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पदमावत की एक अप्राप्त लोक कथा-सपनावती- श्री अगरचन्द नाहटा

सम्मेलन पत्रिका

पदमावत की एक अप्राप्त लोक कथा-सपनावती- श्री अगरचन्द नाहटा

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    प्रेमाख्यानों की परंपरा बहुत प्राचीन है। हिंदी के विद्वानों का प्राकृतादि भाषाओं की प्रेम-कथाओं का अध्ययन होने के कारण सूफी प्रेमाख्यानों की ही अधिकतर चर्चा करते रहते है। इससे पूर्ववर्ती प्रेम-कथाओं की ओर अभी तक उनका ध्यान कम ही गया प्रतीत होता है। सूफी कवियों ने भी जिन मृगावती, मधुमालती, पद्मावत आदि ग्रन्थ बनाये हैं वे भारतीय लोक-कथाओं को लेकर ही बनाये गये हैं। उनके कहने का ढंग कवियों का अपना हो सकता है।

    मलिक मौहम्मद जायसी ने अपने से पूर्वव्रती कई प्रेम कथाओं का उल्लेख अपने पद्मावत में किया है, जिनमें सपनावती भी एक है। अभी तक इस की कथा को जानने का कोई साधन प्राप्त नहीं था। बहुत समय से मैं इसकी खोज करता रहा हूँ। आजकल के लोक कथा के लिये गुजरात में लोक कथाओं संबंधी कारय पर गवेषणा करते हुये गुजरात वर्नाक्युलर सोसाइटी द्वारा प्रकाशित गुजरात तथा काठियावाड दशकी वार्ता भाग दो को देखते ही उसमें सपनावती की वार्ता भी संग्रहीत देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई। यह वार्ता सन् 1872 में एक पारसी द्वारा बहुत स्थानों में घूमकर संग्रह की हुई वार्ताओं में से है। अर्थात् 82 वर्ष पूर्व लोक मुखसे सुनकर लिखी गयी है। पाठको को उसका परिचय कराना आवश्यक समझा यहां उक्त वार्ता का सार दे दिया जाता है। सपनावती का कथा-सूत्र जायसी के अनुसार विक्रम से संबंधित था। तब गुजराती संस्करण में वह भोज से संबंधित है। लोक-कथाओं में ऐसा विषयविपर्यय होता ही रहता है। विक्रम और भोज के नाम तो लोक कथाओं में बहुत प्रसिद्ध है। अतः किसी ने उसे विक्रम की रानी बताया है तो किसी ने भोज की रानी के रूप में उसे प्रसिद्ध कर दिया है। जायसी के पहले के रचित ग्रंथों में भी यह कथा अवश्य ही मिलेंगी खोज चालू है ही पर जहाँ तक वह नहीं मिलती, इस वार्ता से ही इस कथा वस्तु का परिचय पाकर संतोष करना पड़ता है।

    जायसी ने अन्य प्रेम कथाओं में मुग्धावती, खंडरावती और प्रेमावती का उल्लेख किया पर वे प्राप्त नहीं है। उनकी खोज भी की जानी चाहिए। उनकी मूल कथा तो अवश्य ही कहीं मिल जाना चाहिये जैन विद्वानों ने सैकड़ों लोक-कथाओं को अपने कथा संग्रह स्वतंत्र कथा ग्रंथों में संग्रहीत किया है पर अभी उनका अध्ययन ही नहीं हो पाया। राजस्थानी एवं गुजराती भाषा में भी सैकड़ों लोक-कथाएँ मिलती है। प्राप्त सामग्री की छानबीन से अनेको नवीन तथ्य प्रकाश में आयेगे।

    भारतीय लोक कथा बड़ी लोक प्रिय रही है। उनका प्रचार विदेशो तक में हुआ है। अतः विश्व एकता के लिये भी इनकी शोध महत्वपूर्ण सिद्ध होगी।

    सपनावती की लोक वार्ता

    धारा नगरी का राजा भोज एक रात मीठी नींद ले रहा था। उसने एक सपना देखा। राजा को सपने में मालूम हुआ कि सात सुमद्रों के बीच एक द्वीप है, द्वीप में एक सुन्दर महल है। महल के दरवाजे पर माणिक्य के वृक्ष है और आसपास अमर छत्र तने हुए है। राजा को ऐसा मालूम हुआ कि वह इस सुन्दर महल में सुन्दरी सपनावती के साथ सोया हुआ उससे प्रेमालाप कर रहा है। मधउर मलय के झोके हृदय को प्रसन्न कर रहे हैं तथा पुप्पो की भीनी सुगन्ध चारो और गमक रही है। इतने में राजा भोज की नींद उड़ गई और सारी बात हवा हो गई।

    सपनावती के सौन्दर्य को देखकर राजा भोज अधीर हो गया और मन ही मन प्रतिज्ञा कर बैठा कि जब तक सुन्दरी सपनावती से विवाह हो तब तक अन्न और पानी। राजा भोज रूठकर घुडसाल के एक कोने में जा बैठा। जब एक भंगी की छोकरी घुडसाल को साफ करने के लिये झाडू लेकर गई तो उस राजा को इस प्रकार कोने में रूठे हुएये देखक बहुत आश्चर्य हुआ। उस लड़कीक ने सारा हाल हाजा भोज के दोनो लड़कों मोर और गोर को कह सुनाया। दोनो राजकुमार राजा भोज की इस दयनीय स्थिति को देखकर बहुत दुखी हउए। राजा भोज ने रात को स्वप्न में दीखने वाली सपनावती तथा दीप के सुन्दर महल की सारी बात कह सुनाई। राजा भोज ने कहा- मैं वृद्ध हो गया हूँ, तुम दोनो युवक हो, अतः तुम किसी भी कीमत पर सपनावती का पता लगाकर उसका मेरे साथ विवाह करवा दो। यदि तुम ऐसा नहीं कर सकते हो, तो मैं यही बैठा-बैठा प्राण दे दूँगा।

    राजकुमार किसी प्रकार मनाकर राजा को महल में ले आये और समझने लगे। बड़े भाई मोर ने राजा से कहा- महाराज! अब आप वृद्ध हो गए है इस वय में विवाह उचित नहीं। लोग सुनेगे तो हसेंगे, पर राजा भोज ने कहा यदि तुम्हें मुझसे काम होतो सपनावती को ढूँढकर लादो, तभी अमलपानी करूँगा।

    राजकुमार मोर एक घोड़े पर सवार होकर सपनावती की खोज में निकला। चलते चलते एक धूर्तों की नगरी में पहुँचा। मोर थक गया था, अतः उसने वही सुस्ताने की सोची। नगर के रास्ते पर दो स्त्रियाँ आमने-सामने बैठी थी, इन्होंने जब एक सुन्दर घुड़सवार को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुई और सोचा आज शिकार अच्छा रहेगा। दोनो स्त्रियों ने सवार को देख कर कहा- “परदेशी! ठहरो, कहा जा रहे हो, हम तुम्हारी दोनो स्त्रियां जाने कबसे बाट जोह रही है।“

    “मैं अविवाहित हूँ, सुन्दरी। फिर मेरी स्त्रियाँ कैसी!” यो कहकर सवार लापरवाही से आगे चलनेको उद्यत हुआ। लेकिन दोनों स्त्रियों ने घुडसवार को घेर लिया और कहने लगी, प्रिय! तुम्ही हमारे पति हो। हमारा विवाह बचपन में हुआ था। मोर इन दोनों धूर्त स्त्रियों के प्रेम-पाश में फस गया, वही रुक गया। मोर धीरे-धीरे अपना सारा धन गवा बैठा। तब उन दोनों धूर्ताओं ने एक दिन मोर के कपड़े छीन कर लगोटी पहना कर बाहर निकाल दिया।

    बेचारा राजकुमार मोर दर दर ठोकर खाता फिरने लगा। नौकरी की तलाश में भटकता रहा। एक दिन एक तेली ने रहम कर मोर को अपने कोल्हू मे बैल की जगह जोत दिया। तब से मोर दिन भर कोल्हू चलाता और रात को खा पीकर आराम करता।

    इधर राजा भोज सपनावती की याद में घुल-घुल कर दुबला हो गया। सपनावती के बिना एक-एक पल एक-एक युग के बराबर बीतता था। भोज की यह दशा देखकर उसका छोटा लडका गोर-घर से घोड़े पर सवार होकर सपनावती की खोज में निकल पड़ा।

    गोर भी चलते 2 धूर्तों की नगरी में पहुँचा। रास्ते में एक साहूकार मिला। वह उस सवार को देखकर रोने लगा। गोर ने पूछा- ”तुम किस लिये रो रहे हो?” साहूकार कहने लगा- “मैं अपने लिये नहीं तुम्हारे लिये रो रहा हूँ, पथिक। तुम कितने सुन्दर हो, पर मेरी आँखे तुम्हारे दुर्दशा-ग्रस्त निकट भविष्य को साफ-साफ देख रही है। गोर साहूकार की बाते सुनकर सचेत हो गया और उसने मन में निश्चय किया मैं धूर्तों की नगरी में से होकर जाऊँगा जिससे धूर्त नगरी को धूर्तता हमेशा लिये खत्म हो जाय। गोर को अपनी वीरता और बुद्धिमत्ता से बढ़कर अपने चरित्र पर पूरा विश्वास था। रास्ते में वह दो धूर्त स्त्रियाँ मिली उन्होंने गोर को अपने फंदे में फँसाना चाहा, लेकिन गोर सावधान था, उसने अपनी तलवार निकाल कर उनके दो टुकडे कर दिये और उशका घोड़ा फिर वायुवेग से बढ़ चला।

    चलते चलते गोर एक राक्षस की नगरी में जा पहुँचा। सारी बस्ती उजड़ी पड़ी थी, राक्षस बाहर भोजन की तालाश में गया हुआ था। राक्षस की लड़की फूलादे ने झरोख में से देखा कि शहर के दरवाजे में एक आदमी घुसा है। वह दौड़ी दौड़ी उसके पास आई और रोती हुई कहने लगी- तरुण, तुम यहाँ किधर से राह भटके गये? यहाँ किसी मनुष्य का नाम नहीं। मेरा पिता यदि पहुँचा तो तुम्हारे टुकड़े टुकड़े बिखर देगा। यो कहकर फूलाद प्यासी आँखों से उस घुड़सवार के रूप को पीने लगी।

    “अच्छा, जब तुम आही गए हो, मैं तुम्हे अवश्य बचाऊँगी। तुम महल के तहखाने में घुस रहो। देखो आवाज करना। इतने में गोर को जोर जोर से आवाज सुनाई दी, कि वह बोल उठा- सुन्दरी, यह भयंकर कर्णभेटी आवाज कैसी? आवाज, मेरा बाप कूदता फांदता रहा है, जिसकी धमक से पहाड़ के पहाड़ लुढक रहे हैं। बड़ा भयंकर है मेरा बाप। यों कहकर फुलादे ने चुप रहने का इशारा करते हुये घुडसवार को तहखाने का रास्ता दिखा दिया। इतने में राक्षस पहुँचा, फूँ फा-सू सा कहीं मनुष्य की गन्ध है।” राक्षस चिल्लाया! फूलादे ने कहा मैं ही एक बच्ची हूँ, मुझे और खा जाओ तो तुम्हारा दिल खुश हो, यहां मनुष्य छोड़ परिन्दा भी पर नहीं मारता। यो कहकर फुलादे रोने लगी। राक्ष, अपनी लड़की को रोती देख कर प्यार से कहने लगा- फूलांदे, तुम्हें किसने दुख दिया है, उसका नाम बताओं उसको कच्चा ही चबा जाऊँ तो फिर मै तेरा बाप कैसा। फूलादे ने कहा- यहाँ कौन मुझे दुःख देने आयेगा। अकेले दिन तोड़ती हूँ। मेरा किसीसे विवाह कर दो तो अपना जीवन आनन्द से बिताऊँ।

    राक्षस ने कहा कि यहां कौन है, जिससे तुम्हारा विवाह हो, हाँ, तुम यदि किसी को पसन्द कर लो तो मैं तुम्हारा विवाह कर दूँगा। फूलादे ने वचन देने के लिये कहा। राक्षस ने वचन दे दिया।

    फूलांदे तुरन्त महल के तहखाने से घुड़सवार को निकाल लाई। राक्षस के मन मं उसे खाने की आई लेकिन वचन दे दिया था, इससे मन मारे रह जाना पड़ा। राक्षस ने उसी समय दोनों के हाथ मिला दिये और इस प्रकार विवाह कर दिया।

    पर गोर को तो सपनावती की लगन लगी थी उसने फूलांदे से सारीबात कह सुनाई। गोर ने एक दिन राक्षस से सपनावती के बारे में पूछा तो राक्षस ने कहा- हुँ हमरी कोश हजार, फरू धण फेरीआ, सपनावती सरखी, अमे देखी नही नारीआ। नवु सामल्यु नाम, काम की कोई देने तू जाते रहन जवान, भुलो का भमे?

    यह उत्तर सुनकर गोर फूलांदे को धीरज बंधा कर आगे चल पड़ा। आगे गोर को मरामण राक्षस की लड़की जेजावती मिली। जेजावती ने भी गोर को मोम की मक्खी बनाकर बचाया और जेजावती की प्रार्थना पर मरावण ने उसका विवाह गोर के साथ कर दिया। गोर ने जेजावती से कहा मैं सपनावती की खोज में निकला हूँ, अतः जब तक उसका पता नहीं लगालूँ तब तक कहीं विश्राम नहीं ले सकता। गोर अपने घोड़े पर सवार होकर आगे चल पड़ा और एक भयंकर जंगल में जा पहुँचा।

    जंगल में बालनाथ योगी धूनी रमाएं बैठा था। गोर ने योगी दण्डवत् प्रणाम किया और थका हारा वहां बैठ गया। योगी ने कहा- बच्चा, यहाँ कैसे पहुँचा। गोर ने कहा- जोगीराज, मैं सपनावती की तलाश में हूँ। बालनाथ योगी ने कहा कि यदि तुम सपनावती को पाना चाहते हो तो एक साल सेवा करो। गोर योगी की सेवा करने लगा। योगी एक दिन गोर पर बहुत प्रसन्न हुआ और कहने लगा- यह सामने मेरी घोड़ी, जा इस पर सवार हो जा। यह तुम्हे वांछित स्थान पर पहुँचा देगी। गोर घोड़ी पर सवार हुआ। गोर ने घोड़ी से कहा- मेरे मन में जिस स्थान पर जाने की इच्छआ है, मुझे वहां ले चल। गोर का कहना था कि घोड़ी उड़ चली। सारी पृथ्वी का चक्कर लगाकर वह घोड़ी सात समुद्रों को पार करती हुई एक द्वीप में पहुँची। गोर उस स्थान को देखकर आनन्द से नाच उठा, यही उसका वांछित स्थान था। घोड़ी रुकी, गोर उतर कर चल पड़ा। गोर ने देखा-----

    सात समुद्र जल भरयो, तरयो मोहोल ते उपर

    दरवाजे भाणक दरखत, छत्रपण अमर छाजे,

    सोनागढ़ सरसार, बगलो, मांहीकांचनो बिराजे।

    गोर महल के अन्दर गया तो वह क्या देखता है कि एक सुन्दरी का धड़ अलग पड़ा है और गर्दन अलग पड़ी है। गोर यह देखकर अवाक् हो रहा। फिर धीरे धीरे गोर ने अपने को संभाला और सोचना शुरु किया। गोर ने देखा कि खूटीपर एक अमृत कुप्पी लटक रही है। गोर ने उसे उतारा और उससे कुछ बूंदे लेकर धड़ और गर्दन पर छिड़क दिया। बूंदों का गिरना था कि एक सुन्दरी वही सपनावती अंगड़ाई लेकर उठ खड़ी हुई कि आज तो खूब नींद आई। सपनावती ने सामने एक तरुण राजकुमार को देखा। उसको विश्वास नहीं हुआ, यहां पर यह मनुष्य कैसा। गोर ने तुरन्त सारी बात कह सुनाई और प्रार्थना की कि मैं आपको अपनी मां बनाने आया हूँ।

    सपनावती ने रो रोकर अपनी व्यथा कथा कह सुनाई। मै एक शजगर नामक योगी की स्त्री हूँ। यह योगी जब बाहर जाता है तो मेरे दो टुकड़े कर जाता है जब वापस आता है तो अमृत की बूंदे छिड़ककर मुझे सजीव कर देता है और फिर मेरे साथ रमण करता है। मै दुखिनी हूँ तुम मेरा उद्धार करो।

    सपनावती ने गोर को तलवार की म्यान का रहस्य बतलाते हुए कहा कि जैसे ही इस तलवार तो तुम म्यान में अंदर डाल दोगे तो सातो समुद्र सहित यह द्वीप, यह महल और मैं इस में बंदी हो जायेंगे। जब तुम निकालोगे हम सब अलग अलग प्रकट हो जायेंगे। साथ ही सपनावती ने शजगर को मारने की युक्ति बताई और गोर को कुछ गोले दे दिये।

    गोर ने तलवार ज्योही म्यान में डाली कि सारे समुद्र द्वीपादि सभी उसमें समा गए। शजगर को मालूम हुआ तो वह पीछे दौड़ा, लेकिन गोर ने जब गोले चलाये तो सेजगर मर गया, गोर रास्ते में अपनी दोनों परिणीता बंधुओं के साथ लेता आया। धूर्त नगरी में पहुँचकर गोर ने अपने बड़े भाई को बैल की जगह जुते हुये देखा। गोर ने अपने बड़े भाई का उद्धार किया और उसे कपड़े पहनाकर अपने साथ ले लिया।

    राजा भोज ने सामने जाकर गोर ने तलवार म्यान से निकाली कि एक अद्भूत दृश्य देखने को मिला। राजा भोज ने अपने स्वप्न को साक्षात् देखा।

    सात समुद्र, बीच में एक द्वीप, महल माणिक के वृक्ष आदि। इस प्रकार से राजा भोज सपनावती को पाकर कृत मनोरथ हुआ।

    सूफी परम्परा में सपनावती का संभाष्य रूप

    ऊपर सपनावती की लोकवार्ता दी गई है। जायसी ने पदमावत में जिस सपनावती का उल्लेख किया है, उसके अनुसार इस का संबन्ध विक्रम से है। भोज और विक्रम का नाम विपर्यय संभव दीखता है। जायसी के उल्लेख से स्पष्ट है कि विक्रम स्वयं सपनावती को अपने पुरुषार्थ से प्राप्त करता है, इससे स्पष्ट है कि लोकवार्ता में सपनावती को पाने का सारा श्रम जो राजा भोज के पुत्र गोर ने किया है, वह सूफी-साधनापद्ध को किसी भी प्रकार स्वीकार्य नहीं हो सकता।

    सभी प्रेम काव्यों में साधक ही स्वयं जोगी बनकर तरह तरह की विपत्तियों को झेलवता हुआ अंत में अभीष्ट प्राप्त करता है। इससे संभव दीखता है कि सपनावती में यह लोकवार्ता अवश्य बदल गई होगी, इतना तो जायसी के उल्लेख से भी स्पष्ट है कि सपनावती को पाने का प्रयत्न विक्रम को ही करना पड़ा है। बीच में आनेवाली धूर्तनगरी और दो राक्षसों की कथा-साधक के साधन-पथ की कथिनाइया है। सूफी साधना पद्धति में गुरु का बड़ा महत्व है, जायसी ने यहा सुआ गुरु का काम करता है, संभवतः सपनावती में भी कोई मार्ग दर्शक बना होगा। यदि इसी कहानी के आधार पर सपनावती प्रेम काव्य किसी सूफी फकीर द्वारा लिखा गया है तो वह बाल-नाथयोगी ही गुरु का पद प्राप्त करने में समर्थ है।

    यह लोकवार्ता इस प्रकार की अवश्य है कि जिसे आधार बना कर सूफी प्रेम-काव्य सरलता से लिखा जा सकता था। यह सौभाग्य का विषय है कि सपनावती की मूल लोक-वार्ता मिल गई है, जिसकी वर्षों से शोध की जा रही थी।

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