।। दोहा ।।
कबित कह्यो दोहा कह्यो, तुल्यो न छप्पय छंद ।
बिरच्यो यहै विचारि कै, यह बरवै रस-कंद ।।1।।
।। बन्दना ।।
बन्दौं देवि सरदवा, पद कर जोरि ।
वरनौं काव्य बरैवा, लगइ न खोरि ।।2।।
।। त्रिविध स्वकीयां ।।
।। मुग्धा ।।
लहरत लहर लहरिया, लहर बहार ।
मोतिन जरी किनरिया, बिथुरे बार ।।3।।
लागौ आनि नबेलिअहि, मनसिज बान ।
उकसन लागु उरोजवा, दिगै तिरछान ।।4।।
।। मध्या ।।
निसुदिन चाहन चाहत, श्री व्रजराय ।
लाज जोरावरि है, बसि करत अकाज ।।5।।
रहत नैन के कोरवा, चितवनि छाय ।
चलत न पगु पैजनिआँ, मगु ठहराय ।।6।।
।। प्रौढ़ा ।।
भोरहि बोलि कोइलिआ, बढ़वति ताप ।
घरी एक घरि अलिपा, रहु चुपचार ।।7।।
।। मुग्धा भेद ।।
।। अज्ञात ।।
कौन रोग दौ छतिआ, उकस्यो आइ ।
दुखि-दुखि उठत करेजवा, लगि जनु लाइ ।।8।।
।। ज्ञात ।।
औचक आइ जोबनवा, मोहि दुख दीन्ह ।
छुटिगो संग गोइअवाँ, नहिं भल कीन्ह ।।9।।
।। नवोढ़ा ।।
पहिरत चूनि चुनरिया, भूषन भाव ।
नैनन्हि देत कजरवा, फूलनि-चाव ।।10।।
।। विस्रब्ध-नवोढ़ा ।।
जघन जोरति गोरिआ, करति कठोर ।
छुअन न पावै पिअवा, कहुँ कुच-कोर ।।11।।
।। द्दिविध-परकीया ।।
।। ऊढ़ा ।।
सुनि धुनि कान मुरलिआ, रागन-भेद ।
गै मन छाँड़त गोरिआ, गनत न खेद ।।12।।
निसुदिन सासु ननँदिआ, मोहिं घर घेरु ।
सुनन न देत मुरलिआ, ना धुन टेरु ।।13।।
।। अनूढ़ा ।।
मोहिं बर जोग कन्हैऔ, लागउँ पाँय ।
तुमको पुजउँ देवतवा, होहु सहाय ।।14।।
।। परकीया (ऊढ़ा) के 6 भेद ।।
।। भूत-गुप्त ।।
चूनत फूल गुलबवा, डार कटील ।
टुटिगौ बन्द अँगिअवा, फटु पट नील ।।15।।
अब नहिं तोहिं पढावों, सुगना सार ।
परिगो दाग अधरवा, चोंच तुचार ।।16।।
।। भविष्य-गुप्त ।।
होइ कत कारि बदरिआ, बरखत पाथ ।
जै हौं, घन अमरइआ, संग न साथ ।।17।।
जै हौ चुनन कुसुमिआ, खेत बड़ि दूरि ।
चेरिया केरि छोकरिआ, मोहिं सँग करि।।18।।
।। वचन-विदग्धा ।।
तोरेसि नाक नथुनिआ, मित हित नीक ।
कहेसि नाक पहिरावहु, चित दै सींक ।।19।।
।। क्रिया-विदग्धा ।।
बाहर लै कै दिअवा, बारन जाइ ।
सासु-ननँद घर पहुँचत, देत बुताइ ।।20।।
।। लक्षित ।।
आजु नैन के कोरवा, औरै भाँति ।
नागर नेह नवेलिहि, मूँदि न जाति ।।21।।
।। मुदिता ।।
जै हौं कान्ह नेवतवा, भो दुख दून ।
बहू करै रखवरिआ, है घर सून ।।22।।
नेवते गई ननँदिआ, मैके सास ।
दुलहिनि तोरि खबरिआ, औ पिअ पास ।।23।।
।। कुलटा ।।
जस मदभातल हथिआ, हुमकति जाय ।
चितवत छैलव तरुनिआ, मुह मुसुकाय ।।24।।
चितवत ऊँचि अटरिआ, दाहिन बाम ।
लाखन लखत बिदेसिआ, ह्रै बस काम ।।25।।
।। प्रथम अनुसयना ।।
जमुना-तीर तरुनिअहि, लखि भौ सूल ।
झरिगो कुंज-बेअलिआ, फूलत फूल ।।26।।
ग्रीषम दहत दवरिआ, कुञ्ज-कुटीर ।
तिमि-तिमि तकत तरुनि अहि, बाढ़त पीर ।।27।।
।। द्वितीय अनुसयना ।।
धीरज धरू किन गोरिआ, करि अनुराग ।
जात जहाँ पिअ देसवा, घन बर बाग ।।28।।
जनि मरु रोइ दुलहिआ, करि मन ऊँन ।
सघन कुंज ससुररिआ, औ घर सून ।।29।।
।। तृतीय अनुसयना ।।
मितवा करनि पसुरिआ, सुमन सपात ।
फिरि-फिरि ताकि तरुनिआ, मन पछितात ।।30।।
मित उतते फिरि आओ, देखि अराम ।
मैं न गई अमरैआ, रह्यो न काम ।।31।।
।। गणिका ।।
लखि लखि धनिक नयकवा, बनवति भेख ।
रहि गइ हेरि अरसिआ, कजरा रेख ।।32।।
।। अन्य सम्भोग दुःखिता ।।
मैं पठई जेहि कजवा, आइस साधि ।
छुटिगो सीस जुरववा, दिढ़ करि बाँधि ।।33।।
सखि इत हरबर आवत, भो पथ खेद ।
रहि-रहि लेत उससवा, औ तन सेद ।।34।।
।। रूप-गर्विता ।।
छीन, मलिन, विष-भइआ, औगुन तीन ।
मोहिं कह चन्द-बदनिआ, पिय मति हीन ।।35।।
रातुल भयसि मुगतआ, निरस पखान ।
यह मधु-भरल अधरवा, करसि समान ।।36।।
।। प्रेम-गर्वित ।।
आपुहि देत कजरवा, गूँदत हार ।
चुनि पहिराव चुनरिआ, प्रान-अधार ।।37।।
औरन पाँय जवकवा, नाहन दीन ।
तुम्हैं अँगोरत गोरिआ, न्हान न कीन ।।38।।
।। नायिकावों के और दस भेद ।।
।। (1) प्रोषितपतिका ।।
।। मुग्धा-प्रोषिपतिका ।।
तै अब जासि बेइलिआ, जरि-बरि मूल ।
बिनु पिय सूल करेजवा, लखि तुव फूल ।।39।।
।। मध्या-प्रोषितपतिका ।।
का तुव मंजु लतिअवा, झलति जाय ।
पिअ बिन मन हुड़कइया, मोहिं न सुहाय ।।40।।
।। प्रौढ़ा-प्रोषितपतिका ।।
कासन कहउँ सँदेसवा, पिअ परदेसु ।
लागेउ जइत न फूले, तेहि बन टेसु ।।41।।
।। (2) खण्डित ।।
।। मुग्धा-खण्डित ।।
सखि-सिख सीखि नबेलिआ, कीन्हेसि मान ।
पिय लखि कोप भवनवाँ, ठानेसि ठान ।।42।।
सीस नवाइ नबेलिया, निचवा जोइ ।
छिति खनि छोर छिगुनिआ, ससुकन रोइ ।।43।।
।। मध्या-खण्डिता ।।
ठगि गो पीअ पलँगिआ, आलस पाइ ।
पौढ़हु जाइ बरोठवा, सेज बिछाइ ।।44।।
पोछेहु अनख कजरवा, जावक भाल ।
उपटेउ पीतम छतिया, बिन गुन माल ।।45।।
।। प्रौढ़ा-खण्डिता ।।
पिय आवत अगनइआ, उठि कै लीन्ह ।
बिहसत चतुर तिरिअवा, बैठन दीन्ह ।।46।।
।। परकीया-खण्डिता ।।
जेहि लगि सजन सनेहिया, छुट घर बार ।
अपने होत पिअरवा, साँच परार ।।47।।
पौढ़हु पीअ पलँगिआ, मींजउँ पाय ।
रैनि जगे कर निंदिआ, सब मिटि जाय ।।48।।
।। गणिका-खण्डिता ।।
मितवा ओठ कजरवा, जावक भाल ।
लिहेसि काढ़ि बरिअइआ, तकि मनिमाल ।।49।।
।। (3) कलहान्तरिता ।।
।। मुग्धा-कलहान्तरिता ।।
आयहु अबहिं गवनवाँ, तुरतहि मान ।
अब रस लागि गोरिअवा, मन पछितान ।।50।।
।। मध्या-कलहान्तरिता ।।
मैं मति मन्द तिरिअवा, परलेउ भोरि ।
ते नहिं कन्त मनवलेउँ, तोहिं कछु खोरि ।।51।।
।। प्रौढ़ा-कलहान्तरिता ।।
थकि गौ करि मनुहरिआ, फिरि गौ पीव ।
मैं उठि तुरत न लायउँ, हिमकर हीव ।।52।।
।। परकीया-कलहान्तरिता ।।
जेहि लगि कीन बिरोगवा, ननद जेठानि ।
लीन न लाइ करेजवा, तेहि हित जानि ।।53।।
।। गणिका-कलहान्तरिता ।।
जेहि दीन्हे बहु बेरिया, मोहिं मनि-माल ।
तेहते रूठेउँ सखिआ, फिरि गौ लाल ।।54।।
।। (4) बिमलब्धा ।।
।। मुग्धा-बिप्रलब्धा ।।
मिलेउ न कन्त सहेटवा, लखेउ डेराइ ।
धनिआ कमल बदनिआ, गौ कुभिलाइ ।।55।।
।। मध्या-बिप्रलब्धा ।।
लखेसि न केलि-भवनवाँ, नन्द कुमार ।
लै-लै ऊँवि उससवा, ह्वइ बिकरार ।।56।।
।। प्रौढ़ा-बिप्रलब्धा ।।
देखि न कन्त सहेटवा, भो दुख पूरि ।
रोवत नैन कजरवा, ह्वै गौ दूरि।।।57।।
।। परकीया-बिप्रलब्धा ।।
बैरिनि मह अभिसरवा, अति दुखदानि ।
तापर मिल्यो न मितवा, भो पछितानी ।।58।।
।। गणिका-बिप्रलब्धा ।।
करिकै सोहर सिंगरवा, अतर लगाइ ।
मिलेउ न लाल सहेटवा, फिरि पछिताइ ।।59।।
।। (5) उत्कण्ठिता ।।
।। मुग्धा-उत्कण्ठिता ।।
गौ जुग जाम जमिनिआ, पिय नहिं आइ ।
राखेहु कौन सवतिआ, धौं बिलमाइ ।।60।।
।। मध्या-उत्कण्ठिता ।।
जोहत परी पलँगिआ, पिय कै बाट ।
बेचेउ चतुर तिरिअवा, धौं केहि हाट ।।61।।
।। प्रौढ़ा-उत्कण्ठिता ।।
पिय-पथ हेरति गोरिआ, भो भिनुसार ।
चलहु न करिहि तिरिअवा, तुव इतबार ।।62।।
।। परकीया-उत्कण्ठिता ।।
उठि-उठि जात खिरकिआ, जोहन बाट ।
कत वह आइहि मितवा, सूनी खाट ।।63।।
।। गणिका-उत्खण्ठिता ।।
कढ़ि न नींद भिनुसरवा, आलस पाइ ।
धन दै मूरूख मितवा, रहत लोभाइ ।।64।।
।। (6) बासकसज्जा ।।
।। मुग्धा-बासकसज्जा ।।
हरुए गवन नबेलिआ, डीठि बचाइ ।
पौढ़ी जाइ पलँगिआ, सेज बिछाइ ।।65।।
।। मध्या-बासकसज्जा ।।
सेज बिछाइ पलँगिआ, अंग सिंगार ।
चितवत चौंकि तरुनिआ, दै दिग-द्वार ।।66।।
।। प्रौढ़ा-बासकसज्जा ।।
हँसि-हँसि हेरि अरसिआ, सहज सिंगार ।
उतरत चढ़त नबेलिआ, पियकै बार ।।67।।
।। परकीया-बासकसज्जा ।।
सोवत सब गुरु लोगवा, जानेउ बाल ।
दीन्हेसि खोलि खिरकिआ, उठिकै हाल ।।68।।
।। गणिका-बासकसज्जा ।।
कीन्हेसि सबै सिंगरवा, चातुर बाल ।
ऐहै प्रान पियरवा, लै मनि-माल ।।69।।
।। (7) स्वाधीनपतिका ।।
।। मुग्धा-स्वाधीनपतिका ।।
आपुहिं देत जवकवा, गहि-गहि पाँइ ।
आपु देत मोहि पिअवा, पान खवाइ ।।70।।
।। मध्या-स्वाधीनपतिका ।।
पीतम करत पिअरवा, कहल न जात ।
रहत गढ़ावत सोनवा, यहै सिरात ।।71।।
।। प्रौढ़ा-स्वाधीनपतिका ।।
मैं अरु मोर पिअरवा, जस जल-मीन ।
बिछुरत तजत परनवाँ, रहत अधीन ।।72।।
।। परकीया-स्वाधीनपतिका ।।
भौ जुग नयन चकोरवा, पिअ मुख चन्द ।
जानति है तिअ अपने, मोहि सुख-कन्द ।।73।।
।। गणिका-स्वाधीनपतिका ।।
लै हीरन के हरवा, मोतिका माल ।
मोहि रहत पहिरावत, बसि ह्वै लाल ।।74।।
।। (8) अभिसारिका ।।
।। मुग्धा-अभिसारिका ।।
चलीं लवाइ नबेलिअहि, सखि सब संग ।
जस हुलसत गो गोदवा, मत्त मतंग ।।75।।
।। मध्या-अभिसारिका ।।
पहिरे लाल अछुअवा, तिअ मज-पाय ।
चढ़िकै नेह-हथियवा, हुलसत जाय ।।76।।
।। प्रौढ़ा-अभिसारिका ।।
चली रइनि अधिअरिआ, साहस गाढ़ि ।
पाँयन केरि ककरिआ, डारेसि काढ़ि ।।77।।
।। परकीया-कृष्णाभिसारिका ।।
नील मनिन के हरवा, नील सिंगार ।
किए रइनि अधिअरिआ, धनि अभिसार ।।78।।
।। परकीया-शुल्काभिसारिका ।।
सेत कुसुम के हरवा, भूषन सेत ।
चली रैनि उजिअरिआ, पिअ के हेत ।।79।।
।। दिवा-अभिसारिका ।।
पहिरि बसन जहितरिआ, पिअ के हेत ।
चली जेठ दुपहरिया, मिलि रवि जोति ।।80।।
।। गणिका-अभिसारिका ।।
धन-हित कीन्ह सिंगरवा चातुर बाल ।
चली संग लै चेरिआ, जहँवा लाल ।।81।।
।। (9) प्रवत्स्यत्प्रेयसी ।।
।। मुग्धा-प्रवत्स्यत्प्रेयसी ।।
परिगौ कानन सखिआ, पिअ को गौन ।
बैठी कनन पलँगिआ, होइकै मौन ।।82।।
।। मध्या-प्रवत्स्यत्प्रेयसी ।।
सुठि सुकुमार तरुनिआ, सुनि पिअ गौन ।
लाजनि पौढ़ि ओबरिआ, ह्वै कै मौन ।।83।।
।। प्रौढ़ा-प्रवत्स्यत्प्रेयसी ।।
बन घन फूलि टेसुइआ, बगियन बेलि ।
तब पिअ चलेउ बिदेसवा, फागुन फैलि ।।84।।
।। परकीया-प्रवत्स्यत्प्रेयसी ।।
मितवा चलेउ बिदेसवा, मन अनुरागि ।
पिअ की सुरति गगरिया, रहि मग लागि ।।85।।
।। गणिका-प्रवत्स्यत्प्रेयसी ।।
पीतम एक सुमिरिनिआ, मोंहि दै जाहु ।
जेहिं जपि तोर बिरहवा, करब निबाहु ।।86।।
।। (10) आगतपतिका ।।
बहुत दिना पर पिअवा, आयउ आजु ।
पुलकित नवल बधुइआ, कर घर-काजु ।।87।।
।। मध्या-आगतपतिका ।।
पिअवा पौरि दुअरवा, उठि किन देखु ।
दुरलभ पाइ बिदेसिआ, जिअकै लैखु ।। 88।।
।। प्रौढ़ा-आगपतिका ।।
योबन प्रान पिअरवा, हेरेउ आइ ।
तलफत मीन तिरिअवा, जस जल पाइ ।।89।।
।। परकीया-आगपतिका ।।
पूछत चली खबरिया, मितवा तीर ।
नैहर खोज तिरिअवा, पहिरि सुचीर ।।90।।
।। गणिका-आगतपतिका ।।
तौं लगि मिटै न मितवा, तनकी पीर ।
जौं लगि पहिरि न छतिआ, नख-नग-चीर ।।91।।
।। पुनः त्रिविध नायिका-भेद ।।
।। उत्तम ।।
लखि अपराध नयकवा, नहिं रिस कीन्ह ।
बिहँसत चँदन-चउकिया, बैठन दीन ।।92।।
।। मध्यमा ।।
बिन गुन पिअ उर हरवा, उपटेउ हेरि ।
चुप ह्वै चित्र-पुतरिया, रहि चख फेरि ।।93।।
।। अधमा ।।
बार-बार गुरु मनवा, जनि करु नारि ।
मानिक औ गजमोतिआ, जौं लगि बारि ।।94।।
।। सखि के काम ।।
।। मण्डन ।।
सखिअन कीन सिंगरवा, रचि बहु भाँति ।
हेरति नैन अरसिआ, मुख मुसकाति ।।95।।
।। शिक्षा ।।
थके बैठि गोड़वरिआ, मींजहु पाँउ ।
पिअ तन पेखि गरमिया, बिजन डोलाउ ।।96।।
।। उपलंभ ।।
चुप रह्यौ सँदेसवा, सुनि मुसुकाय ।
पिअ निज हाथ बिरवना, दीन पठाय ।।97।।
।। परिहास ।।
बिहँसत भौंह चढ़ाए, धनुष मनोज ।
लावत उर अबलनिआँ, ऐंठि उरोज ।।98।।
।। दर्शन ।।
।। साक्षात-दर्शन ।।
बिरहिनि और बिदेसिआ, भौ एक ठौर ।
पिअ मुख तकत तिरिअवा, चन्द चकोर ।।99।।
।। चित्र-दर्शन ।।
पिअ मूरति चित-सरिया, देखत बाल ।
बितवत अवधि बसरवा, जपि-जपि माल ।।100।।
।। अवण-दर्शन ।।
आयउ मीत बिदेसिआ, सुनु सखि तोर ।
उठि किन करसि सिगँरवा, सुनि सिख मोर ।।101।।
।। स्वप्न-दर्शन ।।
पीतम मिलेउ सपनवाँ, भौ सुख-खानि ।
आनि जगायसि चेरिआ, भइ दुख-दानि ।।102।।
।। नायक ।।
।। लक्षण ।।
सुन्दर चतुर धनिकवा, कुल को ऊँच ।
केलि-कला परबिनवा, सील समूच ।।103।।
पति उपपति बैसिकवा, त्रिबिध बखानि ।
विधि सों ब्याह्यो मुरुजन, पति सो जानि ।।104।।
।। पति ।।
लैकै सुघर पुरुषवा, पिअ के साथ ।
छपरो एक छतरिआ, बरखत पाथ ।।105।।
।। उपपति ।।
झाँकि झरोखे गोरिआ, आँखिन जोर ।
फिरि चितवति चित मितवा, करत निहोर ।।106।।
।। बैसिक ।।
जनु अति नील अलकिया, बनसी लाय ।
मो मन बार बधुअवा, मीन बझाय ।।107।।
।। चतुर्विध-पति ।।
।। अनुकूल ।।
करत नही अपरधवा, सपनेहुँ पीव ।
मान करै को सधवा, रहिगौ जीव ।।108।।
।। दक्षिण ।।
सब मिलि करैं निहोरवा, हम कहँ देइ ।
गुहि-गुहि चम्पक टँड़िआ, उचइ सो लेइ ।।109।।
।। धृष्ट ।।
जहवाँ जगे रइनिआँ, तहवाँ जाउ ।
जोरि नयन निरलजवा, कत मुसकाउ ।।110।।
।। शठ ।।
छूटयो लाज गरिअवा, औ कुल-कानि ।
करत रोज अपरधवा, परि गइ बानि ।।111।।
।। पुनः चतुर्विध नायक ।।
।। क्रिया-चतुर नायक ।।
खेलत जानिसि टोलिआ, नन्द किसोर ।
छुइ बृषभानु-कुँअरिआ, होइगो चोर ।।112।।
।। वचन-चतुर नायक ।।
सघन कुँज अमरैआ, सीतल छाँहि ।
झगरति आइ कोइलिआ, फिरि उड़ि जाहि ।।113।।
।। मानी-नायक ।।
अब न जनम भरि सखिआ, ताकौं ओहि ।
ऐंठत गो अभिमनवा, तजि कै मोहि ।।114।।
प्रोषित-नायक ।।
करिबै ऊँचि अटरिआ, तिअ सँग केलि ।
कबधौं पहिरि गजरवा, हार चमेलि ।।115।।
।। इति बरवै नायिका-भेद समाप्त ।।
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