्री की अनुमति से उसी पंडित के पास मालती का अध्याय प्रारंभ कर दिया। परदे की ओट में मालती पढ़ती थी। एक बार गुरु की अनुपस्थिति में मौका पाकर परदा उठा कर मालती ने मधु को देखा तो उसे साक्षात् मदन का अवतार पाया। परस्पर प्रेमसंचार हो जाने पर भी मधु संकोचवश नीचे देखने लगा। वह जानता था कि राजकन्या से प्रेम करने पर आखिर दुःख उठाना पड़ेगा। अतः उस ने मृग-सिंहनी संबंध का दृष्टांत देकर समझाया और राजकन्या से प्रेम करने को कहा। उस ने कन्नौज के राजा करण और सौरठ के सूरसेन की पुत्री पद्मावती का दृष्टांत कह कर प्रेम-याचना की। मधु ने भविष्य का विचार कर पंडित के पास पढ़ना छोड़ दिया, और रामसरोवर पर जा कर क्रीड़ा करने लगा। वहां पूर्ववत् पनिहारिनें मोहित होने लगी, सखी ने मालती से जाकर इस की सूचना दी। वह उस के विरह से व्याकुल हो रही थी अतः सखियों के साथ खेलन का बहाना कर के रामसरोवर पर जा पहुँची। अपनी विरह व्यथा का हाल उसने प्रिय सखी जैतमाला से कहा। उसने उस का अनुसंधान कर मालती को पुष्प-वृक्ष के नीचे खड़ी किया और, स्वयं मधु के पास गई, और उसे मीठी-मीठी मनोरंजक बातों से प्रसन्न कर मालती से मिलाया। मधु ने एक बार तो वणिक्-पुत्र और राजकन्या का संबंध अनुचित बता कर विवाह के लिए आनाकानी की, आख़िर जैतमाला के चातुर्यपूर्ण वचनों से विवाह का प्रस्ताव अस्वीकार कर सका। उसी स्थान पर जैतमाला ने दोनों का हाथ मिला कर विवाह कर दिया। वे दोनों रामसरोवर के पास सुख-विलास करने लगे।

    माली ने उन का सारा वृत्तांत राजा को सुनाया। राजा ने क्रुद्ध होकर उन्हें मारने के लिए सैनिक भेजे। रानी ने चुपके से दासी के द्वारा उन्हें सूचित कर दिया कि ‘प्राण बचा कर अन्यत्र चले जाओ।‘ मालती के भयभीत होने पर मधु ने समझा कर कहा कि ‘धैर्य रक्खो! मुझे परमात्मा ने गिलोल दी है, अभी मलयंद-सुत की भाँति कोई आपदा नहीं पड़ी है, समय पर देखेंगे।‘ मालती के पूछने पर उस ने मलयंद सुत का इस प्रकार दृष्टांत सुनाया----

    ‘चंपावती के मलयंदा के चंद नामक 20-22 वर्ष का पुत्र था। वाटिका में क्रीडार्थ आई हुई 18 वर्षीय मंत्री-कन्या की रूपरेखा को देख कर चंद्रकुमार कामातुर हो गया। द्रव्य द्वारा मालिन को वश में करके उस से बगीचे में संबंध कर लिया। एक दिन कामक्रीड़ा करते समय सिंह गया। उसे देख कर रूपरेखा भयभीत हुई। चंद्रकुमार ने साहस कर के तीरों से सिंह का फाड़ा हुआ मुँह भर दिया, जिस से सिंह मर गया और उन दोनों ने सुख से क्रीड़ा की। उद्यम और साहस से आई हुई विपदा चली जाती है।‘ मालती ने कहा आप गिलोल से क्या कर सकेंगे यह तो खेलने की है, संभव है 5-7 व्यक्तियों का सामना कर लें। आखिर बिना शस्त्रों के राज-सेना का सामना कैसे करेंगे? मधु ने कहा तुम इस की शक्ति नही जानती, अर्जुन ने जो विद्या द्रोणाचार्य से पाई थी, वही मैंने सीखी है, इस के सामने असंख्य योद्धा भी नहीं ठहर सकते। उस ने उसी क्षण वृक्ष पर गिलोल का वार किया तो डाल, पत्ते धड़ आदि सब गिर पड़े। इधर पैदल सेना भी पहुँची। मधु ने युद्ध कर के सब को भगा दिया। राजा ने 1000 सामंत घुड़सवार भेजे, उन्हें भी हरा दिया। तब राजा ने 5000 सैनिक भेजे। मालती ने वन को विस्तार कर मधुकरों को बुलाया, जैतमाला ने पवन-देव की आराधना की। वायु के झकोरों से क्रुध होकर भोरे सैनिक और घोड़ों को काटने लगे। भौरों के विष से पीड़ित होकर सेना भाग गई। राजा स्वंय ससैन्य आया। उस ने पहले दूत भेजा। मालती ने उसे अपमानित कर निकाल दिया। परस्पर घमासान युद्ध हुआ। भौरों का दल वस्त्राच्छादित सैनिकों का विशेष अनिष्ट कर सका। मधु स्वयं गिलोल ले कर लड़ने लगा। कंकरों की मार से सैनिकों के दाँत तोड़ डाले, शरीर छिद्र-छिद्र कर दिया। इस प्रकार भयानक परिस्थिति देख कर अकेले मधु की प्राणरक्षा मंर संदेह समझ कर मालती भयभीत होने लगी। जैतमाला ने कहा मधु को मारने वाला कोई नहीं है, वह स्वयं कामदेव का अंश और अवतारी पुरुष है। ऐसा सुन कर मालती श्री केशव जी का ध्यान करने लगी। उस की स्तुति सुन कर हरि ने गरूड़ को आज्ञा दी। गरुड़ ने दो भारंड पक्षी भेजे, वे आकर सेना का भक्षण करने लगे, शिवशंकर का प्रेषित त्रिशूल गया। केसरी सिंह भी गरज कर हाथियों को भगाने लगे। मधु की गिलोल के कंकर, त्रिशूल की मार, भारंड और केसरी सिंह के आक्रमण से राजा अपनी बची-खुची सेना को लेकर भाग गया। एक योजन दूर कर जाकर ठहरा।

    राजा ने परामर्श के लिए सब मंत्रि-मंडल को एकत्र किया, उन्होंने कहा आप ने बुद्धिमान मंत्री तारणसाह को क्यो छोड़ा, हम तो सब उसी के आज्ञाकारी है। तब राजा ने तारणसाह को बुलाया। उस ने गौरीशंकर की दुहाई से उपद्रव मिटाया। गौरी ने प्रकट हो कर कहा ‘मधु, मालती और जैतमाला तीनों एक ही शरीर समझो! मधु को तुम ने वणिक् समझ कर भूल की, वह तो अवतारी पुरुष है!’ राजा ने कहा, ’लोक-व्यवहार में बनिए को राजकन्या देने से अपकीर्ति होती है।’ मंत्री ने दो ’उलगाणा’ साँपों का दृष्टांत सुना कर राजा को समझाया। अंत में राजा ने रानी से परामर्श कर के मधु के साथ मालती और जैतमाला का समारोह के साथ विवाह कर दिया। इस के बाद राजा ने अपना राज्य भी उसे दे दिया, जिस से वह बड़े आनंद से जीवन व्यतीत करने लगा।

    (2) मधुमालती कथा (अपूर्ण)

    गुजरात वर्नाक्यूलर सोसाइटी से प्रकाशित कवीश्वर दलपतराय हस्तलिखित पुस्तक संग्रह नी सूची नामक ग्रंथ में मंझन एवं चतुरभुजदास कृत मधुमालती से भिन्न जिस अज्ञात कवि की मधुमालती कथा का पता चलता है। उस के संबंध में उस सूची के पृ. 153 में इस विषय में इस प्रकार लिखा गया हैः-----

    462 (अ) मधुमालती नी कथा

    आरंभ- रसिक मुकुटमणि श्री ब्रजनाथ, प्रथम नमुं तोय पद धर माथ।

    कौतुक कथा रचुं चित साह, जो जे काज पढे चित साह।

    साम दाम बुद्धि भेद जों आई, बहतु रस सनगार बनाई।

    ....................................................................

    नौध- (शरुआत मां नीचे प्रमाणे लखेलुं छेः—

    अथ मधुमालती नी कथा लीख्यते। भाशा पूरबी।। दोहा, सोरठा, श्लोक, चौपाई 1641 दोहा चौपाई सुधी नो भाग बंचाय एवी स्थिति मां छे, छेवट ना पानां श्री)

    प्रति देखे बिना इस की कथावस्तु के विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता, किंतु ग्रंथ-विस्तार के हिसाब से कथा बहुत बड़ी प्रतीत होती है। अन्यत्र कहीं पूर्ण प्रति मिलने से (या इस प्रति के मध्य में कही कर्ता का निर्देश हो तो) रचयिता एवं कथावस्तु आदि के विषय में भी समुचित प्रकाश पड़ सकता है।

    जिन दो पुस्तकों के परिचय इस लेख में मैंने अंकित किए है वह सत्रहवी शताब्दी से पहले के नहीं ज्ञात होते। अतएव जो शका मैंने आरंभ में उठाई थी (अर्थात् यह कि मलिक मुहम्मद जायसी की निर्देश की हुई मधुमालती कोई अन्य और प्राचीन रचना है) बनी रह जाती है। संभव है भविष्य की खोज उस पर कुछ प्रकाश डाले।

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