ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शैख़ शर्फ़ुद्दीन अहमद यहया मनेरी
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शैख़ शर्फ़ुद्दीन अहमद यहया मनेरी
रय्यान अबुलउलाई
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सूबा-ए-बिहार का ख़ित्ता मगध,पाटलीपुत्र,राजगीर और मनेर शरीफ़ अपनी सियासी बर-तरी, इ’ल्मी शोहरत के साथ साथ रुहानी तक़द्दुस और अ’ज़मत के लिए हर दौर में मुमताज़-ओ-बे-मिसाल रहा है। हिंदू मज़हब हो या बौध-धर्म, जैन मज़हब हो या कोई दूसरा मकतबा-ए-फ़िक्र ग़र्ज़ कि हर दौर में इसकी अपनी ख़ुसूसियत और अहमियत रही है। इस्लामी अ’ज़मत और आ’रिफ़ाना बसीरत के ए’तबार से भी इसको फ़ौक़ियत हासिल है। क़दीम तज़्किरों और सफ़ीनों में तहरीरें मौजूद हैं कि मुसलमानों की आमद हिन्दुस्तान में दूसरी सदी हिज्री से शुरूअ’ हो चुकी थी और सूफ़िया-ए-किराम का चौथी और पाँचवीं सदी में सूबा-ए-बिहार और उसके मशहूर तारीख़ी क़स्बा मनेर शरीफ़ में 576 हिज्री में एक अ’ज़ीम कारवाँ धर्म प्रचार के लिए मनेर शरीफ़ पहुँचा। उस कारवान के अमीर-ए-कारवाँ इमाम मोहम्मद ताज फ़क़ीह मक्की थे।आप बैतुल-मुक़द्दस के मोहल्ला “क़ुद्स-ए-ख़लील’’ के रहने वाले थे। हज़रत ज़ुबैर बिन अ’ब्दुलमुत्तलिब के साहिब-ज़ादे जनाब अबू-ज़र की औलाद-ए-अमजाद से थे, या’नी इमाम मोहम्मद ताज फ़क़ीह मक्की सरकार-ए-दो-आ’लम के चचा-ज़ाद भाई की औलाद में थे।
विलादत-ओ-नाम : अहमद यहया नाम,लक़ब शरफ़ुद्दीन था।आप मख़दूम-उल-मुल्क के लक़ब से ज़ियादा मशहूर हैं। विलादत 29 शा’बानुल-मुअ’ज़्ज़म 661 हिज्री 1263 ई’स्वी (शरफ़ आगीं) ब-मक़ाम-ए-मनेर शरीफ़,सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद के ज़माने में हुई। आप अपने वालिद-ए-माजिद हज़रत मख़्दूम शैख़ कमालुद्दीन यहया मनेरी मुतवफ़्फ़ा 690 हिज्री मनेरी इब्न-ए-मख़्दूम इस्राईल मनेरी इब्न-ए-इमाम मोहम्मद ताज फ़क़ीह मक्की क़ुद्दिसल्लाहु असरारहुम के फ़र्ज़न्द -ए-औसत हैं। अ’लावा तीन बिरादरान शैख़ ख़लीलुद्दीन,शैख़ जलीलुद्दीन और शैख़ हबीबुद्दीन हैं और वालिदा माजिदा सय्यदा बी-बी रज़िया उ’र्फ़ बड़ी बुआ बिंत-ए-क़ाज़ी सय्यद शहाबुद्दीन पीर-ए-जगजोत अ’ज़ीमाबादी मुतवफ़्फ़ा 666 हिज्री जिनकी शख़्सियत मुहताज-ए-तआ’रुफ़ नहीं।
ता’लीम-ए-ज़ाहिरी-ओ-बातिनी :मख़्दूम-ए-जहाँ की पर्वरिश-ओ-पर्दाख़्त आपकी वालिदा ने बड़े तक़्वा-ओ-तहारत के साथ किया । मख़्दूम की इब्तिदाई ता’लीम उस ज़माने के मुरव्वजा निसाब के मुताबिक़ घर ही पर हुई। इब्तिदाई ता’लीम वालिद-ए-माजिद और हज़रत रुक्नुद्दीन मरग़ेनानी से हुई। ब-हुस्न इत्तिफ़ाक़ उनको अ’ल्लामा शर्फ़ुद्दीन अबू तवामा बुख़ारी जैसा उस्ताद-ए-कामिल मिल गया जो एक बड़े आ’लिम-ए-दीन थे। मशहूर है कि ज़ाहिर-ए-ओ-बातिन के अ’लावा इ’ल्म-ए-कीमिया,सीमिया,हीमिया और उ’लूम-ए-तस्ख़ीर वग़ैरा में भी महारत-ए-ताम्मा रखते थे।आपका मदरसा दिल्ली में था लिहाज़ा काफ़ी शोहरत देखकर सुल्तान ग़ियासुद्दीन बलबन ने आपको सोनारगाँव (ढाका)चले जाने का हुक्म सादिर किया। अ’ल्लामा सोनारगाँव चले तो रास्ते में मनेर शरीफ़ मुक़ीम हुए हुए और मख़्दूम कमालुद्दीन मनेरी ने आपकी ख़ूब पज़ीराई की। आप वहाँ कई रोज़ ठहर गए । इस क़ियाम के दौरान शागिर्द-उस्ताद दोनों को एक दूसरे को समझने और मिलने का मौक़ा’ मिला । दोनों ही एक दूसरे से मुतअस्सिर हुए। ब-इजाज़त-ए-वालिदैन ब-मई’अत-ए-उस्ताद चल पड़े। 668 हिज्री 1270 ईस्वी में सोनारगाँव में अ’ल्लामा ने ख़ानक़ाह और मदरसा की ता’मीर की और ता-दम-ए-हयात 700 हिज्री तक दर्स-ओ-तदरीस में मशग़ूल रहे। मख़्दूम साहिब 22 (बाईस) बरस की उ’म्र में तसव्वुफ़ के आ’लमी स्कॉलर हुए।
तअह्हुल : दौरान-ए-ता’लीम ही में एक ऐसा मरज़ पैदा हो गया था जिसका इ’लाज सिवा-ए-शादी के कुछ न था। परदेसी थे कोई जानता न था और वो भी तालिब-ए-इ’ल्म। शादी करता तो कौन? लेकिन ख़ुद उस्ताद-ए-मोहतरम आपकी सलाहियत,ख़ानदान और सआ’दत-मंदी से इतना ख़ुश थे कि आपको अपने दामादी में लेने का ख़याल ज़ाहिर किया। पहले तो मख़्दूम ने पस-ओ-पेश किया मगर उस्ताद की दिल-जोई मल्हूज़-ए-ख़ातिर थी इसलिए इस रिश्ता को क़ुबूल फ़रमाया। निकाह बी-बी बहू बादाम साहिबा बिंत-ए-अ’ल्लामा शर्फ़ुद्दीन अबू तवामा बुख़ारी सुम्मा ढाकवी मुनअ’क़िद हुआ जिनसे एक साहिब-ज़ादा मख़्दूम ज़कीउद्दीन फ़िर्दौसी और दो साहिब-ज़ादी बी-बी फ़ातिमा मंसूब-ब-मख़्दूम अशरफ़ ख़लफ़-ए-मख़्दूम ख़लीलुद्दीन मनेरी और बी-बी ज़ुहरा मंसूब ब-शाह क़मरुद्दीन ख़लफ़-ए-मीर शम्सुद्दीन माज़ंदरानी मुतवल्लिद हुए। कुछ अ’र्सा बा’द वालिद-ए-माजिद के विसाल की ख़बर मिली । ताब-ओ-तवाँ जाता रहा। बे-इख़्तियार हो कर मअ’ अह्ल-ओ-अ’याल मनेर शरीफ़ तशरीफ़ लाए। वाज़िह हो कि मख़्दूम ज़कीउद्दीन फ़िर्दौसी उ’लूम-ए-ज़ाहिरी-ओ-बातिनी की तकमील के बा’द बंगाल ही में इ’क़ामत-गुज़ीं हो गए और सय्यद हुसैन क़ुद्दिसा सिर्रहु की दुख़्तर से ब्याहे गए। आपकी एक साहिब-ज़ादी बी-बी बारिका थीं जो वालिदैन के इंतिक़ाल के वक़्त महज़ शीर-ख़्वार थीं ।बंगाल से मख़्दूम साहिब के हुज़ूर में पहुँचाई गईं। आपने अपनी पोती बी-बी बारिका को अपनी वालिदा बी-बी रज़िया की गोद में दे दिया जहाँ आपकी पर्वरिश-ओ-पर्दाख़्त बहुत ख़ुश-उस्लूबी से हुई। जब आप जवान हुईं तो आपका निकाह सय्यद वहीदुद्दीन चिल्ला-कश बिन सय्यद अ’लाउद्दीन जेवड़ी से हुआ जो ख़्वाजा नजीबुद्दीन फ़िर्दौसी देहलवी के भांजा थे ।आपसे एक लड़का सय्यद अ’लीमुद्दीन फ़िर्दौसी मुतवल्लिद हुए।
बैअ’त-ओ-ख़िलाफ़त : मख़्दूम-ए-जहाँ जब सुनारगाँव (ढाका) से वापस हुए तो दुनिया से बे-ज़ारी, दिल के अंदर हुज़्न और तलब-ए-पीर का जज़्बा कार-फ़र्मा हुआ । वो अच्छी तरह समझते थे कि पीर के ब-ग़ैर कोई भी मंज़िल-ए-मक़्सूद तक नहीं जा सकता। तलब-ए-पीर में हौसला बुलंद था और मुसन्निफ़-ए-मनाक़िबुल-अस्फ़िया कि ‘‘पिसर रा तस्लीम-ए- मादर कर्द ऊ गुफ़्त ईं रा बजा-ए-मन दानेद व मरा ब-गुज़ारेद हर जा कि ख़्वाहम मुर्द पिंदारेद कि शर्फ़ुद्दीन मुर्द’’। पीर-ए-कामिल की तलाश थी चुनांचे अपने बड़े भाई मख़्दूम ख़लीलुद्दीन के साथ तलब-ए-पीर में दिल्ली गए और वहाँ सारे मशाइख़ को देखा लेकिन कहीं भी दिल न भरा। यहाँ तक कि शैख़ शर्फ़ुदद्दीन बू-अ’ली शाह क़लंदर पानीपत मुतवफ़्फ़ा 724 हिज्री से भी मुलाक़ात की। फिर दिल्ली में महबूब-ए-इलाही सय्यद निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी से भी मुलाक़ात फ़रमाई। आपकी मज्लिस-ए-मुतबर्रका में मुज़ाकिरा-ए-इ’ल्मी में हिस्सा लिया। जवाब पसंदीदा दिए। महबूब-ए-इलाही ने आपकी बड़ी इ’ज़्ज़त की और शफ़क़त से पेश आए लेकिन मुरीद न किया और फ़रमाया ‘‘सी मुर्ग़े अस्त अम्मा नसीब-ए-दाम नीस्त’’। हर जगह नाकामी-ओ-नामुरादी थी लेकिन तलब-ए-पीर के जज़्बे में कोई कमी न आई। आख़िर आपके भाई ने ख़्वाजा नजीबुद्दीन फ़िर्दौसी देहलवी का ज़िक्र किया और आपकी ता’रीफ़ की। आपने फ़रमाया जो क़ुतुब-ए-दिल्ली थे उन्होंने तो हमको पान देकर वापस कर दिया दूसरे के पास क्या जाएं ,लेकिन आपके भाई ने जब ये कहा कि किसी से मुलाक़ात करने में क्या नुक़्सान है तो ख़्वाजा की बारगाह-ए-नाज़ में हाज़िर हुए और उन पर जो कैफ़ियत तारी हुई वो तहरीर में लाने से क़ासिर हूँ। मख़्दूम ने दिल ही दिल में कहा कि मैं महबूब-ए-इलाही के यहाँ गया था एक वक़्त भी दहश्त न हुई थी। क्या बात है कि मुझे यहाँ दह्शत पैदा होती है। जब ख़्वाजा के सामने गए इस तरह कि मुँह में पान था। जब ख़्वाजा की नज़र आप पर पड़ी तो फ़रमाया माथे में मुंह में पान और कलाम ये कि हम भी शैख़ हैं । फ़ौरन मुँह से पान बाहर फेंका। दह्शत-ज़दा अदब से बैठ गए। थोड़ी देर बा’द मुरीद होने की दरख़्वास्त की और ख़्वाजा ने आपको इरादत से मुशर्रफ़ किया और सिल्सिला-ए-फ़िर्दौसिया में मुरीद किया। इजाज़त-नामा जो आपके पहुँचने से बारह बरस पहले लिख रखा था लाया और मख़्दूम के हवाले किया मख़्दूम साहिब ने कहा कि मैंने अभी तक आपकी ख़िदमत नहीं की है और तरीक़त की रविश आपसे नहीं सीखी है फिर आप जो फ़रमाते हैं वो कैसे पूरा होगा। ख़्वाजा ने फ़रमाया इजाज़त सिलसिला-ए-रिसालत-मआ’ब सल्लल्लाहु अ’लैहि व-आलिही व-सल्लम के हुक्म से लिखा है। या’नी रूह-ए-नबी से ता’लीम होगी। विलायत-ए-पीर दरकार है तुम इसका अंदेशा न करो। फिर रविश-ए-तरीक़त की तल्क़ीन के बा’द रुख़्सत किया और फ़रमाया अगर कुछ रास्ता में सुनो तो वापस नहीं होना। एक दो मंज़िल आए थे कि ख़्वाजा दार-ए-बक़ा फ़ी-मक़अ’दि सिद्क़िन इं’दा मलीकिम मुक़्तदिर में कूच फ़रमाया, तो आप वापस न आए मनेर शरीफ़ की जानिब रवाना हुए।
इसी अस्ना में सफ़र-ए-जंगल में आप पर एक कैफ़ियत तारी हुई और पीर की याद आई और ये जज़्बा आपको सता रहा था कि पीर की ख़िदमत किया न मा’रिफ़त-ए-इलाही की ता’लीम-ओ-तर्बियत हुई फिर किस तरह ये सआ’दत नसीब होगी । यही सोचते सोचते आप पर एक ऐसी कैफ़ियत पैदा हुई कि आपने अपने बड़े भाई को छोड़ के बिहिया के जंगल (ज़िला शाहाबाद)में लापता हो गए। बहुत तलाश-ओ-जुस्तुजू की गई लेकिन कोई फ़ाएदा नहीं ।आख़िर मजबूर-ओ-मायूस हो कर ग़ाएब होने की बात वालिदा माजिदा को सुनाया । इजाज़त-नामा-ओ-तबर्रुकात-ए-पीर जो मख़्दूम को ख़्वाजा ने दिए थे उसे हवाले किया। वालिदा बी-बी रज़िया ने जब अपने महबूब बेटे के ग़ाएब हो जाने की ख़बर सुनी तो आपकी जुदाई से ग़मगीन हुइं लेकिन सब्र के अ’लावा और चारा ही क्या था। एक ज़माने तक कुछ न पता चला कि आप कहाँ हैं और किस हाल में हैं। अचानक एक रोज़ बारिश हो रही थी कि अपने लख़्त-ए-जिगर,नूर-ए-नज़र, फ़र्ज़ंद-ए-क़ल्बी शर्फ़ुद्दीन न की याद आ गई। जुदाई के सबब आँखें अश्क-बार हो गईं और उस लम्हे ये ख़याल आया कि आज की रात मेरे साहिब-ज़ादे का क्या हाल होगा । नागाह देखा कि घर के सहन में खड़े हैं। पुकारा कि ऐ फ़र्ज़ंद-ए-अर्जुमंद इस बारिश में सहन की तरफ़ क्यूँ खड़े हो। घर के अंदर आ जाओ। आपने अपनी वालिदा से फ़रमाया माँ आप आइए और मुझे देखिए कि इस बारिश में किस तरह हूँ। जब वालिदा ने ब-ग़ौर आप को देखा तो हैरत-ओ-इस्ति’जाब में पड़ गईं कि जिस जगह पर शर्फ़ुद्दीन खड़े हैं वहाँ पर बारिश नहीं हो रही है और आपके खड़े होने की जगह बिलकुल ख़ुश्क है। आपने अ’र्ज़ किया ऐ माँ मुझको मेरा ख़ुदा इस तरह रखता है तो आप मेरे लिए फ़िक्र-मंद क्यूँ रहती हैं बल्कि आपको तो ख़ुश होना चाहिए। इस हक़ीक़त को देखते हुए आप की वालिदा ने कहा कि बेटा मैंने तुम्हें ख़ुदा के सुपुर्द किया और जब तुम तलब-ए-मौला में हो तो मैं दिल-ओ-जान से तुमसे राज़ी हूँ । फिर आप इजाज़त लेकर ग़ाएब हो गए।
बिहार शरीफ़ में क़ियाम : मख़्दूम साहिब बिहिया के जंगल में दाख़िल हुए तो बारह बरस तक किसी ने आपकी ख़बर न पाई। इस मुद्दत-ए-दराज़ में क्या हुआ और क्या गुज़रा अलल्लाह ही को मा’लूम है। फिर आपको किसी ने राजगीर में देखा और तक़रीबन बारह बरस तक उस जंगल में इस हालत मी देखा कि हाथ एक दरख़्त में लटकाए हुए आ’लम-ए-हैरत में खड़े हैं। च्यूंटियाँ हल्क़ के अंदर आती और जाती थीं । आपको इस हाल की ख़बर न थी। एक मुद्दत के बा’द बा’ज़ लोग आपको जंगल में देखते थे और मुलाक़ात करते थे। हज़रत निज़ाम मौला मुरीद-ओ-मुस्तर्शिद ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी वो आपसे मुलाक़ात के लिए जाते और किसी तरह ढूंढ कर आपसे मुलाक़ात फ़रमाते और इस तरह राजगीर में भी बुजज़ुर्गान-ए-दीन का आना जाना होने लगा। लोगों की ख़ातिर मख़्दूम-ए-जहाँ जुम्आ’ की नमाज़ अदा करने के लिए बिहार शरीफ़ तशरीफ़ लाते रहे। लोगों की राय थी कि मख़्दूम यहाँ क़ियाम फ़रमाते और रुश्द-ओ-हिदायत के साथ साथ मुरीदों की ता’लीम-ओ-तर्बियत भी करते। जब ये शुहरा हुआ कि आपका क़ियाम बिहार शरीफ़ में है तो लोगों का हुजूम काफ़ी होता। दूर दूर से तालिबान-ए-राह-ए-हक़ आपके दस्त-ए-मुबारक पर बैअ’त होने लगे । ये देखकर निज़ाम मौला ने अपने माल-ए-तय्यिब से एक ख़ानक़ाह की बुनियाद डाली और अ’र्ज़ किया कि हुज़ूर इस मस्नद-ए-सज्जादा पर बैठने की ज़हमत फ़रमाएं। ख़ानक़ाह से मुत्तसिल एक हुज्रा-ए-मुबारक भी है जहाँ आपने रियाज़त-ओ-इ’बादत के अ’लावा कई चिल्ले किए हैं। फिर कुछ दिनों बा’द सुल्तान मोहम्मद तुग़लक़ को ये ख़बर मिली कि मख़्दूमुल-मुल्क जो बरसो से जंगल में रहते थे और ख़ल्क़ से किनारा-कश रहते थे अब शहर में आते हैं और लोगों से मुलाक़ात फ़रमाते हैं। मख़्दूम के लिए ख़ानक़ाह ता’मीर की गई और राजगीर को फ़क़ीरों के वज़ीफ़ा के लिए मुक़र्रर किया और एक बुलग़ारी जा-ए-नमाज़ इर्साल की ।ये तमाम कारनामे बिहार के गवर्नर मज्दुल-मुल्क के ज़रिया’ तक्मील की गई।
तस्नीफ़-ओ-शा’इरी : आपके मक्तूबात तसव्वुफ़-ओ-इ’र्फ़ान का बेश-बहा ख़ज़ाना हैं।आपने अपने मुरीदों को मक्तूबात के ज़रिया’ तक्मील फ़रमाई। तस्नीफ़-ओ-तालीफ़ के मैदान में आपकी शख़्सियत बे-मिसाल है। कई बरसों की फ़िरिस्त हज़ार से ज़ियादा है लेकिन हवादिसात-ए-ज़माना कि बा’ज़ किताबों के नुस्खे़ मौजूद-ओ-मशहूर हैं:- मक्तूबात-ए-सदी/दो-सदी,मक्तूबात-ए-बिस्त-ओ-हश्त, मल्फ़ूज़ अस्बाबुन-निजात, मा’रिफ़तुल-इ’स्बात, बहरुल-मआ’नी,मूनिसुल-मुरीदीन, मल्फ़ूज़ुस्सफ़र, राहतुल-क़ुलूब, गंज-ए-ला-यफ़्ना, तोह्फ़ा-ए-ग़ैबी, फ़वाइदुल-ग़ैबी, ख़्वान-ए-पुर-नेअ’मत, मुइ’ज़्ज़ुल-मआ’नी, मा’दनुल-मआ’नी, कंज़ुल-मआ’नी, मुख़्ख़ुल-मआ’नी, रिसाला-ए-फ़वाइद-ए-रुक्नी, फ़वाइदल-मुरीदीन, औराद-ए-ख़ुर्द,रिसाला-ए-मक्किया, अ’क़ाइद-ए-शर्फ़ी, इर्शादात-ए-शर्फ़ी, रिसाला-वसूल-इल्लाह, रिसाला-दर-बिदायत-ए-हाल, इर्शादुत्तालिबीन, इर्शादुस्सालिकीन, अज्विबा अस्विला कलाँ/ख़ुर्द और शर्ह-ए-आदाबुल-मुर्सलीन वग़ैरा वग़ैरा।
फ़न-ए-शाइ’री में तख़ल्लुस शुरफ़ा फ़रमाते। आपके मुस्तक़िल अश्आ’र यकजा नज़र से नहीं गुज़रे। क़लमी सरमाया में मख़्दूम से मंसूब ब्याज़ मौजूद है जो माह-नामा फ़ितरत राजगीर 1934 ई’स्वी में ब्याज़-ए-मख़्दूम के उ’न्वान से मंज़र-ए-आ’म पर आए थे जिसमें अश्आ’र कस्रत से पाए जाते हैं लेकिन इस की विज़ाहत मौजूद नहीं। चंद ब्याज़ हाज़िर-ए-ख़िदमत हैं।
मनम आँ कज़ तुई बीनम विसाले
ज़हे ख़ुश-इत्तिफ़ाक़े तुर्फ़ा हाले
गदाए रा अज़ीं ख़ुशतर चे बाशद
कि याबद बेश सुल्ताने बहाले
हनूज़म नीस्त बावर कीं ख़्यालस्त
मगर दर ख़्वाब मी-बीनम हिबाले
मगर मन दर बहिश्तम ज़ाँकि दुनिया
न-दारद ईं चुनीं साहिब जमाले
चंद दोहे और हिंदी फ़िक़्रे ज़बान ज़द-ए-अ’वाम हैं मसलन-
शुरफ़ा भटका मत फिरे चित् मत करे उदास
साइं बसे सर पर मेरे ज्यूं फूलन में बास
मुरीदीन-ओ-ख़ुलफ़ा-ए-किराम : मख़्दूम-ए-जहाँ के मुरीदों की ता’दाद तक़रीबन एक लाख बताई जाती है। आपसे ता’लीम लेने वाले चंद मशहूर शागिर्दान और मुस्तर्शिदान की फ़ेहरिस्त ये है: मौलाना सय्यद मुज़फ़्फ़र बल्ख़ी फ़िर्दौसी मुतवफ़्फ़ा 788 हिज्री, मख़्दूम हुसैन नौशा तौहीद फ़िर्दौसी बिहारी, मौलाना ज़ैन बदर अ’रबी फ़िर्दौसी, क़ाज़ी शम्सुद्दीन फ़िर्दौसी हाकिम-ए- चौसा, मौलाना नसीरुद्दीन फ़िर्दौसी जौनपूरी, मौलाना तक़ीउद्दीन फ़िर्दौसी अवधी, क़ाज़ी शर्फ़ुद्दीन फ़िर्दौसी, मौलाना शहाबुद्दीन फ़िर्दौसी नागौरी, क़ाज़ी सदरुद्दीन फ़िर्दौसी, ख़्वाजा हाफ़िज़ जलालुद्दीन फ़िर्दौसी, क़ाज़ी ज़फ़रुद्दीन फ़िर्दौसी ज़फ़राबादी, मख़्दूम सय्यद मिन्हाजुद्दीन रास्ती फ़िर्दौसी फुल्वारवी, मख़्दूम सय्यद लतीफ़ुद्दीन चिश्ती क़लंदरी मोड़वी, सय्यद वहीदुद्दीन चिल्ला-कश और मख़्दूम शैख़ ज़कीउद्दीन फ़िर्दौसी क़ुद्दिसल्लाहु तआ’ला सिर्रहुल-अ’ज़ीज़ वग़ैरा।
विसाल-ए-हक़ : मख़्दूमुल-मुल्क ने 5 शव्वालुल-मुकर्रम चहार-शंबा सुब्ह की नमाज़ के बा’द ही से सफ़र-ए-आख़िरत की तैयारी शुरूअ’ कर दी थी और 6 शव्वाल 782 हिज्री जुमे’रात की शब की नमाज़ के वक़्त अपने मालिक-ए-हक़ीक़ी से जा मिले। तारीख़-ए-वफ़ात (पुर-शरफ़) है । कुल उ’म्र121बरस हुई। मज़ार-ए-मुक़द्दस बड़ी दरगाह बिहार शरीफ़ में वाक़े’ है । ऊंची क़ब्र आपकी और पस्त क़ब्र आपकी वालिदा की है। मख़्दूम-ए-समनान सय्यद अशरफ़ जहाँगीर समनानी कछौछवी ने नमाज़ ए जनाज़ा पढ़ी । बा’द-ए-विसाल जांनशीन-ए-मख़्दूम-ए-जहाँ मौलाना मुज़फ़्फ़र बल्ख़ी हुए। आपके सालाना उ’र्स में ई’द ही से बादा-नोशों की एक कसीर जमाअ’त अपनी पुर-बहार रौनक़ें लेकर बिहार शरीफ़ में आ जाती है । बहुत ही क़ाबिल-ए-दीद मंज़र होता है। दूर-दूर से अ’क़ीदत-मंद ज़ाइरीन बारगाह-ए-मख़्दूम से मुरादें लेकर रुख़्सत होते हैं। फ़क़ीर भी हर साल दामन-ए-मुराद में गौहर-ए-मक़्सूद लेने हमेशा हाज़िर होता है।
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