हज़रत मख़दूम अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी के जलीलुल-क़द्र ख़ुलफ़ा - सय्यद मौसूफ़ अशरफ़ अशरफ़ी
हज़रत मख़दूम अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी के जलीलुल-क़द्र ख़ुलफ़ा - सय्यद मौसूफ़ अशरफ़ अशरफ़ी
सूफ़ीनामा आर्काइव
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हज़रत मख़दूम अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी की ज़ात-ए-गिरामी से सिलसिला-ए-आ’लिया क़ादरिया जलालिया अशरफ़िया और सिलसिला-ए-चिश्तिया निज़ामिया अशरफ़िया की तर्वीज-ओ-इशाअ’त हुई और कसीर औलिया-ए-रोज़गार-ओ-फ़ाज़िल उ’लमा-ओ-मशाइख़-ए-किबार दाख़िल-ए-सिलसिला हुए।आपके ख़ुलफ़ा की ता’दाद बहुत ज़ियादा है जिन्हें ख़ुद आपने अपनी हयात-ए-तय्यिबा में दुनिया के गोशे-गोशे में इशाअ’त-ए-इस्लाम और तब्लीग़-ए-दीन के लिए साहिब-ए-विलायत बना कर भेजा।आपके तक़रीबन सभी ख़ुलफ़ा अपने वक़्त के ज़बरदस्त आ’लिम-ओ-सूफ़ी थे।उन ख़ुलफ़ा ने इस्लाम की बड़ी ख़िदमत की।ज़ैल में हम आपके कुछ उन मशहूर-ओ-मा’रूफ़ ख़ुलफ़ा का ज़िक्र कर रहे हैं जिनका आपसे गहरा तअ’ल्लुक़ था।
1.हाजी-उल-हरमैन हज़रत सय्यद शाह अबुलहसन अ’ब्दुर्रज़्ज़ाक़ नूरुल-ऐ’न रहमतुल्लाह अ’लैह
आप जीलान के रहने वाले थे और हज़रत ग़ौसुल-आ’लम की ख़ाला-ज़ाद बहन के साहिब-ज़ादे थे।आपके वालिदैन ने उन्हें हज़रत की फ़र्ज़न्दी में दिया और हज़रत ने उन्हें ब-ख़ूबी क़ुबूल फ़रमाया।हज़रत ग़ौसुल-आ’लम सय्यद अ’ब्दुर्रज़्ज़ाक़ से बहुत मोहब्बत फ़रमाते थे और उन्हें इंतिहाई मोहब्बत से “नूरुल-ऐ’न” के ख़िताब से नवाज़ा।हज़रत नूरुल-ऐ’न को हज़रत की रूहानी फ़र्ज़न्दी का शरफ़ हासिल हुआ।हज़रत ग़ौसुल-आ’लम ने अपनी हयात-ए-मुबारका में उन्हें अपना जानशीन नामज़द फ़रमाया और सारे तबर्रुकात इ’नायत फ़रमाए।हज़रत ग़ौसुल-आ’लम के विसाल के बा’द हज़रत हाजी अ’ब्दुर्रज़्ज़ाक़ नूरुल-ऐ’न रहमतुल्लाह अ’लैह आपके सज्जादा-नशीन हुए और चालीस साल सज्जादा-नशीनी फ़रमाई और रुश्द-ओ-हिदायत के फ़राएज़ अंजाम देते रहे।आपने हज़रत ग़ौसुल-आ’लम के ख़ुतूत को मक्तूबात-ए-अशरफ़ी के नाम से किताबी शक्ल में तर्तीब दिया।
2. हज़रत शैख़ निज़ामुद्दीन ग़रीब अल-यमनी
आप यमन के रहने वाले थे।जब हज़रत ग़ौसुल-आ’लम यमन तशरीफ़ ले गए तो वहाँ आपको हज़रत से शरफ़-ए-मुलाक़ात हासिल हुआ और फिर हज़रत के हल्क़ा-ए-इरादत में दाख़िल हुए। आपकी अ’क़ीदत-मंदी का ये आ’लम था कि जब हज़रत से क़रीब हुए तो ज़िंदगी भर जुदा न हुए और अपनी पूरी ज़िंदगी हज़रत की ख़िदमत में वक़्फ़ कर दिया।आप एक अच्छे अदीब-ओ-शाइ’र भी थे।ग़रीब आपका तख़ल्लुस था।आपको हज़रत से वो क़ुर्ब हासिल था जो नूरुल-ऐ’न के अ’लावा किसी को भी हासिल न था। हज़रत ग़ौसुल-आ’लम की सवानेह-ए-हयात और मल्फ़ूज़ात “लताएफ़-ए-अशरफ़ी” के नाम से आपने तर्तीब दिया।
3. हज़रत शैख़ कबीर रहमतुल्लाह अ’लैह
आप,नवाह-ए-जौनपुर में एक गाँव “सरहरपुर” है,वहीं के रहने वाले थे।बड़े आ’लिम-ओ-फ़ाज़िल और इ’ल्म-ए-ज़ाहिर से पूरे तौर पर आरास्ता-ओ-पैरास्ता थे।जब हज़रत ग़ौसुल आ’लम के पीर-ओ-मुर्शिद सुल्तानुल-मुर्शिदीन हज़रत शैख़ अ’लाउद्दीन ने आपको दयार-ए-जौनपुर का साहिब-ए-विलायत बनाया तो आपने अ’र्ज़ किया कि आप मुझे जौनपुर भेज रहे हैं वहाँ एक शेर भी रहता है।आपके पीर-ओ-मुर्शिद ने फ़रमाया कि घबराने की कोई बात नहीं।वहाँ तुम्हें एक ऐसा बच्चा मिलेगा जो उस शेर के लिए काफ़ी होगा।वो बच्चा जिसके बारे में आपके पीर ने पेश-गोई फ़रमाई थी यही हज़रत शैख़ कबीर थे।आपको हज़रत के ख़लीफ़ा होने का शरफ़ हासिल हुआ और हज़रत ग़ौसलु-आ’लम के असहाब में बुलंद मक़ाम रखते थे।हज़रत ने आपको “जौहर-ए-कान-ए-दक़ाइक़” फ़रमाया है।रूहआबाद रसूलपुर दरगाह की नियाबत हज़रत ग़ौसुल-आ’लम की अ’दम-ए-मौजूदगी में हज़रत शैख़ कबीर के सुपुर्द होती थी।
4. हज़रत शैख़ मोहम्मद दुर्र-ए-यतीम रहमतुल्लाह अ’लैह
हज़रत शैख़ कबीर रहमतुल्लाह अ’लैह के साहिब-ज़ादे थे।कम-सिनी में आपके वालिद-ए-गिरामी का इंतिक़ाल हो गया।हज़रत ग़ौसुल-आ’लम ने उनकी ता’लीम-ओ-तर्बियत ख़ुद फ़रमाई और उसके बा’द इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त अ’ता फ़रमाई।हज़रत आपसे बहुत मोहब्बत फ़रमाते थे और प्यार से “दुर्र-ए-यतीम” के नाम से आपको याद फ़रमाते थे।बा’द में वो इसी नाम से मशहूर हुए।
5.हज़रत शैख़ शम्सुद्दीन अवधी रहमतुल्लाह अ’लैह
आप हज़रत शैख़ निज़ामुद्दीन अवधी के फ़र्ज़न्द थे।आप अयोध्या के रहने वाले थे।आपके बारे में अक्सर फ़रमाया करते थे कि अवध से एक दोस्त की ख़ुशबू आ रही है।आप मौलाना रफ़ी’उद्दीन अवधी से उ’लूम-ए-अ’क़्लिया और नक़्लिया की तक्मील के बा’द बैअ’त के ख़्वास्त-गार हुए तो मौलाना ने कहा कि मेरे पास जो कुछ था वो मैने तुम्हें अ’ता कर दिया।तुम्हारी राह-ए-सुलूक की तक्मील एक सय्यद से होगी।चुनाँचे जब हज़रत से मुलाक़ात हुई तो फ़ौरन मुरीद हो गए।हज़रत ने उन्हें ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त अ’ता फ़रमाया।हज़रत उनके बारे मे फ़रमाते थे: “अशरफ़-ए-शम्स-ओ-शम्स-ए-अशरफ़”।इस जुम्ले से आपकी अ’ज़मत का इज़हार होता है।
6. हज़रत शैख़ क़ाज़ी हुज्जत रहमतुल्लाह अ’लैह
आप हज़रत के मशहूर-ओ-मा’रूफ़ ख़ुलफ़ा मे थे।मा’क़ूलात-ओ-मंक़ूलात के ज़बरस्त आ’लिम थे।रूहआबाद के क़रीब ही सुकूनत इख़्तियार की और दीनी-ओ-रूहानी इस्लाह को अपनी ज़िंदगी का मिशन बनाया।
7. हज़रत शैख़ अबुल-वफ़ा ख़्वारज़मी रहमतुल्लाह अ’लैह
आप बड़े साहिब-ए-इ’ल्म-ओ-फ़ज़्ल-ओ-साहिब-ए-ज़ौक और ज़ूद-गो-शाइ’र थे।बिल-ख़ुसूस हक़ाइक़-ए-सूफ़िया को नज़्म करने में आपको कमाल हासिल था।आपका शुमार हज़रत के मख़्सूस ख़ुलफ़ा में होता है।
8. मलिकुल-उ’लमा हज़रत शैख़ क़ाज़ी शहाबुद्दीन दौलतआबादी रहमतुल्लाह अ’लैह
आप माया-ए-नाज़ आ’लिम थे।आपका शुमार उस दौर के अकाबिर उ’लमा में होता था।सुल्तान इब्राहीम शर्क़ी के दौर में क़ाज़ी-उल-क़ुज़ात के ओ’हदा पर फ़ाइज़ थे।आप जब पहली बार हज़रत की ख़िदमत में हाज़िर हुए तो आपके तबह्हुर-ए-इ’ल्मी से बे-पनाह मुतआस्सिर हुए।आपका ये आ’लम था कि जब कोई अहम इ’ल्मी मस्अला पेश आता तो हज़रत की ख़िदमत में उसे समझने के लिए जाते और आपको पूरी तसल्ली हो जाती।बहुत सी किताबें और हवाशी आपने तहरीर फ़रमाया,जिनमें शर्ह-ए-काफ़िया,नह्व-ए-इर्शाद, बदीअ’-उल-बयान,बह्र-ए-मव्वाज,उसूल-ए-इब्राहीम शाही,रिसाला दर-तक़्सीम-ए-उ’लूम और रिसाला दर सनाए’ मशहूर हैं।
9.हज़रत शैख़ मौलाना अ’ल्लामुद्दीन रहमतुल्लाह अ’लैह
आप अपने दौर के जय्यिद आ’लिम थे।चंद पेचीदा इ’ल्मी मसाएल मौलाना के लिए उक़्दा-ए-ला-यनहल बने थे।मुख़्तलिफ़ उ’लमा से उन मसाएल को समझने की कोशिश की लेकिन कोई आपको तसल्ली-बख़्श जवाब न दे सका।जाइस में हज़रत ग़ौसुल-आ’लम से मुलाक़ात हुई तो आपने उन मसाएल को हज़रत की ख़िदमत में पेश किया और समझने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की।हज़रत ने आपके हर सवाल का ऐसा इत्मीनान-बख़्श जवाब दिया कि मौलाना आपकी वुस्अ’त-ए-इ’ल्मी से बे-पनाह मुतअस्सिर हुए और मुरीद हो गए और इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त से सरफ़राज़ हुए।
10.हज़रत शैख़ुल-इस्लाम शैख़ अहमद गुजराती रहमतुल्लाह अ’लैह
आप बड़े आ’लिम-ओ-फ़ाज़िल और उ’लूम-ओ-फ़ुनून-ए-ज़ाहिरी के जामे’ थे।इ’ल्म-ए-हैअत,नुजूम और हिक्मत में आपको दख़्ल था। उन्होंने चंद इ’ल्मी मसाएल हज़रत से दरयाफ़्त किए।हज़रत ने उन मसाएल के ऐसे शाफ़ी जवाबात दिए कि शैख़ुल-इस्लाम आपकी इ’ल्मी बसरीत पर दंग रह गए और हज़रत से मुरीद हो गए।हज़रत से उनकी अ’क़ीदत का ये आ’लम था कि एक साअ’त के लिए भी ख़िदमत से जुदा नहीं होते थे।
11.हज़रत शैख़ सफ़ीउद्दीन रुदौलवी रहमतुल्लाह अ’लैह
आप हज़रत इमाम-ए-आ’ज़म रहमतुल्लाह अ’लैह की औलाद से थे और इ’ल्म-ओ-फ़ज़्ल,ज़ोहद-ओ-तक़्वा में अबू हनीफ़ा-ए-सानी थे।आप भी हज़रत के तबह्हुर-ए-इ’ल्मी से मुतअस्सिर हो कर मुरीद हो गए और चंद दिनों बा’द इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त से नवाज़े गए।हज़रत ने उनके बारे में फ़रमाया है।
“दर बिलाद-ए-हिन्द कसे रा कि ब-फ़ुनून-ए-दरख़शंदः ग़रीब-ओ-शुयून-ए-अ’जाएब पैरास्तः-दीदम वय बूदः”
या’नी मुल्क-ए-हिन्द में सिर्फ़ वही तंहा थे, जिन्हें मैंने मुख़्तलिफ़ उ’लूम-ओ-फ़ुनून से मुज़य्यन और अ’जीब-ओ-ग़रीब सिफ़ात से आरास्ता-ओ-पैरास्ता देखा।हज़रत ग़ौसुल-आ’ज़म ने उनके लिए दु’आ फ़रमाई कि उनको नूरुल-अनवार हासिल हो और उनकी औलाद में तहसील-ए-इ’ल्म का सिलसिला बराबर जारी रहे।और सिर्फ़ उन्हीं की ख़ातिर रुदौली में चालीस रोज़ क़ियाम फ़रमाया और उस अ’र्सा में उनको सुलूक की तमाम ता’लीमात दीं।आपका शुमार भी हज़रत ग़ौसुल-आ’लम के अजिल्लह ख़ुलफ़ा में होता है।
12.हज़रत शैख़ रफ़ी’उद्दीन अवधी रहमतुल्लाह अ’लैह
आप एक मुम्ताज़ आ’लिम-ए-दीन थे।हज़रत के नामवर ख़ुलफ़ा में आपका शुमार होता है।शागिर्द से उस्ताद की अ’ज़मत का पता चलता है।आपके बारे में बस इतना जान लेना बहुत है कि आप हज़रत शम्सुद्दीन “फ़रियाद-रस” रहमतुल्लाह अ’लैह के उस्ताद थे।
13.हज़रत शैख सुलैमान मुहद्दिस रहमतुल्लाह अ’लैह
सूरत के रहने वाले थे।बड़े आ’रिफ़-ए-कामिल,ज़बर-दस्त आ’लिम और मशहूर मुहद्दिस थे और हज़रत के ख़ास ख़ुलफ़ा में थे।
14.हज़रत शैख़ मा’रूफ़-अद्दैमवी रहमतुल्लाह अ’लैह
आप बड़े साहिब-ए-हाल बुज़ुर्ग थे और अकसर सफ़र-ओ-हज़र में हज़रत के साथ रहते थे और मुख़्तलिफ़ उ’लूम-ओ-फ़ुनून में महारत रखते थे।
15.हज़रत शैख़ उ’स्मान इब्न-ए-ख़िज़्र रहमतुल्लाह अ’लैह
आप हज़रत ख़्वाजा गेसू दराज़ रहमतुल्लाह अ’लैह के ख़ानदान के चश्म-ओ-चराग़ थे।आपकी सलाहियतों को देख कर हज़रत ने ख़िलाफ़त अ’ता फ़रमाई।साहिब-ए-लताएफ़-ए-अशरफ़ी ने आपको अजल्लुस्सादात लिखा है।
16.हज़रत शैख़ राजा रहमतुल्लाह अ’लैह
आप शरीअ’त के बड़े पाबंद थे और ज़ोहद-ओ-तक़्वा में बड़ी शोहरत रखते थे।नमाज़ न पढ़ने वाले से मिलना-जुलना,खाना-पीना और गुफ़्तुगू करना किसी हाल में पसंद नहीं कते थे।
17.हज़रत शैख़ सय्यद अ’ब्दुल-वहाब रहमतुल्लाह अ’लैह
आपको अपने पीर से बड़ा वालिहाना लगाव था।एक बार हज़रत ग़ौसुल-आ’लम ने उनको किसी काम से देहली भेजा।वहाँ से वापस आए तो उनके पावँ में आबले बड़ गए थे।हज़रत ग़ौसुल-आ’लम ने उनको अपना जूता इ’नायत फ़रमाया।हज़रत शैख़ सय्यद अ’ब्दुल-वहाब ने कमाल-ए-एहतिराम में जूते को अपने सर पर रख लिया और उसको अपना ताज बना कर चालीस रोज़ तक घूमते रहे।
18. हज़रत शैख़ समाउद्दीन रुदौलवी रहमतुल्लाह अ’लैह
आप हज़रत ग़ौसुल-आ’लम के मुम्ताज़ ख़ुलफ़ा में थे।उनके बारे में हज़रत अशरफ़ जहाँगीर फ़रमाते हैं।
दर तय-ए-अनवार-ए-सब्आ’ अज़ यारान-ए-मा दो कस रा वाक़े’ उफ़्तादः-बूद यके शैख़ अबुल-मकारिम रा कि एहतिमाम-ए-तमाम दर हक़-ए-ऊ मब्ज़ूल शुद ता अज़ाँ दर तय-ए-महलकः ब-दर आमदः, दोउम शैख़ समाउद्दीन रा अज़ मेहनत-ए-बिस्यार-ओ-कुल्फ़त-ए-बे-शुमार अज़ाँ वर्ता ब-दर आवुर्दः शुद।
हमारे अहबाब में दो शख़्स अनवार-ए-सब्आ’ के बह्र-ए-मा’रिफ़त से फ़ैज़याब थे। एक हज़रत शैख़ अबुल-मकारिम जिनकी सारी तवज्जोह हक़-तआ’ला की तरफ़ थी,जिसके ज़रिआ’ हवा-ओ-हवस की मुहलिक मौजों से महफ़ूज़ रहे और दूसरे हज़रत शैख़ समाउद्दीन जिनको बड़ी मेहनत-ओ-जाँ-फ़िशानी और कद्द-ओ-काविश के बा’द उस भंवर से बाहर निकाला गया।
19.हज़रत शैख़ ख़ैरुद्दीन रहमतुल्लाह अ’लैह
आप अपने वक़्त के माया-नाज़ उ’लमा में शुमार किए जाते थे।
उसूल-ए-फ़िक़्ह के बा’ज़ मसाएल पर उ’लमा-ए-वक़्त से सवालात किए लेकिन आपको उनके जवाब से तशफ़्फ़ी नहीं हुई।हज़रत ग़ौसुल-आ’लम से मुलाक़ात के बा’द उन मसाएल की तशरीह चाही तो हज़रत शैख़ ने उनकी इस तरह तशरीह फ़रमाई की शैख़ ख़ैरुद्दीन को पूरी तस्कीन हो गई और उसी वक़्त हज़रत के हाथ पर बैअ’त की।उनके हमराह बारह अफ़राद और भी हल्क़ा-ए-इरादत में दाख़िल हुए।
20.हज़रत शैख़ क़ाज़ी मोहम्मद सिधोरी रहमतुल्लाह अ’लैह
आप हज़रत शैख़ ख़ैरुद्दीन सिधोरी रहमतुल्लाह अ’लैह के हमराह हज़रत ग़ौसुल-आ’लम से मुरीद हुए।आपका शुमार हज़रत के अजिल्लह ख़ुलफ़ा में होता है।इनके बारे में लताएफ़-ए-अशरफ़ी में है कि “क़ाज़ी मोहम्मद सिधोरी ब-उ’न्वान-ए-उ’लूम-ए-ग़र्बिया-ओ-शुयून-ए-मा’लूम-ए-अ’जबिया पैरास्तः बूदंद ख़ुसूसन दर उ’लूम मशारुन इलैह बूदः-अंद”
क़ाज़ी मोहम्मद सिधोरी मुख़्तलिफ़ उ’लूम-ओ-फ़ुनून में अ’जीब-ओ-ग़रीब सालाहियत के मालिक थे,बिलख़ुसूस मज़्कूरा उ’लूम में उन्हें मलका हासिल था।
21.हज़रत शैख़ अबुल-मकारिम अमीर अ’ली बेग रहमतुल्लाह अ’लैह
आप हेरात के अमीर और सुल्तान तैमूर के लशकर के अफ़सर थे।जब हज़रत तुर्किस्तान तशरीफ़ ले गए तो हज़रत से मिले और हज़रत से मुरीद हो गए।ये जाहिल-ए-महज़ थे।हज़रत की ख़िदमत में बारह साल तक रहे।सोहबत-ए-शैख़ ने इ’ल्म-ओ-मा’रिफ़त के सारे दरवाज़े खोल दिए और आ’लम ये था कि बड़े-बड़े उ’लमा आपसे अहम सवालात करते और आप उनका तसल्ली-बख़्श जवाब देते।हज़रत ने आपको ख़िलाफ़त से सरफ़राज़ फ़रमाया और समरक़ंद का साहिब-ए-विलायत बनाया।जहाँ उनके मुरीदों का बड़ा हल्क़ा था।आप अपने मकारिम-ए-अख़्लाक़ की वजह से अबुल-मकारिम कहलाए।
22.हज़रत शैख़ अमीर जमशेद बेग रहमतुल्लाह अ’लैह
आप अमीर के एक दरबारी थे।हज़रत ग़ौसुल-आ’लम अपनी सियाहत के ज़माना में याग़िस्तान पहुँचे तो अमीर मे शैख़ अमीर जमशेद बेग को नज़राना दे कर हज़रत ग़ौसुल-आ’लम की ख़िदमत में भेजा। नज़राने में बहुत से माल-ओ-अस्बाब थे लेकिन जब ये सामान हज़रत ग़ौसुल-आ’लम की ख़िदमत में पहुँचा तो आपने तमाम चीज़ों को फ़ुक़रा में तक़्सीम कर दिया। जमशेद बेग हज़रत से मिल कर इस क़दर मुतअस्सिर हुए कि तैमूर के दरबार से अ’लाहिदा हो कर हज़रत की ग़ुलामी और दरवेशी इख़्तियार कर ली और हज़रत से मुरीद हो गए।हज़रत के साथ हिन्दुस्तान आए और ता’लीम-ओ-तर्बियत पूरी करने के बा’द ख़िलाफ़त से सरफ़राज़ हुए।उसके बा’द रूहआबाद फिर अपने वतन तशरीफ़ लाए जहाँ उन्हों ने रुश्द-ओ-हिदायत का सिलसिला जारी फ़रमाया।इसके अ’लावा बा’ज़ और दूसरे ख़ुलफ़ा के अस्मा-ए-गिरामी ये हैं।
23.हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अ’लैह
24.हज़रत शैख़ असीलुद्दीन जर्राबाज़ रहमतुल्लाह अ’लैह
25.हज़रत शैख़ क़ियामुद्दीन शहबाज़ रहमतुल्लाह अ’लैह
26.हज़रत शैख़ जमीलुद्दीन सफ़ेद-बाज़ रहमतुल्लाह अ’लैह
27.हज़रत शैख़ आ’रिफ़ मकरानी रहमतुल्लाह अ’लैह
28.हज़रत मौलाना शैख़ अबू मुज़फ़्फ़र मोहम्मद लखनवी रहमतुल्लाह अ’लैह
29.हज़रत शैख़ कमाल जाइसी रहमतुल्लाह अ’लैह
30.हज़रत शैख़ फ़ख़्रुद्दीन रहमतुल्लाह अ’लैह
31.हजरत शैख़ ताजुद्दीन रहमतुल्लाह अ’लैह
32.हज़रत शैख़ नूरुद्दीन रहमतुल्लाह अ’लैह
33.हज़रत शैख़ मुबारक गुजराती रहमतुल्लाह अ’लैह
34. हज़रत शैख़ हुसैन रहमतुल्लाह अ’लैह
35.हज़रत शैख़ सैफ़ुद्दीन मस्नद-ए-आ’ली सैफ़ ख़ाँ रहमतुल्लाह अ’लैह
36.हज़रत शैख़ महमूद कसूरी रहमतुल्लाह अ’लैह
37.हज़रत शैख़ सा’दुद्दीन गेसू दराज़ रहमतुल्लाह अ’लैह
38.हज़रत शैख़ अ’ब्दुल्लाह बनारसी रहमतुल्लाह अ’लैह
39.मलिकुल-उमरा हज़रत शैख़ मलिक महमूद रहमतुल्लाह अ’लैह
40. हज़रत शैख़ अबू मुहम्मद उ’र्फ़ मुई’न मथन सिधोरी रहमतुल्लाह अ’लैह
हज़रत ग़ौसुल-आ’लम के ख़ुलफ़ा में कसीर ता’दाद उ’लमा-ओ-फ़ुज़ला की थी जो इ’ल्म-ओ-फ़ज़्ल में अपना एक मुम्ताज़ मक़ाम रखते थे और ज़ोहद-ओ-तक़्वा के ऐ’तिबार से अपने ज़माने के जुनैद-ओ-शिब्ली समझे जाते थे।
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