सम्मेलन पत्रिका के सूफ़ी लेख
प्रेमाख्यानकार कवि जान और उनका कृतित्व- डाक्टर हरीश
भारतीय साहित्य में प्रेमाख्यान-काव्यों की परंपरा बड़ी प्रशस्त रही है। यह परंपरा सूफी, असूफी और दक्खिनी तीनों प्रेमाख्यानों के रूप में मिलती है। यही नहीं, भारत की अनेक प्रादेशिक भाषाओं में भी अनेक प्रेमाख्यान काव्य लिखे गये हैं, जिन पर विद्वानों ने यत्किंचित्
सूर के माखन-चोर- श्री राजेन्द्रसिंह गौड़, एम. ए.
हिन्दी-काव्य में बाल-मनोविज्ञान के प्रथम प्रणेता भक्त सूरदास ने अपने आराध्य बालकृष्ण की विविध लीलाओं के जो चित्र उतारे हैं, उनमें माखन-चोरी के चित्र अत्यन्त आकर्षक, मोहक, सरस, अनूठे और प्रभावोत्पादक होने के साथ-साथ बाल-चापल्य के वास्तविक प्रतीक है। विशेषता
When Acharya Ramchandra Shukla met Surdas ji (भक्त सूरदास जी से आचार्य शुक्ल की भेंट) - डॉ. विश्वनाथ मिश्र
यह नक्षत्रों से भरा आकाश वियोगी जनों के लिए एक बहुत बड़ा सहारा है। उस दिन भी तो आकाश नक्षरों से भरा हुआ था और मैं उस सुनील नभ के प्रत्येक तारे में अपनी प्रिया के रूप-वैभव की गरिमा देखने में तल्लीन होकर, महादेवी जी की यह पंक्ति- सो रहा है विश्व पर प्रिय
प्रेम और मध्ययुगीन कृष्ण भक्ति काव्य- दामिनी उत्तम, एम. ए.
वैदिक साहित्य के अन्तर्गत प्रेम शब्द का प्रायः अभाव ही है, और जहाँ प्रेम शब्द का प्रयोग हुआ भी है वहाँ वह काम शब्द के अर्थ में हुआ है, जिससे कामना का अभाव प्रकट होता है। यदि व्याकरण की दृष्टि से देखें तो प्रियस्यभावः को प्रेम कहा जा सकता है। प्रिय को
महाकवि माघ और उनका काव्य सौन्दर्य- श्री रामप्रताप त्रिपाठी, शास्त्री
माघ केवल एक सिद्धहस्त कवि ही नहीं थे, प्रत्युत वे एक सर्वशास्त्रतत्वज्ञ प्रकाण्ड पण्डित भी थे। उनकी जैसी बहुज्ञता तथा बहुश्रुतता अन्य संस्कृत कवियों में कम मिलती है। भिन्न-भिन्न शास्त्रों की छोटी-से-छोटी बातों का जिस निपुणता एवं सुन्दरता के साथ उन्होंने
सूफ़ी काव्य में भाव ध्वनि- डॉ. रामकुमारी मिश्र
भाव स्पष्टतः स्थायी भावों से सम्बद्ध हैं किन्तु विभावों की सम्यक् योजना न होने पर भी वे प्रयुक्त हो सकते हैं अतः अनुभवों के आधार पर अथवा चित्तवृत्तियों की प्रधानता के अनुसार भाव ध्वनियों का निर्णय समीचीन प्रतीत होता है। सूफ़ी काव्यों (14-16वीं शती के)
दक्खिनी हिन्दी के सूरदास-सैयद मीरां हाशमी- डॉ. रहमतउल्लाह
ब्रजभाषा के महाकवि सूरदास के अतिरिक्त दक्खिनी हिन्दी में भी एक सूरदास हो चुका है जिसका नाम सैयद मीरां हाशमी बताया जाता है और जो दक्षिण भारत के आदिलशाही राज्यकाल का प्रसिद्ध कवि था। दक्खिनी हिन्दी का अधिकांश साहित्य इसी राज परिवार के संरक्षण में लिखा
संतों के लोकगीत- डॉ. त्रिलोकी नारायण दीक्षित, एम.ए., पी-एच.डी.
सन्त साहित्य के विद्वान डॉ. दीक्षित लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के व्याख्याता है। आपने इस लेख में सन्तों के लोकगीतों पर विवेचना करते हुए उनका एक संक्षिप्त परिचायत्मक इतिहास प्रस्तुत किया है। -संपादक लोकगीत के वर्ण्य विषय अव्यक्तिक व्यापक
सन्तों की प्रेम-साधना- डा. त्रिलोकी नारायण दीक्षित, एम. ए., एल-एल. बी., पीएच. डी.
मानव ने परम ज्योति परब्रह्म के दर्शन नहीं किए परन्तु उसके गुणगान की परम्परा प्राचीन- बड़ी ही प्राचीन है। सभ्यता एवं शिक्षा के प्रकाश-प्रसार के पूर्व, समाज की स्थापना से भी पूर्व के आदिम मानव को इस विश्व के संचालन में, एक ही पेड़ में विविध प्रकार के फूलों
पदमावत की एक अप्राप्त लोक कथा-सपनावती- श्री अगरचन्द नाहटा
प्रेमाख्यानों की परंपरा बहुत प्राचीन है। हिंदी के विद्वानों का प्राकृतादि भाषाओं की प्रेम-कथाओं का अध्ययन न होने के कारण व सूफी प्रेमाख्यानों की ही अधिकतर चर्चा करते रहते है। इससे पूर्ववर्ती प्रेम-कथाओं की ओर अभी तक उनका ध्यान कम ही गया प्रतीत होता है।
मुसलमान शासकों का संस्कृत प्रेम- श्री हरिप्रताप सिंह
लगभग सभी भातरीय भाषाओं की जननी देवभाषा संस्कृत को यह गौरव प्राप्त है कि विदेशों से आये हुये मुस्लिम-शासकों ने भी इसकी सेवा की। भारत में मुस्लिम शासन के प्रारंभिक काल, 12वीं शताब्दी से लेकर 17वी शताब्दी तक की अवधि में ऐसे अनेक मुसलमान-शासक हुये, जिन्होंने
रसिक सम्प्रदाय और सखी भाव- डॉ. तपेश्वरनाथ
मध्यकालीन हिन्दी भक्ति साहित्य का सर्वेक्षण करने पर जिज्ञासुओं को सामान्यतः उसकी प्रधानतम प्रवृत्ति के रूप में मधुरोपासना का तत्व-साक्षात्कार होता है। भक्ति की चाहे निर्गुण शाखा हो या सगुण, निर्गुण का चाहे योग मार्ग हो या प्रेममार्ग, सगुण की चाहे कृष्णोपासना
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere